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*वासना और उपासना
अकारण घटित होता है; और जो भी क्षुद्र है, वह सकारण होता है। की घटना परमात्म में; वह मैं सम्हाल लेता हूं। और क्षेम से अर्थ अगर इस जगत में भी कभी प्रेम घटित होता है, तो वह उपासना है, जब तक वह घटना न घट जाए, तो जो भी जरूरी है, वह भी मैं जैसा होता है; वासना जैसा नहीं होता। कभी हम एक व्यक्ति को | सम्हाल लेता हूं। क्षेम से अर्थ है, योग जब तक न घटे, तब तक इसलिए प्रेम नहीं करते कि कोई भी कारण है। बस, उसके पास | जो भी जरूरी हो! अगर शरीर की जरूरत हो, तो शरीर को सम्हाल होना काफी है। वह क्या करेगा, यह नहीं। उससे कोई मांग नहीं, लूंगा। अगर भोजन की जरूरत है, तो भोजन को सम्हाल लूंगा। कोई अपेक्षा नहीं। बस, वह है, इतना काफी है। उसकी उपस्थिति अगर श्वास की जरूरत है, तो श्वास को सम्हाल लूंगा। जब तक काफी है। उससे क्या मिलता है, इसका भी कोई हिसाब नहीं है। वह परम घटना नहीं घटती है, तब तक उसके पहले जो-जो बिना कारण।
आवश्यक है, वह भी मैं सम्हाल लूंगा। उसका नाम है क्षेम। और तो जगत में भी प्रेम का फूल खिलता है कभी बिना कारण। | जब क्षेम के बाद वह परम घटना घट जाएगी, आखिरी, वह भी मैं प्रार्थना भी कभी बिना कारण हो, तो फूल बन जाती है।
सम्हाल लूंगा। मंदिर में जाएं, सब कारण बाहर रख जाएं जहां जते उतारते हैं। कृष्ण यह कहते हैं कि एक बार तू अपनी मांग छोड़, तो मैं सब एक बार जूता भी भीतर चला जाए, तो मंदिर अपवित्र नहीं होगा। | सम्हालने को तैयार हूं। और जब तक तू मांग किए जाता है, तब लेकिन कारण भीतर मत ले जाएं। कारण भीतर ले गए, तो सब | तक मैं कुछ भी नहीं सम्हाल सकता हूं। न सम्हालने का कारण है। अपवित्र हो जाता है। कारणों को वहीं उतार जाएं, जहां जूते उतार | | क्योंकि जब तक तू मांग किए जाता है, तब तक तू अपने को मुझसे देते हैं। सब कारण वहां रख जाएं। सब वासनाएं वहां रख जाएं। ज्यादा समझदार समझे चला जाता है। मंदिर में तो सिर्फ होने के आनंद के लिए जाएं। थोड़ी देर उसके पास | मांग का मतलब ही यह होता है। एक आदमी जाता है मंदिर में होंगे। कुछ मत करें वहां। कुछ करना जरूरी नहीं है। बस, चुपचाप | और भगवान से कहता है कि यह क्या किया? यह कैंसर मुझे हो वहां बैठ जाएं। सिर्फ उसकी मौजूदगी अनुभव करें। उसमें भी | गया! यह कैसा न्याय है? अनुभव क्या करना है! शांत बैठे, तो अनुभव होने लगेगी। वह वह यह कह रहा है कि तुमसे ज्यादा अकल तो हममें है! हम वहां है ही, सभी जगह है।
| समझते हैं कि यह न्याय नहीं है। और क्या कर रहे हो बैठे वहां? एक बार मंदिर में होने लगे, तो कोई कारण नहीं है कि मस्जिद जिन मित्र का मैंने उल्लेख किया, उन्होंने मुझे पत्र में लिखा है, में क्यों न हो! एक बार मस्जिद में होने लगे, तो कोई कारण नहीं है | | क्या ईश्वर न्याय-युक्त है? अगर न्याय-युक्त है, तो मुझे कैंसर
न हो। और एक बार कहीं भी होने लगे, तो कोई क्यों हआ? लिखा है कि मैंने जिंदगी में कोई रिश्वत नहीं ली, कोई भी कारण नहीं है कि और कहीं क्यों न हो! कहीं भी होगा। कहीं| | बुरा काम नहीं किया, किसी को सताया नहीं, फिर यह फल मुझे भी शांत बैठ जाएं, वह मौजूद है। चुप हो जाएं, सिर्फ उसकी | | मिला! तो ईश्वर न्याय-युक्त है, इसे सिद्ध करके बताएं। मौजूदगी को अनुभव करें, तो उपासना है।
निश्चित ही अन्याय हो गया। निश्चित अन्याय हो गया, क्योंकि और मांग कोई भी न हो। रत्तीभर भी नहीं। रत्तीभर भी नहीं। | कैंसर आ गया। इसका मतलब यह हुआ कि यह आदमी कहता है अगर वह देने को भी राजी हो जाए, अगर वह कहे भी कि मांग लो, | | कि मैंने कोई बुरा नहीं किया, इसका इसे भरोसा है! इस पर इसे तो भी खोजने से मांग का भीतर पता न चले। कहना पड़े उससे कि | | शक नहीं आता, कि शायद कोई बुरा किया हो! इस पर इसे कोई असमर्थ है, कोई मांग नहीं है। ऐसी स्थिति में होगी निष्काम भाव | | शक नहीं आता। इस पर भी इसे कोई शक नहीं आता कि इसे कैंसर से उपासना।
नहीं होना चाहिए। इस पर भी कोई शक नहीं आता। और इस पर और जो निष्काम भाव से उपासना करता है, कृष्ण कहते हैं, | | भी इसे कोई शक नहीं आता कि कैंसर के होने में अन्याय है ही! उसका योग-क्षेम, दोनों ही मैं सम्हाल लेता हूं।
| या कैंसर कोई ऐसी बुराई है, जो होनी ही नहीं चाहिए! इस पर भी योग और क्षेम शब्द को समझ लेना चाहिए।
| इसे कोई खयाल नहीं आता। एक बात पक्की खयाल आ जाती है योग से अर्थ है, वह परम प्रतीति, अंतिम प्रतीति प्रभु-मिलन कि ईश्वर अन्यायी है, न्याय-युक्त नहीं है। कोई जस्टिस नहीं है। की, पूर्ण के साथ एक होने की। योग से अर्थ है, व्यक्ति के मिटने अगर आज यह ईश्वर की प्रार्थना करे और इसका कैंसर ठीक हो
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