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* गीता दर्शन भाग-4*
इसका दूसरा अर्थ भी है। पुनर्जन्म तो उसका ही होता है, जो | बहुत की होगी, लेकिन कोई ग्रोथ, कोई विकास, कोई बढ़ती उनके समझता हो कि मेरा जन्म होता है। और जो समझता है कि मेरा जन्म| | भीतर नहीं हुई। वापस उसी क्लास में लौटा दिए गए। होता है, फिर उसे मृत्यु की भी पीड़ा भोगनी पड़ती है। परमात्मा को जीवन तभी हमें वापस भेजता है किसी स्थिति में, जब हम उससे जो जानने लगता है, वह तो जानता है कि न मेरा जन्म होता है और | बिना कुछ सीखे गुजर जाते हैं। जिस स्थिति से आप बिना सीखे न मेरी मृत्यु होती है। तो जन्म और मृत्यु साधारण घटनाएं रह जाती | गुजर जाएंगे, आपको वापस लौटना पड़ेगा। सिर्फ उसी स्थिति में हैं, हवा के बबूलों की तरह। और वह तो जन्म के भी पहले होता आप वापस नहीं लौटेंगे, जिससे आप सीखकर गुजर जाएंगे। है और मृत्यु के भी बाद होता है। अब उसका कोई जन्म और मृत्यु लेकिन हम हर चीज से बिना सीखे गुजर जाते हैं! कितनी बार नहीं होती।
| क्रोध किया-सीखा क्या? कितनी बार प्रेम किया-सीखा क्या? बुद्ध से कोई पूछता है, मरने के दिन, कि क्या आप मृत्यु के बाद | | कितनी बार कामवासना में डूबे-सीखा क्या? कितनी बार ईर्ष्या कहीं होंगे या बिलकुल खो जाएंगे? तो बुद्ध कहते हैं, अगर मैं मृत्यु | की-सीखा क्या? कितना लोभ किया-जिंदगी में बहुत कुछ के पहले कहीं था, तो रहूंगा। अगर पहले ही खो गया, तो पीछे भी | किया-सीखा क्या? संपत्ति क्या है? सार क्या है? हाथ में निचोड़ बचेगा क्या?
क्या है? सुनने वाले की समझ में नहीं आया है, उसने फिर दूसरी तरह से | | अगर निचोड़ कुछ भी नहीं है, तो आपको लौटना पड़ेगा। पूछा। उसने पूछा कि छोड़ें, यह जरा कठिन है। मैं यह पूछता हूं, जिंदगी किसी को क्षमा नहीं करती, जिंदगी फिर अवसर देगी। जन्म के पहले आप कहीं थे या जन्म के बाद ही आप हुए? जिंदगी फिर कहेगी कि वापस उसी जगह लौट जाओ! .
बुद्ध ने कहा, अगर जन्म के पहले मैं कहीं था, तो जन्म के बाद | और हम ऐसे हैं कि बार-बार लौटकर हम पुख्ता होते चले जाते भी कहीं रहूंगा; और अगर जन्म के बाद भी कहीं नहीं था, तो जन्म | हैं। धीरे-धीरे हमको लगता है कि इस क्लास में वापस आना, यह के पहले भी कहीं नहीं था।
| तो अपना घर है। उसमें हम वापस आए चले जाते हैं। सीखना पर उस आदमी की समझ में नहीं आया। उसने कहा, पहेली में | | शायद और मुश्किल होता चला जाता है। हम अभ्यासी हो जाते हैं। मत जवाब दें। मुझे सीधा-सीधा कहें। तो बुद्ध ने कहा, जिसे तुम | हम अभ्यासी हो जाते हैं। और हममें जो अभ्यासी हैं, वे कभी-कभी देखते हो, वह तो जन्म के साथ पैदा हुआ है और मृत्यु के साथ मर | आगे निकल जाते हैं। मैं जानता हूं। जाएगा। लेकिन जिसे मैं देखता हूं, वह कभी पैदा नहीं हुआ और | | मैं एक क्लास में नया-नया पहुंचा; बाकी सब विद्यार्थी तो एक कभी मरेगा भी नहीं। लेकिन वह देखना आंतरिक है, वह देखना | | ही उम्र के थे, एक विद्यार्थी बहुत उम्र का था। तो मैंने शिक्षक को भीतर है। वह सिर्फ मैं ही देख सकता हूं; तुम्हें वह दिखाई नहीं | पूछा, तो उन्होंने कहा कि यह छः साल से इसी क्लास में हैं, लेकिन पड़ेगा। तुम भी देख सकते हो, अगर तुम अपने भीतर देखने में | अब कैप्टन हो गए हैं। क्लास के कैप्टन हैं! और वह लड़का समर्थ हो जाओ।
अकड़कर खड़ा था। निश्चित ही। छः साल वापस उसी क्लास में लेकिन हम सबका देखना बाहर है। बाहर जो हमें दिखाई पड़ता | | लौटने का चुकता परिणाम इतना हुआ है कि वे अब कैप्टन हो गए है, वह तो जन्म और मृत्यु का घेरा है। भीतर कोई हमारे जरूर छिपा | | हैं! अब वे उस क्लास से शायद जाना भी न चाहें; क्योंकि दूसरी है, जो न जन्मता है और न मरता है। उसकी अगर पहचान हो जाए, | क्लास में कैप्टन वे न हो पाएंगे। तो फिर कोई पुनर्जन्म नहीं है, फिर कोई लौटना नहीं है। | इस जिंदगी में भी जो बहुत तरह के कैप्टन दिखाई पड़ते लौटने को एक तीसरी तरह से भी समझें।
हैं—राजनीति में, धन में, यहां-वहां-उनमें अधिक लोग इसी अगर कुछ बच्चे एक क्लास में पढ़ रहे हों, और हर साल उन्हें | | तरह के हैं, जो पुख्ता हो गए हैं, मजबूत हो गए हैं, दोहर-दोहरकर वापस परीक्षा के बाद उसी क्लास में भेज दिया जाए, तो इसका क्या | | जिंदगी में इतने यंत्रवत मजबूत हो गए हैं, कि जो नए बच्चे आ रहे मतलब होगा? इसका एक ही मतलब होगा कि पढ़ा-लिखा उन्होंने | | होंगे जिंदगी में, उनके सामने, कोई राष्ट्रपति, कोई प्रधानमंत्री, कोई बहुत होगा, लेकिन गुना बिलकुल नहीं; पढ़ा-लिखा बहुत होगा, | | कुछ होकर खड़ा हो जाता है। उनसे अगर कहो भी कि जन्म-मरण लेकिन समझा बिलकुल नहीं; पढ़ा-लिखा बहुत होगा, मेहनत से छुटकारा, वे कहेंगे कि नहीं, हम तो बार-बार किसी तरह इसी
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