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________________ खोज की सम्यक दिशा लेकिन देवता कोई बहुत ऊंची अवस्था नहीं है। यह भी बहुत हैरानी की बात है कि भारत अकेला देश है, जो देवताओं की अवस्था को बहुत ऊंची अवस्था नहीं मानता ! और यह भी मानता है कि देवताओं को भी अगर मुक्त होना हो, तो उन्हें पहले मनुष्य होना पड़ेगा। मनुष्य चौराहा है। देवता का एक रास्ता है, मनुष्य से जाता है आगे। मालूम पड़ता है, आगे जाते। लेकिन अगर देवता को भी मुक्त होना है, तो उसे वापस चौराहे पर लौटकर मुक्ति का रास्ता पकड़ना पड़ेगा। मनुष्य चौराहा है, क्रास रोड है। पशु भी अगर मुक्त होना है, तो मनुष्य होना पड़ेगा; देवता को भी मुक्त होना है, तो मनुष्य होना पड़ेगा। एक अर्थ में देवता ऊपर मालूम पड़ सकता है, क्योंकि ज्यादा सुख में है। लेकिन एक अर्थ में नीचे है, क्योंकि देवता की स्थिति से अंतिम ट्रांसफार्मेशन, अंतिम क्रांति नहीं हो सकती; उसे मनुष्य तक वापस लौटना पड़ेगा। मनुष्य से ही कोई क्रांति संभव है। इस अर्थ में भी भारत ... देवताओं के पास मनुष्य से ज्यादा शक्ति है, ज्यादा उम्र है, ज्यादा इच्छाओं की पूर्ति का साधन है, ज्यादा सुख है – सब कुछ है— लेकिन आत्मक्रांति का उपाय नहीं है। उन्हें वापस लौट आना पड़ेगा। इसलिए भारत ने मनुष्य को एक अर्थ में चरम माना है। मनुष्य की इतनी गरिमा दुनिया में कहीं भी नहीं है। इस अर्थ में चरम माना है कि सिर्फ मनुष्य की ही आत्मा में मुक्त होने की आत्यंतिक घटना घट सकती है; परम स्वतंत्रता और प्रभु का दर्शन मनुष्य के साथ ही घटित हो सकता है। पशु के साथ नहीं हो सकता, क्योंकि वे भी अज्ञान में हैं; और देवताओं के साथ भी नहीं हो सकता, क्योंकि वे अज्ञान में हैं। पशु दुख में होगा, देवता सुख में होंगे; लेकिन दोनों अज्ञान में हैं। मनुष्य के साथ घटना घट सकती हैं तीनों । भारत कहता है कि मनुष्य नीचे गिरना चाहे, तो पशुओं से नीचे गिर सकता है; ऊपर उठना चाहे, तो देवताओं से पार जा सकता है; और मुक्त होना चाहे, तो समस्त घेरे के बाहर छलांग लगा सकता है। कृष्ण कहते हैं, जो पूजा करेगा पितरों की, वह पितरों को प्राप्त हो जाएगा। जो भी पूजा होगी, अगर सफल हो गए, तो वही हो जाओगे। और मेरे भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। इसलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं है। मेरे भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं ! जो मुझे भजता है, वह धीरे-धीरे, धीरे-धीरे मुझमें ही एक हो जाता है। सिर्फ परमात्मा की पुनरुक्ति नहीं होती, बाकी सब चीजें पुनरुक्त होती हैं। सिर्फ परमात्मा का कोई रिपीटीशन नहीं होता, बाकी सब | चीजें दोहरती हैं। जो शाश्वत है, वही पुनरुक्त नहीं होता। इसे समझना कठिन पड़ेगा; पर दो-तीन बातें खयाल में लें, तो शायद समझ में आ जाए। दुनिया में सब चीजें नई होती हैं, क्योंकि सभी चीजें पुरानी पड़ जाती हैं। जो भी नई है, वह कल पुरानी हो जाएगी। जो आज पुरानी है, ध्यान रखना, वह कल नई थी। सिर्फ परमात्मा न नया है और | न पुराना। वह सिर्फ है। वह कभी पुराना नहीं पड़ेगा, क्योंकि वह कभी नया नहीं था। जो चीज नई है, वही पुरानी हो सकती है। जो नई नहीं है, उसके पुराने होने का कोई उपाय न रहा । तो परमात्मा न नया है, न पुराना । इसलिए हमने एक अलग शब्द गढ़ा है; वह है सनातन, वह है शाश्वत, वह है अनादि, अनंत । इस भाषा में हमने उसे कहा | है कि वह सदा है। परमात्मा पुराना नहीं होता, नया नहीं होता; बस होता है। जो चीज नई है, वह कल पुरानी हो जाएगी। और जब पुरानी हो | जाएगी, तो फिर नए होने लिए संभावना शुरू हो जाएगी। जो चीज पुरानी है, वह कल पुरानी हो - होकर नष्ट हो जाएगी, खो | जाएगी; फिर नए होने का मौका मिल जाएगा। दुनिया में सब चीजें दोहरती रहती हैं। कई दफे बहुत हैरानी की | बातें होती हैं। अगर आप दुनिया के फैशन का इतिहास देखें, तो बहुत चकित हो जाएंगे ! दस-पांच साल में फैशन वापस आ जाते हैं। जिन कपड़ों को दस-पांच साल पहले पुराना समझकर छोड़ | दिया, दस-पांच साल बाद वे लौट आते हैं। जिन बालों के ढंग को | दस-पांच साल पहले पुराना समझकर छोड़ा था, दस-पांच साल | बाद वे वापस लौट आते हैं! दस-पांच साल काफी वक्त है। पुरानी चीजें भूल जाती हैं, फिर नई हो जाती हैं। और आदमी की स्मृति इतनी कमजोर है कि वह देख ही नहीं पाता, वह खयाल भी नहीं कर पाता कि हम क्या कर | रहे हैं ! फिर वही चुनकर ले आता है, फिर वही चुनकर ले आता है । आदमी के मन के साथ नए और पुराने का खेल चलता रहता है, पुनरुक्ति चलती रहती है। कृष्ण कहते हैं, जो मुझे उपलब्ध होता है, वह पुनर्जन्म को | उपलब्ध नहीं होता, क्योंकि वह शाश्वतता के साथ एक हो गया। 311
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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