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* गीता दर्शन भाग-42
में प्रवेश कर जाए, उसे फिर छोड़ना और भी मुश्किल हो जाता है। | अच्छी जंजीरें, हीरे-जवाहरात जड़े हों! लेकिन वह स्वतंत्र नहीं हो
यह अहंकार, हमारे भीतर गया गहरे से गहरा संसार है। संसार गया। स्वतंत्र तो वह तभी होता है, जब जंजीरें अच्छी नहीं, जंजीरें का तीर हमारे भीतर जो गहरे से गहरे में चला गया है, उसका नाम | | होती ही नहीं! अहंकार है; उस घाव का नाम अहंकार है। वह हमारे भीतर है। वह | | ध्यान रखें, विचार की तीन अवस्थाएं हैं। एक विचार की हमारे भीतर है। और हमारा मजा ऐसा है कि हम उस तीर को और | अवस्था है, जिसको हम अशुद्ध विचार कहें। अशुद्ध विचार का दबाए चले जाते हैं, ताकि अहंकार और भीतर चला जाए। खाज हो | | अर्थ है, जो वासना के पीछे दौड़ता हो, वृत्तियों के पीछे दौड़ता हो; जाती है न किसी को, तो खुजलाने से भी आनंद मालूम पड़ता है। शरीर को मालिक मानता हो, खुद गुलाम हो जाता हो! जहां वासना
अहंकार आत्मिक खाज है; उसे खुजलाने से भी आनंद मालूम | | मालिक है और विचार गुलाम है, वहां बुरा विचार है, असद विचार पड़ता है। पीछे कितनी ही पीड़ा हो, लेकिन जब खुजाते हैं, तब | है, अशुभ विचार है। लगता है, बड़ा सुख मिल रहा है! जिसको भी कभी खाज हुई हो, ___ इसे हम बदल सकते हैं। बदलने का अर्थ यह है कि विचार उसे पता होगा। लेकिन अहंकार तो सभी को हुआ है, सभी को पता | मालिक हो गया, वासना गुलाम हो गई। अब वासना के पीछे होगा। उसे खुजलाने में सुख मिलता है। हालांकि सभी दुख उसी | | विचार नहीं चलता, विचार के पीछे ही वासना को चलना पड़ता है। खुजलाने से पैदा होते हैं।
यह शुभ विचार हुआ, सद विचार हुआ, अच्छा विचार हुआ। खाज को खुजलाने से लहूलुहान हो जाता है शरीर, पीछे पीड़ा लेकिन विचार भी मौजूद है और वासना भी मौजूद है; सिर्फ संबंध आती है। और अहंकार को खुजलाने से आत्मा लहूलुहान हो जाती । बदल गया। कल वासना मालिक थी, विचार गुलाम था; अब है, और जन्मों-जन्मों तक पीड़ा की सतत श्रृंखला बन जाती है। विचार मालिक है, वासना गुलाम है। लेकिन फिर भी हम खुजलाए चले जाते हैं, और तीर को भीतर धंसाए| | लेकिन ध्यान रहे, आप गुलाम के मालिक भी हो जाएं, तो भी चले जाते हैं। घाव में भी तीर लगता है, तो हमें रस आता है। | उससे बंधे रहते हैं। आप गुलाम की छाती पर भी बैठ जाएं, तो भी
कृष्ण कहते हैं, इसको ही छोड़ दे। यह मैं कर रहा हूं, इस भाव | | गुलाम आपको बांधे रखता है। आप छोड़कर हट नहीं सकते। को छोड़ दे।
गुलाम तो हट ही नहीं सकता, क्योंकि आप उसकी छाती पर चढ़े . इस भाव को छोड़ना हो, तो दो अनिवार्य शर्ते हैं। हैं। आप भी नहीं हट सकते, क्योंकि आप हटे कि छाती से उतरे।
कहा है कृष्ण ने, उस शुद्ध बुद्धि, निष्काम प्रेमी भक्त का आपको गुलाम को दबाकर बैठे रहना पड़ेगा। शायद आप सोचते प्रेमपर्वक अर्पण किया हआ सभी कछ मैं ग्रहण करता है। | होंगे, गुलाम मुझसे बंधा है। गुलाम भी जानता है कि आप उससे
दो शब्दों का उपयोग किया है, शुद्ध बुद्धि और निष्काम प्रेमी। | | बंधे हैं, हट नहीं सकते।
बुद्धि कब शुद्ध होती है? और प्रेम कब पवित्र होता है? बुद्धि । __सुना है मैंने कि एक आदमी एक गाय को बांधकर अपने घर तब शुद्ध होती है...जैसा हम आमतौर से सोचते हैं, तब नहीं। हम लौट रहा है। फकीर हसन उसे रास्ते में मिल गया और हसन ने पूछा सब सोचते हैं कि अगर बुद्धि में शुद्ध विचार हों, तो बुद्धि शुद्ध हो कि मेरे मित्र, मैं एक बात जानना चाहता हूं। तुम गाय से बंधे हो जाती है। इससे ज्यादा भ्रांति की कोई दूसरी बात नहीं है। इसलिए कि गाय तुमसे बंधी है? यह समझना थोड़ा कठिन पड़ेगा। हम समझते हैं कि बुद्धि के शुद्ध उस आदमी ने कहा, तू पागल मालूम होता है! यह भी कोई होने का अर्थ है, शद्ध विचार, अच्छे विचार, सात्विक विचार: सद पछने की बात है? जाहिर है कि गाय मझसे बंधी है: मैं गाय को विचार हों तो बुद्धि शुद्ध हो जाती है। लेकिन बुद्धि तब तक शुद्ध बांधकर ले जा रहा हूं। नहीं होती, जब तक विचार हों, चाहे वे सद विचार ही क्यों न हों। | तो फकीर हसन ने कहा, एक काम कर। अगर गाय तुझसे बंधी जब विचार ही नहीं रह जाते, तभी बुद्धि शुद्ध होती है। | है, तो तू छोड़कर बता। तू छोड़ दे। फिर अगर गाय तेरे पीछे चले,
जैसे एक आदमी के हाथ में लोहे की जंजीरें हैं। वह कारागृह में तो हम समझें। पड़ा है। कल हम उसे सोने की जंजीरें पहना दें। शायद वह खुश उस आदमी ने कहा, अगर मैं छोड़ दूंगा, गाय भाग खड़ी होगी, हो कि अब मैं स्वतंत्र हो गया, क्योंकि जंजीरें अब सोने की हो गईं। मुझे उसके पीछे भागना पड़ेगा।
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