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________________ * गीता दर्शन भाग-4* रामकृष्ण कहते हैं, कहा था मैंने पहले ही; तू क्यों नहीं कह देता, | ठीक है, अब भी प्रेम है। लेकिन प्रेम तिरोहित हो गया होगा। वे सब सम्हाल लेंगी। क्योंकि प्रेम का कोई कारण था। विवेकानंद ने कहा, कौन-सी बात सम्हाल लेंगी? कोई जवान है, इसलिए मेरा उससे प्रेम है। कल वह बूढ़ा हो रामकृष्ण ने कहा कि मैंने तुझे कहा था, उनसे कह दे कि घर में | जाएगा, फिर कैसे प्रेम टिकेगा? कोई बुद्धिमान है, इसलिए मेरा कुछ भी नहीं है। उससे प्रेम है; कारण है। कोई धनी है, कोई स्वस्थ है, कोई विवेकानंद ने कहा, वह तो मैं भूल ही गया, वह तो मुझे याद ही कलाकार है। कुछ है कारण। न रहा। इतने पास था उनका होना कि दोनों के बीच में और किसी ___ इस जगत में हम जितने भी संबंध बनाते हैं, वे सभी सकारण हैं, तीसरी चीज के होने की जगह भी नहीं थी। सभी सकाम हैं। इसी वजह से, आदत के वश, हम परमात्मा से भी वापस रामकृष्ण ने कहा, पागल! फिर से जा। ऐसे हल नहीं | जो संबंध बनाते हैं, वे भी सकाम हैं। इसलिए सकाम भक्त परमात्मा होगा। मां भी नहीं सुनती है, अगर रोने न लगे बच्चा। जा और कह! के संबंध में जो बातें कहता है, जो गीत गाता है, उनको ठीक से विवेकानंद को फिर भेजा है; वे फिर वापस आ गए हैं आनंद से | | अध्ययन करें, तो पता चलेगा कि वह क्या-क्या कह रहा है! भरे हुए; लेकिन फिर भूल गए हैं। वह कहता है कि तुम्हारे नयन बहुत प्यारे हैं, इसलिए; कि तुम रामकृष्ण ने कहा, इसमें भूलने की बात क्या है? | बड़े मनमोहन हो, इसलिए; कि तुमने सबको रचा, कि तुम सबके विवेकानंद ने कहा कि भूलने का सवाल ही नहीं है। इतने पास पालनहार हो, इसलिए; कि तुम जो पतित हैं, उनके सहारे हो, हो जाता हूं कि दूसरी कोई चीज बीच में आए, इसके लिए जगह, | इसलिए; कि तुमने पापियों को उद्धारा, इसलिए। लेकिन सबके स्पेस, स्थान ही नहीं बचता है। पीछे देअरफोर, इसलिए है। रामकृष्ण ने कहा, इसीलिए तुझे बार-बार भेजा; जानना चाहता | लेकिन अगर वह पापियों का उद्धारक नहीं, अगर उसकी आंखें था कि अभी वासना बनी है या उपासना भी बन सकती है! | बहुत सुंदर नहीं, बड़ी कुरूप हैं, मनमोहन नहीं, फिर क्या होगा? वासना और उपासना का यह फर्क है। वासना सकाम होगी; | | हम जो इस जगत में संबंध बनाते हैं, उन्हीं के आधार पर हम कुछ मांगने के लिए होगी। तो जो हम मांगते हैं, वही श्रेष्ठ है; परमात्मा से भी संबंध बनाने की कोशिश करते हैं, यही सकाम' जिससे हम मांगते हैं. वह श्रेष्ठ नहीं है। उससे मिलता है. इसलिए | | धारणा है। हम उसको श्रेष्ठ मान लेते हैं। लेकिन जो मांगते हैं, वही श्रेष्ठ है। कृष्ण कह रहे हैं, जो निष्काम भाव से मुझे उपासेगा! उपासना का तो अर्थ ही यह है कि एक नया जगत शुरू हुआ जो किसी कारण से नहीं, अकारण। जो कहेगा, कोई कारण नहीं किसी के पास होने का, जिससे कुछ भी मांगना नहीं है, जिसके | | है, कोई वजह नहीं है, बेवजह, बिना कारण, तुम्हारे पास होना बस पास होना ही काफी आनंद है; जिससे और कोई मांग का सवाल | | काफी है। तुम कैसे हो, इसकी कोई शर्त नहीं है। तुम क्या करोगे, नहीं है। उपासना का अर्थ है, परमात्मा के पास होना। और पास इसकी कोई मांग नहीं है। तुमने कब क्या किया है, उसका कोई होने में ही सारी उपलब्धि मानना। पास होने में ही, उसकी निकटता हिसाब नहीं है। तुम सुख ही दोगे, यह भी पक्का नहीं है। तुम दुख ही सब कुछ है। उसके पास होने में ही सब मिल गया। सब स्वर्ग, न दोगे, इसका भी पक्का नहीं है। यह सब कुछ पक्का नहीं है। सब मोक्ष। उसकी निकटता से ज्यादा और कोई चाह नहीं है। । | लेकिन तुम्हारे पास होना, और तुम जैसे भी हो, तुम्हारे पास होना निष्काम साधना का अर्थ है, परमात्मा को चाहना उसके ही | | ही मेरा आनंद है। बस, तुम्हारे पास होने में ही मेरा सब समाप्त हो लिए, किसी और कारण से नहीं जाता है, मैं मंजिल पर पहुंच जाता हूं। इस जगत में हम सभी को किसी और कारण से चाहते हैं। अगर इसलिए निष्काम साधना बड़ी कठिन है; आदमी सोच भी नहीं मैं एक स्त्री को प्रेम करता हूं, तो इसलिए कि वह सुंदर है। लेकिन | | पाता। कोई आदमी चाहता है, मन अशांत है, इसलिए। दुखी है, कल वह असंदर हो सकती है। फिर प्रेम कैसे टिकेगा? क्योंकि | इसलिए। संताप है, चिंता है, इसलिए। अकारण? अकारण की जिस सौंदर्य के लिए प्रेम था, वह खो गया। फिर धोखा ही टिकेगा। भाषा ही ह आती। फिर मुझे खींच-तानकर चलाना पड़ेगा। फिर मैं कहता रहूंगा कि | लेकिन ध्यान रहे, इस जगत में जो भी महत्वपूर्ण है, सभी 2921
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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