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________________ *खोज की सम्यक दिशा * हैं कि अब कल क्रोध नहीं होगा, क्योंकि मैं पछता लिया हूं। लेकिन क्रोध के कारण एक गड्ढे में पड़ गए थे, क्रोध के कारण थोड़ी पछताए तो आप कल भी थे, परसों भी थे। दीनता आ गई थी। क्रोध के कारण मन को लगा कि उतना अच्छा आप सिर्फ पुनरुक्त कर रहे हैं। क्रोध भी करते हैं, पछता भी लेते आदमी नहीं हूं, जितना दावा करता था। पछतावा करके वापस हैं। फिर क्रोध करते हैं, फिर पछता लेते हैं। अपनी जगह खड़ा हो गया, उसी जगह, जहां क्रोध के पहले था। एक मित्र मेरे पास आते हैं; क्रोधी हैं। ऐसे तो कौन नहीं है; थोड़े। | अब आप फिर क्रोध कर सकते हैं, क्योंकि उसी जगह से आपने ज्यादा हैं। कहते हैं कि किसी तरह मेरा क्रोध छट जाए। बहत क्रोध किया था। पछताते हैं, रोते हैं, छाती पीटते हैं—जब क्रोध कर लेते हैं। मन एक पुनरुक्ति है। और मन के आधार पर जीने वाला आदमी मैंने उनसे कहा, क्रोध की फिक्र छोड़ो; तुम पछताना बंद कर दो। | अपने पूरे जीवन को एक पुनरुक्ति बना लेता है, जस्ट ए एक काम करो। तुम जिंदगीभर से क्रोध छोड़ने की कोशिश कर रहे | | रिपीटीशन, ए मैकेनिकल रिपीटीशन; यंत्रवत घूमते चले जाते हैं। हो, वह तो नहीं छूटा; तुम मेरी मानो, क्रोध की फिक्र छोड़ो, तुम इसका जो बड़े से बड़ा वर्तुल है, वह पूरा जीवन है। सिर्फ भारत को पछताना बंद कर लो। एक बात पक्की कर लो कि अब क्रोध होगा, इस बात का खयाल आ पाया। तो पछताऊंगा नहीं। __ भारतीय धर्मों के अतिरिक्त दुनिया का कोई धर्म पुनर्जन्म का उन्होंने कहा, आप कैसे खतरनाक आदमी हैं! मैं आया हूं क्रोध | | खयाल नहीं करता, रि-बर्थ का खयाल नहीं करता। क्योंकि भारत छोड़ने, आप मेरा पछतावा भी छुड़ा देना चाहते हैं। फिर तो मैं | के अलावा दुनिया के किसी धर्म ने मनुष्य के मन की इस कीमिया महानर्क में पड़ जाऊंगा। को ठीक से नहीं समझा कि अगर मनुष्य का मन पुनरुक्त करता है, मैंने उनसे कहा, कोई भी तो आदत तोड़ो। अगर क्रोध की नहीं | | तो पूरा जीवन भी एक वृहदकाय वर्तुल होगा और आदमी फिर टूटती, पछतावे की तोड़ो; सर्किल टूट जाएगा; पछतावा ही तोड़ो। पुनरुक्त करेगा! और हमने बार-बार किया है! तो दूसरे क्रोध को आने का मौका नहीं रहेगा, क्योंकि बीच की एक | ___ हम बार-बार उसी तरह लोभ में पड़े हैं, अनेक जन्मों में। सीढ़ी हट गयी। अब तक की व्यवस्था यह है तुम्हारी-क्रोध, बार-बार उसी तरह वासना में गिरे हैं, अनेक जन्मों में। बार-बार पछतावा; क्रोध, पछतावा; क्रोध। यह तुम्हारा सर्किल है। कहीं से | मकान बनाए, धन कमाया, पद कमाया। बार-बार असफल हुए, भी सर्किट तोड़ो, कहीं से भी तार को अलग खींच लो। क्रोध से | | अनेक जन्मों में। और हर बार फिर वही, हर बार फिर वही! नहीं खींच सकते, पछतावे से खींच लो। अगर पछतावा नहीं कर | | कृष्ण कहते हैं कि ऐसे जो देवताओं को भजते हैं, बिना मुझे पाए; तो मैं वचन देता हूं कि दूसरा जो क्रोध इसके पीछे आना जाने, अर्थात जो अपनी वासनाओं को ही उपासना बना लेते हैं, जो चाहिए, उसके लिए रास्ता नहीं मिलेगा। किसी मांग से प्रार्थना करते हैं, वे बार-बार गिरते हैं और पुनर्जन्म यह आप चकित होंगे जानकर कि आप इसलिए नहीं पछताते हैं | को उपलब्ध होते हैं। कारण यह है कि देवताओं को पूजने वाले कि आप जानते हैं कि क्रोध बुरा है। आप इसलिए पछताते हैं, ताकि देवताओं को प्राप्त होते हैं। क्रोध की पहली अवस्था फिर से पा ली जाए, और फिर से आप __यह बहुत कीमती सूत्र है। क्रोध करने में समर्थ हो जाएं। कारण यह है कि पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं। पछतावा जो है, वह क्रोध की ट्रिक है। पछतावा जो है, कारण यह है कि भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं। कारण पश्चात्ताप जो है, वह क्रोध की होशियारी है; वह अहंकार की | | कि व्यक्ति जो भी पूजता है, अंततः वही हो जाता है। और व्यक्ति उस्तादी है, चालाकी है। जब आप क्रोध कर लेते हैं, तो आपको | | जो भी पूजता है, अंततः उससे ऊपर नहीं जा सकता। कोई भी लगता है, उतना अच्छा आदमी नहीं हूं, जितना मैं अपने को | | व्यक्ति अपने श्रद्धेय से ऊपर नहीं जा सकता। समझता था। पछतावा करके आप फिर समझते हैं कि उतना ही इसे थोड़ा हम समझ लें। अच्छा आदमी हैं, अपने को समझता था। अहंकार अपना आप जिसको श्रद्धा करते हैं. वह आपका मैक्सिमम. आपका पुराना लेबल फिर से पा लेता है; वहीं पहुंच जाता है, जहां क्रोध के श्रेष्ठतम, अंतिम बिंदु हो गया। श्रद्धा जरा सोचकर करना, क्योंकि पहले था। | श्रद्धा आपके भविष्य की लकीर हो जाएगी। जिसको आप श्रद्धा | 309|
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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