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* खोज की सम्यक दिशा *
अपनी एकता को खोज लें, जिसकी कोई मृत्यु नहीं है। यह तो ठीक | | लिए की गई पूजा; सुख के लिए की गई पूजा। मंदिर में खड़ा कोई दिशा होगी। हम इंतजाम करते हैं मौत से बचने का, और उससे जुड़े | मांग रहा है परमात्मा से कुछ, किसी भी देवता के सामने मांग रहा रहते हैं, जो मरेगा ही! शरीर से जुड़े रहते हैं, जो कि मरेगा ही; मृत्यु | है; हजार उनके नाम हैं, हजार उनकी शक्लें हैं, हजार उनके जिसमें अंतर्निहित है, मृत्यु जिसका हिस्सा है। उसका हम इंतजाम | | पूजास्थल हैं; लेकिन जब भी किसी पूजास्थल पर और किसी भी करते हैं बचाने का! इंतजाम में समय व्यतीत हो जाता है और मौत | | देवता की प्रतिमा के समक्ष कोई कुछ मांग रहा है, तब वह अज्ञान आ जाती है। उसकी खोज नहीं कर पाते, जो कि कभी मरा ही नहीं से भरा हुआ है। क्योंकि जिसके पास होने से ही सब मिल जाता है और कभी मरेगा ही नहीं। वह भी मौजूद है।
है, अगर उससे भी मांगना पड़े, तो उसका अर्थ है कि हमें पास होना __ अगर यह आकांक्षा ठीक हो, तो अमृत की खोज बनेगी; अगर । ही पता नहीं है। जिसके निकट होने से ही सब मिल जाता है, उसके यह आकांक्षा गलत हो, तो मृत्यु से बचाव बनेगी। अगर धन की | | पास भी जाकर मांगना पड़े, तो उसका अर्थ है, हम पास पहुंचे ही खोज ठीक हो, तो उस परम धन की खोज बन जाएगी, परम संपदा | नहीं, उपासना हुई ही नहीं। की। अगर गलत हो, तो हम धातु के ठीकरे इकट्ठे करने में जिंदगी इसलिए कृष्ण कहते हैं, अविधिपूर्वक है। उसे विधि का भी पता व्यतीत कर देंगे। अगर पद की खोज सही हो, तो परमात्मा के | नहीं है कि वह क्या कर रहा है! सिवाय और कोई पद नहीं है। अगर गलत हो, तो हम आदमियों | अगर सूरज के सामने कोई हाथ जोड़कर खड़ा हो और कहे कि को नीचे-ऊंचे बिठालने में अपनी सारी शक्ति को व्यय कर देंगे।। हे सरज मझे प्रकाश दे। तो एक बात पक्की है कि वह आदमी अंधा यह मनुष्य की...।
| होगा। क्योंकि सरज के सामने आंख खोलकर खडे होने से प्रकाश (बीच से उठकर किसी ने कुछ पूछा।)
| मिलता ही है; अब इसकी मांग की कोई जरूरत न रही। लेकिन • लिखकर कुछ भी दे दें, इतनी दूर से सुनाई नहीं पड़ेगा। लिखकर अगर कोई आदमी मांग रहा है सूरज के सामने हाथ जोड़कर, दे दें, और लोगों को बाधा न डालें। लिखकर पहुंचा दें। | गिड़गिड़ा रहा है, रो रहा है, घुटने टेके खड़ा है; और कह रहा है
कृष्ण ने कहा है इस सूत्र में कि हे अर्जुन, यद्यपि श्रद्धा से युक्त कि हे सूरज, मुझे प्रकाश दे! तो एक बात तय है कि वह आदमी हुए जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैं, वे भी मेरे को ही | | अंधा है। उसे यह भी पता नहीं है कि वह सूरज के सामने खड़ा है। पूजते हैं।
और सूरज के सामने होने का मतलब ही प्रकाश का मिल जाना हो चाहे पूजा किसी की भी हो रही हो, अंततोगत्वा पूजा मेरी ही जाता है। और कुछ मांगने की जरूरत नहीं। होती है, कृष्ण कहते हैं। पूजने वाले को भी पता न हो कि वह तो जो व्यक्ति परमात्मा के सामने भी कुछ मांगता हुआ पहुंचता किसकी पूजा कर रहा है, लेकिन पूजा मेरी ही हो सकती है। | है, एक बात पक्की है, उसे पता नहीं है कि जहां वह मांग रहा है, कारण? पूजा करने वाले को भी जब पता नहीं है, तो कृष्ण किस | वहां परमात्मा है। उसकी मांग ही बता रही है कि उसे परमात्मा के अर्थ में कह रहे होंगे कि पूजा मेरी ही होती है?
पास होने का खयाल भी नहीं है। वह अपनी मांग में ही घिरा हुआ वे इसी अर्थ में कह रहे हैं कि तुम्हारी वासनाएं कहीं भी दौड़ें और चल रहा है। चारों तरफ मांग ही उसको घेरे हुए है। उपासना संभव तुम्हारी पूजा किन्हीं चरणों में पड़े, और तुम श्रद्धा से कहीं भी सिर नहीं है उसे। वासना में ही दबा हुआ है। रखो, तुम मेरी ही तलाश में हो। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि | । इसलिए कृष्ण कहते हैं, चाहे वह कितनी ही विधि करता हो...। कहां तुम्हारी आंख जा रही है। अंततः तुम्हारी आंख मुझे ही खोज विधि बहुत करता है। सच तो यह है कि जो विधि बिलकुल नहीं रही है। तुम कहीं भी खोजो, तम्हारी आंख की आत्यंतिक शरण मैं जानता है, वह बहत विधि करता है। कितनी विधियां नहीं पजा और ही हूं।
| प्रार्थना करने वाले लोग करते हैं। सकाम विधियां हजार हैं, लाख किंतु उनका वह पूजना अविधिपूर्वक है, अज्ञानपूर्वक है। । | हैं। कितना-कितना उपाय करना पड़ता है! क्या-क्या सामग्री
पूजते वे मुझे ही हैं, फिर भी ज्ञानपूर्वक नहीं। क्योंकि उन्हें स्वयं जुटानी पड़ती है। एक-एक व्यवस्था से एक-एक कदम उठाना ही पता नहीं है कि वे क्या खोज रहे हैं। उन्हें स्वयं ही पता नहीं है। | पड़ता है।
सकाम पूजा का अर्थ है, धन के लिए, पद के लिए, जीवन के पूजा एक पूरा रिचुअल है, एक क्रिया-कांड है; उसमें जरा भी
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