________________
*खोज की सम्यक दिशा
लेकिन वह आदमी कैसे छोड़ दे? वह दूसरे दिन फिर आता है | | अनुभव नहीं था, सिर्फ मान्यता थी। और वह इसलिए नहीं आया कि मुझे क्षमा कर दो। वह तीसरे दिन फिर आता है कि मुझे क्षमा था कि ईश्वर को जानना चाहता था। सिर्फ इसलिए आया था कि कर दो। वह चौथे दिन फिर आता है कि मुझे क्षमा कर दो! | बुद्ध और उसके मत और विश्वास के सहायक हो जाएं। वह अपने
वह पुनरुक्त कर रहा है; एक घेरे में घूम रहा है। वह एक घेरे में | | विश्वास को मजबूत करने आया था, जानने नहीं। जानने की उसकी घूम रहा है। और बुद्ध आनंद से कहते हैं कि अगर इसे मैं क्षमा कर | कोई तैयारी न थी। वह तो सिर्फ यह कहने आया था कि किसी दिन दं, तो यह फिर थूक सकता है। यह प्रेडिक्टेबल है, इसकी घोषणा वह कह सके कि मैं तो मानता ही हूं, बुद्ध भी मानते हैं! वह मुझे की जा सकती है। यह बेचेन हो रहा है सिर्फ इसीलिए कि एक क्रिया | | भी अपनी कतार में खड़ा करने आया था! पूरी नहीं हो पा रही है। इसको बेचैनी मालूम हो रही है।
तो उससे मुझे कहना पड़ा कि नहीं; ईश्वर नहीं है। उसके मन पूरा करना चाहता है कोई भी काम; पूरा हो जाए तो निश्चित अहंकार को तोड़ना जरूरी था। और उससे कहना जरूरी था कि हो जाता है। इनकंप्लीट, कोई चीज अधूरी रह गई, तो मन ऐसे ही | ऐसे मानने से कुछ भी न होगा। है ही नहीं, मानकर क्या करेगा! बेचैन होता है, जैसे दांत गिर जाए आपका एक, तो जीभ वहां | देखा तूने कि वह कैसे कंप गया, जैसे झंझावात में कोई वृक्ष की बार-बार जाती है; खाली जगह को बार-बार छूती है। लाख | जड़ें कंप जाएं। देखा तूने, उसका चेहरा कैसा लाल आग से भर कोशिश करो कि मत छुओ; पता तो है कि गिर गया दांत, फिर जीभ | गया! देखा तूने कि उसके अहंकार को कैसी भयंकर चोट लगी! वहीं चली जाती है। वह जीभ यह कहती है, समथिंग इनकंप्लीट; | अब वह किसी से अपने अहंकार की पुष्टि में मेरा नाम नहीं ले कोई चीज अधूरी है; इसको पूरा करो, भरो।
पाएगा। और अब एक बेचैनी की तरह मैं उसका पीछा करूंगा। ठीक, मन ऐसे ही पूरे समय कोशिश करता है भरने की। लेकिन | | अब उसे पता तो है नहीं कि ईश्वर है या नहीं? बुद्ध ने कहा कि नहीं बद्ध जैसे व्यक्ति अघोष्य हो जाते हैं: अनप्रेडिक्टेबल हो जाते हैं। है। अब उसे खोजना ही पड़ेगा। इसके पहले अब वह हिम्मत से उनके बाबत कुछ कहा नहीं जा सकता। इतने ज्यादा हो जाते हैं...। कभी न कह सकेगा कि है।
एक आदमी सुबह बुद्ध से पूछता है, ईश्वर है? बुद्ध कहते हैं, | ___ दोपहर जो आदमी आया था, वह नास्तिक था। वह मेरे से नहीं है। दोपहर दूसरा आदमी पूछता है, ईश्वर है? बुद्ध कहते हैं, | गवाही लेने आया था कि मैं भी कह दूं कि नहीं है, ताकि वह जाकर है। तीसरा आदमी शाम पूछता है, ईश्वर है? बुद्ध कुछ भी नहीं लोगों से कहे कि मैं ही नहीं कहता, बुद्ध भी कहते हैं कि ईश्वर नहीं कहते; चुप रह जाते हैं।
है। उससे मुझे कहना पड़ा कि है। उसे भी हिलाना जरूरी था। रात आनंद घबड़ा जाता है। उनके साथ था वह दिनभर। वह रात __झूठी श्रद्धाएं जब तक हिलें न, तब तक सच्ची श्रद्धाएं पैदा नहीं पूछता है कि मेरी मुश्किल कर दी। मैं सो न सकूँगा। पहले मुझे होतीं। थोथे विश्वास जब तक उखाड़ें न जाएं, तब तक आत्मगत समझा दो। सुबह एक आदमी से कहा ईश्वर नहीं है; दोपहर एक | भरोसों का जन्म नहीं होता। आदमी से कहा है; सांझ बिलकुल चुप रह गए, कुछ भी न कहा! और सांझ जो आदमी आया था, वह सीधा, सरल, निर्दोष
बुद्ध ने कहा, जो उत्तर तुझे दिए नहीं गए, वे तूने लिए क्यों? वे आदमी था। उसकी कोई मान्यता न थी। न वह मानता था कि है, न जिनको दिए गए थे, उनके और मेरे बीच का मामला है। वह मानता था कि नहीं है। वह बच्चों की तरह भोला था। उसे कोई
आनंद ने कहा, लेकिन मैं बहरा तो नहीं हूं! मुझे सुनाई पड़ गए। | भी उत्तर देना उचित न था। चुप रह जाना उचित था। वह मेरी बात और अब मैं सोच रहा हूं कि सही बात क्या है?
समझ गया। वह आनंदित वापस लौट गया। वह समझ गया कि बुद्ध ने कहा, सही बात तो तीनों में ही नहीं है। तू सो जा। । ईश्वर के संबंध में चुप होने से ही उसका पता चलेगा। मौन रह जाने उसने कहा, अब मैं बिलकुल न सो सकूँगा। वह सही बात क्या | | से ही। कुछ मत कहो। है और नहीं में उसे नहीं कहा जा सकता। है? रातभर मेरे मन में यही दोहरता रहेगा कि वह सही बात क्या है? वह मेरी चुप्पी को समझ गया, वह मेरे पैर छूकर गया है। आनंद,
बुद्ध ने कहा, सही बात कुल इतनी है कि जो आदमी सुबह आया तूने देखा! वह पैर छूकर गया है। पैर छूते वक्त तूने उसकी आंखें था और पूछता था, ईश्वर है? वह आस्तिक था; पर वैसा ही | देखी थीं? वे जैसे शांत झील की तरह हो गई थीं। और वह आदमी आस्तिक, जैसे अक्सर आस्तिक होते हैं। उसका अपना कोई | जल्दी ही प्रभु को पा लेगा।
1315