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________________ * गीता दर्शन भाग-4% करते हैं, उससे ऊपर आप कभी नहीं जा सकते हैं। आपकी श्रद्धा | डांवाडोल करो! यह थोड़ा डांवाडोल हो जाए, तो मेरा सिंहासन आपका अंतिम बिंदु बन जाती है। वह आपके व्यक्तित्व के विकास स्थिर हो जाए। का लक्ष्य हो जाती है। तो आदमी जिसको पूजता है, अनजाने तय जो भी सिंहासन पर है, वह सदा डरा हुआ रहेगा ही; घबड़ाया कर रहा है कि यही मैं होना चाहता हूं। रहेगा। ध्यान रखें, आज अगर सड़क से एक संन्यासी जा रहा हो, तो | मैंने सुना है, इटली में एक बहुत पुराना मंदिर है; अभी भी है। कोई भीड़ नहीं लग जाती उसके आस-पास। कभी लगती थी। | उसकी बड़ी पुरानी कथा है और बड़ी हैरानी की है। उस मंदिर का आज से दो हजार साल पीछे, बुद्ध अगर गांव से गुजरते, संन्यासी | | इतिहास अनूठा है। एक पहाड़ की तलहटी में एक छोटी-सी झील गांव से गुजरता, तो भीड़ लग जाती थी। सारा गांव इकट्ठा हो जाता | || के पास वह मंदिर है, एक बड़े वृक्ष के नीचे। उस मंदिर का जो था। क्योंकि चाहे कोई दुकान कर रहा हो, चाहे कोई खेती कर रहा । पुजारी है, वह दुनिया के इतिहास में अनूठे ढंग का पुजारी है। उस हो, अंतिम श्रद्धा यही थी कि एक दिन मुझे भी संन्यासी हो जाना | | मंदिर का पुजारी बनने का एक ही उपाय है; अगर कोई व्यक्ति है। चाहे न हो पाए; तो इसकी पीड़ा रह जाएगी, दंश रह जाएगा। | मौजूद पुजारी की हत्या कर दे, तो ही वह व्यक्ति वहां का पुजारी लेकिन आज संन्यासी को देखकर कोई भीड़ इकट्ठी नहीं होती। हां, बन सकता है। अभिनेता निकलता हो, तो भीड़ इकट्ठी हो जाती है। वह हमारी श्रद्धा तो तलवार लिए पुजारी खड़ा रहता है चौबीस घंटे। क्योंकि पूरे है। वही हम होना चाहते हैं। भला न हो पाएं, भला न हो पाएं, होना | वक्त सोना मुश्किल हो जाता है। सो नहीं सकता। सोए, कि गए। वही चाहते हैं। | जिंदगी हराम हो जाती है; क्योंकि पूरे वक्त...। और कोई नहीं है जो हम होना चाहते हैं, वह हमारा श्रद्धा-पात्र हो जाता है। | उस जंगल में, उस वृक्ष के नीचे एक पुजारी अपनी तलवार लिए श्रद्धा-पात्र का अर्थ है, वह मेरे भविष्य की तस्वीर है; यही मैं होना | | अपनी रक्षा करता रहता है। और आज नहीं कल, उसे पता है कि चाहता हूं। और जो व्यक्ति जिसको श्रद्धा करता है, धीरे-धीरे वैसा | | मौत तो होगी ही। क्योंकि वह भी इसी तरह पुजारी बना है! वह भी ही हो जाता है। हो ही जाएगा, क्योंकि श्रद्धा से हमारी आत्मा निर्मित | किसी को इसी तरह मारा है, तभी पुजारी बना है। और यह सतत होती है, और श्रद्धा हमारी आत्मा का गठन करती है, और श्रद्धा | परंपरा है। कोई उसे मारेगा और पुजारी बनेगा। और जो बनेगा हमारी आत्मा को रूपांतरित करती है। श्रद्धा सोचकर करना! बहुत | | पुजारी, वह भलीभांति जानता है कि वह जिस जगह जा रहा है, वहां होशियारी से, बहुत बुद्धिमानी से। क्योंकि श्रद्धा ढांचा बनेगी, | तलवार लिए खड़े रहना है, और कोई उसकी हत्या करेगा। जिसमें अंततः आप ढल जाएंगे। यह बड़ी महत्वपूर्ण बात है! सभी पदों की हालत ऐसी ही है। जो तो कृष्ण कहते हैं, जो देवताओं को पूजते हैं, वे देवताओं को | | भी वहां पहुंचता है, किसी को मारकर, हटाकर, परेशान करके प्राप्त होते हैं। पहुंचता है। पहुंचते से ही फिर उसको चौबीस घंटे तलवार लिए लेकिन देवता तो स्वयं ही वासनाओं से घिरे हुए जीते हैं! चाहे | खड़े रहना पड़ता है; क्योंकि जिस रास्ते से वह आया है, उसी रास्ते इंद्र हो, तो भी वासनाओं से भरा हुआ जीता है! हम सबको कथाएं | | से दूसरे भी आएंगे। और उसे पक्का मालूम है कि वह सदा वहां पता हैं कि अगर पृथ्वी पर कोई आदमी बहुत तपश्चर्या करे, तो इंद्र | नहीं रह सकता; कोई आएगा पीछे। क्योंकि अगर सदा वहां कोई का सिंहासन डोलने लगता है। इसका मतलब यह है कि ईर्ष्या से | | रह सकता होता, तो वह खुद भी वहां नहीं पहुंच सकता होता। कोई वह भर जाता है, क्योंकि उसे डर होता है कि कोई दूसरा समर्थ | | और ही रहा होता। वह पहुंच गया; कोई और पहुंच जाएगा। आदमी इंद्र होने की स्थिति में आया जा रहा है। अगर यह सफल | | हर पद के पास, हर धन के पास, हर प्रतिष्ठा के, हर सिंहासन हो गया तपश्चर्या में, तो मुझे पद से हट जाना पड़ेगा, और यह | | के पास मौत की घबड़ाहट है। इंद्र घबड़ाया हुआ है; देवता घबड़ाए आदमी मेरे पद पर बैठ जाएगा। | हुए हैं। वासना से भरे हुए हैं, इच्छाओं से भरे हुए हैं। तो इंद्र बेचारा चौबीस घंटे अपने सिंहासन को बचाने में ही लगा। कृष्ण कहते हैं कि देवताओं को पूजकर ज्यादा से ज्यादा अगर हुआ है! कहीं कोई तपश्चर्या करे, कठिनाई उसे होती है! भेजता है कोई आदमी पूरी तरह सफल हो गया, तो देवता हो जाएगा, इससे उर्वशियों को, अप्सराओं को कि जाकर भ्रष्ट करो! इस आदमी को ऊपर नहीं जा सकता! 3101
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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