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________________ * खोज की सम्यक दिशा * रहा, भोजन महत्वपूर्ण नहीं रहा, बाहरी औपचारिकता महत्वपूर्ण न | का जन्म होता है। और वह विधि विधियों जैसी नहीं होती; वैयक्तिक रही, अंतस का निवेदन महत्वपूर्ण हो गया है। यह जब खड़ा है होती है, निजी होती है, एक-एक व्यक्ति की अपनी होती है। सामने भगवान के, तो सब मिट गया बाहर का। इसके भीतर का । क्योंकि संपूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूं। आंतरिक लगाव ही सब कुछ है। चढ़ाओ तुम कहीं से फूल, मुझ तक पहुंच जाते हैं; और गाओ एक दिन ऐसा हुआ कि रामकृष्ण खड़े हुए रो रहे हैं। पूजा के | तुम गीत कहीं, वह मेरे पास चला आता है; और करो तुम कुछ, फूल कुम्हला गए, पूजा के लिए जलाया गया दीप बुझ गया, और | सभी कुछ मुझे समर्पित हो जाता है। रामकृष्ण खड़े रो रहे हैं, पूजा शुरू ही नहीं हुई है। जो पूजा देखने कृष्ण यह कह रहे हैं कि मैं केंद्र हूं अस्तित्व का। तुम कहीं भी चले आए थे, वे थोड़ी देर में ऊबकर जाने लगे कि यह किस भांति कुछ करोगे-तुम्हारा बुरा भी, तुम्हारा भला भी; तुम्हारा ठीक भी, की पूजा है! दीया बुझ गया, फूल कुम्हला गए, भोग भी रखा-रखा तुम्हारा गलत भी सब मुझ तक पहुंच जाता है, तुम्हें पता हो या ठंडा हो गया, रामकृष्ण खड़े होकर आंख बंद किए रो रहे हैं। यह | न पता हो। फर्क पड़ेगा, अगर तुम्हें पता हो। तो तुम्हारी जिंदगी में कब तक चलेगा! क्रांति हो जाएगी। लोग चले गए, मंदिर खाली हो गया, आधी रात हो गई। । परंतु वे मुझ अधियज्ञ-स्वरूप परमेश्वर को तत्व से नहीं जानते रामकृष्ण ने आंखें खोली, और काली के सामने लटकी थी तलवार, । उसको खींचकर निकाल लिया। और कहा चिल्लाकर कि बहुत - वे जो सारा जीवन मेरे आस-पास घूमते हैं, उन्हें तत्व से पता चढ़ाए फूल और बहुत चढ़ाया भोग, अब तक कुछ हुआ नहीं नहीं है कि वे किसकी परिक्रमा कर रहे हैं? किसका परिभ्रमण कर उससे, आज अपने को ही चढ़ाता हूं! | रहे हैं? किसके आस-पास घूम रहे हैं? घूमते रहते हैं पागल की • तलवार गर्दन के पास आ गई एक झटके में, और जैसे बिजली | तरह, पर उन्हें पता नहीं कि जहां वे घूम रहे हैं, वह प्रभु का मंदिर कौंध गई। किसने हाथ से तलवार छीन ली, पता नहीं! कैसे तलवार है, उसकी परिक्रमा है। नीचे गिर गई, पता नहीं। सुबह रामकृष्ण बेहोश मिले। बेहोश तो | - इसी से गिरते हैं, अर्थात पुनर्जन्म को उपलब्ध होते हैं। थे, लेकिन चेहरे पर उनके जो स्वर्ण-आभा आ गई थी, वह इस संबंध में दो-तीन बातें समझ लेनी जरूरी हैं, जो कि भारतीय कभी-कभी सदियों में एकाध आदमी के चेहरे पर आती है। चिंतन के आधार कहे जा सकते हैं। तीन दिन लगे होश में आने में। तीन दिन बाद जब होश में आए, ___ एक, भारतीय चिंतन सदा से विकासवादी है, एवोल्यूशनरी है। तो लोगों ने पूछा, क्या हुआ? रामकृष्ण ने कहा, पूजा हुई। पूजा भारतीय चिंतन मानता है कि व्यक्ति को लौट-लौटकर उसी पूरी हो गई। अवस्था में बार-बार नहीं गिरना चाहिए, क्योंकि उसका अर्थ हुआ उस दिन के बाद रामकृष्ण ने फूल नहीं चढ़ाए, उस दिन के बाद | कि उसके जीवन में कोई विकास नहीं हो रहा है। कल मैंने जो किया भोग नहीं लगाया, उस दिन के बाद दिनों बीत जाते थे, मंदिर के | था, अगर वही भूल मैं आज भी करता हूं और कल भी करता हूं, भीतर भी नहीं जाते थे। फिर तो दूसरा पुजारी रख लेना पड़ा, जो | तो मेरी चेतना में कोई विकास नहीं हो रहा है। अगर जिंदगीभर मैं जब वे नहीं आते थे, तो पूजा कर देता था। कभी-कभी रामकृष्ण | एक सर्किल में घूमता रहता हूं, बार-बार वही करता हूं, बार-बार जाते थे, और जाकर ऐसी बातचीत कर लेते थे, जैसी मित्रों के बीच वही भोगता हूं, तो मेरी जिंदगी विकासमान नहीं है, मेरी जिंदगी होती है। कोई पूछता कि आपने पूजा बंद कर दी? रामकृष्ण कहते | वर्तुलाकार है और चाक की भांति घूमती चली जाती है। विकासमान कि अपने को ही चढ़ा दिया; अब बचा नहीं वह, जो पूजा करे। । | तो वह है, जो नए को उपलब्ध होता है और पुराने को पुनरुक्त नहीं पूजा की आत्यंतिकता तो तब है, जब कोई अपने को ही समर्पित करता। रिपीटीशन नहीं करता पुराने का, तो आगे जाता है। कर देता और चढा देता है। लेकिन विधियां औपचारिक हैं. फार्मल ___ एडीसन ने अपने एक पत्र में किसी को लिखा है कि रोज सांझ हैं, बाहर हैं। कृष्ण जानते हैं भलीभांति कि यह जो देवताओं की पूजा | को सूरज से यह प्रार्थना करता हूं कि जहां तूने सुबह मुझे पाया था, चलती है, विधिपूर्वक चलती है, लेकिन उसे वे अविधि कहते हैं। | वहां सांझ मुझे मत पाना; रात यह प्रार्थना करके सोता हूं कि सूरज, इसलिए, क्योंकि अज्ञान में अविधि ही हो सकती है। ज्ञान में ही विधि | | सांझ तू मुझे जहां छोड़ गया है, कुछ ऐसा हो कि सुबह तू मुझे वैसा 307
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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