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________________ वासना और उपासना * आपके मुंह के संबंध में मुझे कुछ पता नहीं, लेकिन आपने जिस हाथ से मुझे दिया है, उस हाथ में सभी कुछ मीठा हो जाता है। निष्काम भावना का अर्थ है, परमात्मा जो भी दे रहा है, वह उसकी अनुकंपा है, हमारी कोई मांग नहीं है। और वह जो भी दे रहा है, उस सभी के लिए हम अनुगृहीत हैं। उसमें भेद नहीं है कि इस बात के लिए अनुग्रह है और इस बात के लिए शिकायत है । जिस आदमी के मन में शिकायत है, वह आस्तिक नहीं है। आस्तिक की मेरी तरफ एक ही परिभाषा है, वह आदमी नहीं, जो कहता है, ईश्वर है । वह आदमी नहीं, जो कहता है कि ईश्वर है, इसके मैं प्रमाण दे सकता हूं। वह आदमी नहीं, जो ईश्वर है, ऐसी मान्यता रखकर जीता है। आस्तिक का एक ही अर्थ है, वह आदमी, जिसकी अस्तित्व के प्रति कोई शिकायत नहीं है। ईश्वर का नाम भी न ले, तो चलेगा। चर्चा ही न उठाए, तो भी चलेगा। ईश्वर की बात भी न करे, तो भी चलेगा। लेकिन अस्तित्व के प्रति, जीवन के प्रति उसकी कोई शिकायत नहीं है। यह सारा जीवन उसके लिए एक आनंद उत्सव है। यह सारा जीवन उसके लिए एक अनुग्रह है, एक ग्रेटिटयूड है । यह सारा जीवन एक अनुकंपा है, एक आभार है। उसके प्राण का एक-एक स्वर धन्यवाद से भरा है, जो भी है, उसके लिए। उसमें रत्तीभर फर्क की उसकी आकांक्षा नहीं है। " ऐसा व्यक्ति, कृष्ण कहते हैं, निष्काम भाव से उपासता है मुझे। उसके योग-क्षेम की मैं स्वयं ही चिंता कर लेता । उसे अपने न तो योग की चिंता करनी है और न क्षेम की। यहां एक बड़ी अदभुत बात है । और आमतौर से जब भी कोई इस सूत्र को पढ़ता है, तो उसको कठिनाई क्षेम में मालूम पड़ती है, योग में नहीं ! इस सूत्र पर जितने व्याख्याकार हैं, उनको कठिनाई | क्षेम में मालूम पड़ती है। वे कहते हैं, योग तो ठीक है कि परमात्मा सम्हाल लेगा, अंतिम मिलन को; लेकिन यह जो रोज दैनंदिन का जीवन है, यह जो रोटी कमानी है, यह जो कपड़ा बनाना है, यह जो मकान बनाना है, यह जो बच्चे पालने हैं - यह सब यह परमात्मा कैसे करेगा? हालत दूसरी होनी चाहिए। हालत तो यह होनी चाहिए कि ये छोटी-छोटी चीजें शायद परमात्मा कर भी लेगा। योग, साधना की अंतिम अवस्था, वह कैसे करेगा! लेकिन वह किसी को खयाल नहीं उठता। हम सबको डर इन्हीं सब छोटी चीजों का है, इसीलिए। उस बड़ी चीज पर तो हमारी कोई दृष्टि भी नहीं है। मोहम्मद, सांझ जो भी उन्हें मिलता था, बांट देते थे। कोई भेंट | कर जाता, कोई दे जाता, कोई चढ़ा जाता, वे सांझ सब बांटकर, रात फकीर होकर सो जाते थे। मोहम्मद जैसा फकीर मुश्किल से होता है। और एकबारगी सब छोड़ देना बहुत आसान है। महावीर ने | एकबारगी सब छोड़ दिया; यह बहुत आसान है। मोहम्मद ने एकबारगी सब नहीं छोड़ा; रोज-रोज छोड़ा। यह बहुत कठिन है। सुबह लोग दे जाते, तो मोहम्मद ले लेते, और सांझ सब बांट देते। रात फकीर होकर सो जाते। आदेश था घर में कि एक चावल का टुकड़ा भी बचाया न जाए। क्योंकि जिसने आज सुबह दिया था, वह कल सुबह देगा। और नहीं देगा, तो उसकी मर्जी । नहीं देगा, तो इसीलिए कि देने की बजाय न देना हितकर होगा। सांझ सब बांट देना है। जिसने आज सुबह फिक्र की थी, कल सुबह फिक्र करेगा । नहीं करेगा, तो उसका अर्थ है कि वह चाहता है, आज हम भूखे रहें। उसका अर्थ है कि वह चाहता है, आज भोजन की बजाय भूख हितकर है। 295 ठीक चलता रहा। मोहम्मद की जिद्द थी, इसलिए कोई रोकता नहीं था। लेकिन फिर मोहम्मद बीमार पड़े और अंतिम रात आ गई। तो पत्नी को भय लगा ! उसे लगा, और दिन तो सब ठीक था, लेकिन आज आधी रात में भी दवा की जरूरत पड़ सकती है। | सुबह वह देगा, लेकिन आधी रात ! पत्नी का मन, प्रेम के कारण ही, पांच दीनार, पांच रुपए उसने बचाकर रख लिए। मोहम्मद बेचैन हैं। करवट बदलते हैं, नींद नहीं आती। रात बारह बज गए हैं। आखिर उन्होंने उठकर कहा कि मुझे लगता है कि मेरे जीवनभर का नियम आज टूट गया है। मुझे नींद नहीं आती! मैं तो सदा सो जाता था। आज मेरी हालत वैसी है, जैसी धनपतियों की होती है। करवट बदलता हूं, नींद नहीं आती। मैं सदा का गरीब, मुझे कभी कोई चिंता नहीं पकड़ी। रात मुझे कोई सवाल नहीं था। आज क्या हो रहा है? मुझे डर है कि कहीं कुछ बचा तो नहीं लिया गया ! पत्नी घबड़ा गई। उसने कहा कि क्षमा करें, भूल हो गई बड़ी ! पांच रुपए मैंने बचा लिए, इस डर से कि बीमार हैं आप; पता नहीं, रात दवा-दारू की, चिकित्सक की, वैद्य की जरूरत पड़ जाए, तो मैं क्या करूंगी ! तो मोहम्मद ने कहा कि जीवनभर के अनुभव के बाद भी कि हर | सुबह वह सम्हालने मौज़ूद रहा, तुझे बुद्धि न आई ! जीवनभर के अनुभव के बाद ! और जो हर सुबह मौजूद रहा, अगर जरूरत
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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