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________________ * गीता दर्शन भाग-4* तीन बातें अंत में आपसे कहूं। किसी चेष्टा से कहता है। तुम शायद ज्यादा क्रोध से भर गए हो कि एक, जीवन को पुनरुक्ति न बनने दें; स्मरणपूर्वक पुनरुक्ति से गाली भी कम पड़ती होगी; तुमने थूककर कहा। मैं समझ गया। बचें। डोंट गो ऑन रिपीटिंग; दोहराए मत चले जाएं। कहीं से भी | | अब तुम बोलो, तुम्हें और क्या कहना है? ढांचे को तोड़ें। और कहीं से भी इस दोहरती हुई यांत्रिक प्रक्रिया के । अब यह अनप्रेडिक्टेबल है। इस आदमी को हम यांत्रिक नहीं बाहर हो जाएं। छोटे-मोटे प्रयोग से भी आदमी बाहर होना शुरू हो कह सकते। इस आदमी को यांत्रिक कहना मुश्किल है। यह आदमी जाता है; बहुत छोटे-मोटे प्रयोग से! दोहरा नहीं रहा है। हमारी सबकी प्रतिक्रियाएं बंधी हुई हैं। अगर मैंने आपको गाली लेकिन वह दूसरा आदमी तो मुश्किल में पड़ गया। रातभर उसने दी, तो प्रेडिक्टेबल हे कि आप क्या करोगे! जो आपको जानते हैं, सोचा, सो नहीं पाया। अगर ये बुद्ध उसको गाली दे देते, या उसके वे भलीभांति बता सकते हैं कि आप क्या करोगे! एक पत्नी बीस ऊपर थूक देते, तो ज्यादा दया होती। एक अर्थ में वह रात सो साल पति के साथ रहकर भलीभांति जानती है कि अगर वह यह सकता। अगर ये भी नाराज हो जाते, तो वह रात निश्चित सो जाता; कहेगी, तो पति यह जवाब देगा! आदमी प्रेडिक्टेबल हो जाता है। क्योंकि दिक्कत ही खतम हो गई थी। सर्किल पूरा हो जाता। घटना पति भलीभांति जानता है कि घर पहुंचकर पत्नी क्या पूछने वाली पूरी हो जाती। बुद्ध ने पोंछकर पूछ लिया कि और कुछ कहना है? है! उत्तर भी रास्ते में तैयार कर लेता है कि वह यह कहेगी, यह उत्तर तो अटक गई बात अधूरी। मन रातभर बेचैन रहा कि यह आदमी हो जाएगा! और यह भी जानता है कि इस उत्तर को वह मानने वाली कैसा है? फिर मन को यह भी होने लगा कि मैंने गलत आदमी के नहीं है। पत्नी भी जानती है कि मैं यह पूछृगी, तो क्या उत्तर मिलेगा! ऊपर थूक दिया! यह ठीक नहीं किया मैंने थूककर! ऐसे आदमी जानते हुए भी कि यह उत्तर मिलेगा, वह पूछेगी; उत्तर पाएगी, पर तो कम से कम नहीं थूकना था! मानेगी नहीं। लेकिन कहीं से भी हम अपनी यंत्रवत व्यवस्था को रातभर जागता रहा। बेचैन रहा। सुबह ही भागा हुआ आया। तोड़ेंगे नहीं। बुद्ध के पैर पर गिर पड़ा। पैर पर उसके आंसू टपकने लगे। बुद्ध कहीं से भी तोड़ें। कोशिश करें अनप्रेडिक्टेबल होने की। ने उसे उठाया, चादर से पैर के आंसू पोंछे और पूछा, और कुछ कोशिश करें कि आपके बाबत भविष्यवाणी न हो सके। कोई यह कहना है? क्योंकि आज तुम फिर उसी हालत में आ गए। कुछ' न कह सके कि अगर हम चांटा मारेंगे, तो वे क्या करेंगे! कहना चाहते हो, नहीं कह पा रहे, शब्द ओछे पड़ते हैं; आंसू जिस दिन आप अनप्रेडिक्टेबल हो जाते हैं, जिस दिन आपके टपकाकर कहते हो। बोलो, क्या कहना है? बाबत कोई प्रतिक्रिया को पर्व-घोषित नहीं किया जा सकता. आप उस आदमी ने कहा, मैं क्षमा मांगने आया है। पहली दफा मनुष्य होते हैं। उसके पहले आप यंत्रवत होते हैं। बुद्ध ने कहा, छोड़ो भी। कल तो कब का बह गया, तुम किससे कुछ नहीं कहा जा सकता, अगर जीसस के गाल पर आप चांटा | | क्षमा मांगने आए हो? वह आदमी अब तुम्हें कहां मिलेगा, जिसके मारें, तो जीसस क्या करेंगे, कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अगर ऊपर तुमने थूका था? बुद्ध को आप पत्थर मारें, तो बुद्ध क्या करेंगे, कुछ भी नहीं कहा उस आदमी ने कहा, क्या आप वह आदमी नहीं हैं? क्या कह जा सकता। रहे हैं? क्यों मुझे मुसीबत में डाल रहे हैं! आप ही वे आदमी हैं, एक आदमी ने बुद्ध के ऊपर आकर थूक दिया था; तो वह | | जिन पर मैं थूक गया था। आदमी सोच भी नहीं सकता था कि बुद्ध क्या करेंगे। बुद्ध ने अपनी | बुद्ध ने कहा, लेकिन चौबीस घंटे में, जानते हो, गंगा का कितना चादर से उस आदमी के थूक को पोंछ लिया और उस आदमी से | पानी बह जाता है? चौबीस घंटेभर बाद अगर तुम उसी गंगा से कहा, तुम्हें कुछ और भी कहना है? क्षमा मांगने जाओगे, जिसमें थूक गए थे, तो वह गंगा कहेगी, मुझे उस आदमी ने कहा, आप क्या कह रहे हैं? मैंने थूका है, कुछ | | पता ही नहीं। किस में तुम थूक गए थे? पानी कितना बह गया कहा नहीं! चौबीस घंटे में! छोड़ो भी। भूलो भी। क्यों रुक गए हो उस पर? बुद्ध ने कहा, मैं समझ गया। कई बार ऐसा हो जाता है कि थूककर जितनी गलती की थी, उससे बड़ी गलती यह कर रहे हो आदमी इतने भाव से भर जाता है कि शब्दों में नहीं कह पाता, तो कि अब उसी पर रुके हुए हो, रातभर खराब की! छोड़ो। 314
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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