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________________ * खोज की सम्यक दिशा * पद पर लौटते रहें, यही आकांक्षा है! | समान ढो रहे हैं, जमीन पर ही। हवाई जहाज से हम चाहें तो ठेले जिंदगी में जो कई बार सफल दिखाई पड़ते हैं, उनका एक ही | | | का काम भी ले सकते हैं, लारी का, ट्रक का। और अगर हवाई कारण हो सकता है गहरे में कि जिंदगी के असली लक्ष्य से वे | | जहाज के पायलट को खयाल ही न हो कि यह हवाई जहाज जमीन असफल हो गए हैं। मगर यह बड़ा कठिन है समझना। जो जिंदगी | को छोड़कर भी उड़ सकता है, तो बेचारा जमीन पर ही ट्रक का काम में तथाकथित सफलता दिखाई पड़ती है, सो-काल्ड सक्सेस, | | करता रहेगा; जमीन पर ही सामान ढोता रहेगा! इसके पीछे जिंदगी की बड़ी गहरी असफलता कारण हो सकती है! | ध्यान रहे, ट्रक तो आकाश में नहीं उड़ सकता, लेकिन हवाई बहुत बार लौट-लौटकर इसी जगह वे काफी ज्ञानी और जहाज जमीन पर चल सकता है। श्रेष्ठ में निकृष्ट तो समाया होता अनुभवी हो गए हैं। इसी क्लास में उन्हें सब रट गया है, सब है, लेकिन अगर आप निकृष्ट के आदी हो जाएं, तो श्रेष्ठ का कंठस्थ हो गया है; कुशल, चालाक हो गए हैं। यद्यपि अनुभव उन्हें | खयाल ही मिट जाता है। कुछ भी नहीं हुआ, क्योंकि अनुभव हो जाए तो लौटने का कोई | परमात्मा के स्मरण का इतना ही अर्थ है, उसकी पूजा का इतना उपाय नहीं है। ही अर्थ है, कि तुम्हीं हो मेरे गंतव्य, कि जब तक मैं तुम्ही न हो जिस चीज को हम जान लेते हैं, हम उसको ट्रांसेंड कर जाते हैं; | जाऊं, तब तक मेरे लिए कोई भी ठहराव नहीं है; तुम्ही हो मुकाम, उसके पार निकल जाते हैं। लेकिन जो आदमी परमात्मा को ही जान और जब तक तम्हीं न मिल जाओ, तब तक मेरे लिए कोई पड़ाव लेगा, फिर तो उसके कहीं भी लौटने का कोई उपाय न रहा, क्योंकि । | पड़ाव नहीं है। रुकूँगा, रातभर ठहरूंगा, सिर्फ इसलिए कि सुबह जीवन की अंतिम शिक्षा पूरी हो गई। चल सकू! रुकुंगा, विश्राम कर लूंगा, सिर्फ इसलिए कि पैर थक परमात्मा का अर्थ है, जीवन का अंतिम निष्कर्ष, अस्तित्व का | गए; और पैरों की ताकत लौट आई तो फिर चल पडूंगा। सार, अस्तित्व का केंद्र; अस्तित्व का आखिरी कमल खिल गया; __ लेकिन हम भी, चलते तो हम भी बहुत हैं, लेकिन हमारा चलना अस्तित्व ने आखिरी गीत गा लिया; अस्तित्व ने आखिरी नृत्य देख | ऐसा है कि जिस जमीन पर हम बार-बार चल चुके हैं, हम उसी पर लिया; अस्तित्व की जो गहनतम संभावना थी, वह अभिव्यक्त हो | लौट-लौटकर चलते रहते हैं। एक ही जगह को हम कई बार पार गई; अब लौटने का कोई उपाय न रहा। करते रहते हैं। हमारी जिंदगी गति नहीं करती; जैसे कि मालगाड़ी __ तो परमात्मा जो है, वह प्वाइंट आफ नो रिटर्न है। वहां से आप | | के डब्बे शंटिंग करते हैं स्टेशन पर, वैसी हमारी जिंदगी है, ही गिर सकते। और जहां से भी आप वापस गिर सकते | | वहीं-वहीं शंटिंग करते रहते हैं। कहीं कोई अंतिम मुकाम नहीं हैं, वहां तक जानना कि परमात्मा नहीं है, वहां तक संसार है। और आता। बस, दौड़-धूप में, आखिर में यह शंटिंग होते-होते हम जहां से भी आप वापस गिर सकते हैं, तो समझ लेना कि आप टूटते और चुक जाते हैं। छलांग लगाकर उचकने की कोशिश किए होंगे, लेकिन वह नई पुनर्जन्म का अर्थ है, शंटिंग। उसका अर्थ है कि यात्रा पर नहीं अवस्था आपके लिए सहज नहीं थी। आप अपनी पुरानी अवस्था निकल पा रहे हैं आप। फिर वहीं लौट आने का अर्थ है कि आगे में गिर गए हैं। कोई गति नहीं सूझ रही है आपको। . एक आदमी छलांग लगाए आकाश में, तो क्षणभर के लिए उचक __ कृष्ण कहते हैं, लेकिन जो मुझे भजता है, वह फिर नहीं लौटता सकता है। फिर जमीन खींच लेगी। अपनी जगह फिर खड़ा हो है। क्योंकि वह भजन अंतिम है। जाएगा। अगर आकाश में छलांग ही लगानी हो, तो फिर जमीन का | परमात्मा अंतिम निष्कर्ष है-आखिरी, दि अल्टिमेट, परम। गुरुत्वाकर्षण तोड़ने का कोई उपाय करना पड़ेगा। हवाई जहाज कोई | उसके पार कुछ नहीं है। या हम ऐसा कहें, जिसके पार हमारी कोई उपाय करता है, तो जमीन के गुरुत्वाकर्षण के बाहर हो जाता है, या | समझ नहीं जाती, वही परमात्मा है। जिसके पार हम सोच भी नहीं जमीन के गुरुत्वाकर्षण के रहते भी आकाश में सदा रह जाता है। | सकते; जिसके अतीत और जिसके पार की कल्पना भी नहीं बनती, __ हम सब ऐसे हवाई जहाज हैं, जिनको यह पता ही नहीं है कि हम | | वही परमात्मा है। जमीन के गुरुत्वाकर्षण से ऊपर उठ सकते हैं। और हमारा उपयोग । इस परमात्मा के भजने, इस परमात्मा के पूजने का क्या अर्थ? लोकवाहक की तरह, पब्लिक कैरियर की तरह किया जा रहा है! कैसे कोई पूजेगा? 313
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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