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*वासना और उपासना
मोटर गुजर गई, पीछे आप और महाअंधकार अनुभव करते हैं, उपासना और वासना का भेद है। हमारी उपासना भी वासना ही है। जितना कि इस गाड़ी के गुजरने के पहले नहीं था। अंधेरा तो वही हम परमात्मा के पास भी जाते हैं, तो परमात्मा के लिए नहीं, कारण है, पर आपकी आंखों की कठिनाई हो गई; आंखों ने प्रकाश जान | | कुछ और ही होता है। कोई बीमार है, इसलिए मंदिर में जाता है। लिया; अब अंधेरा और भी घना मालूम पड़ेगा।
| कोई बेकार है, इसलिए मंदिर में जाता है। कोई निर्धन है, इसलिए तो जो भी व्यक्ति स्वर्ग में हो आता है, सुख को जान लेता है, मंदिर में जाता है। कोई निस्संतान है, इसलिए मंदिर में जाता है। गिरते ही महानर्क की गर्त को अनुभव करता है। सुख को जानना || जो किसी भी कारण से मंदिर में जाता है, वह मंदिर में पहुंच ही महंगा सौदा है, गिरना तो पड़ेगा। और जब चित्त गिरता है वापस, | नहीं पाता है। शरीर भीतर प्रवेश कर जाएगा, मूर्ति सामने आ तो सभी कुछ दुख हो जाता है। सभी कुछ दुख हो जाता है। चित्त | जाएगी, लेकिन उपासना संभव नहीं है। क्योंकि जहां वासना है, का अनुभव अब सुख के लिए और भारी मांग से भर जाता है। और | | वहां उपासना संभव ही नहीं है। सभी चीजें उदास कर जाती हैं, और सभी चीजें दुख दे जाती हैं। ___ उपासना का अर्थ होता है, परमात्मा के पास होना। और जब मैं
कृष्ण कहते हैं, ऐसे व्यक्ति का आना-जाना जारी रहता है। वह | धन मांगने के लिए उसके पास जाता हूं, तो मैं धन के पास होता परिभ्रमण में भटकता रहता है। वह एक वर्तुल में पड़ जाता है। जैसे हूं; उसके पास कैसे होऊंगा? मेरी मांग ही मेरी निकटता है। जो मैं बैलगाड़ी के चाक में एक आरा ऊपर आता है, फिर नीचे जाता है, | | चाहता हूं, वही मेरे निकट है; और जिससे मैं चाहता हूं, वह तो फिर ऊपर आता है, फिर नीचे जाता है।
केवल साधन है। अगर परमात्मा पूरा कर दे, तो ठीक है; अगर पूरा संसार हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण शब्द रहा है। संसार का न करे, तो फिर मैं वहां नहीं जाऊंगा। कोई और पूरा कर दे, तो मतलब होता है, चाक, दि व्हील। संसार का मतलब होता है, | उसके पास जाऊंगा। जहां मेरी वासना पूरी होगी, वहां मैं जाऊंगा। चक्के की तरह जो घमता रहता है। जो अभी ऊपर है. वह थोडी देर परमात्मा कर सकता है, तो वहां भी तलाश कर लेता है। लेकिन में नीचे आ जाता है; जो अभी नीचे है, वह थोड़ी देर में ऊपर आ | परमात्मा मेरी इच्छा का हिस्सा नहीं है। मेरी इच्छा कोई और है। जाता है। और यह चाक घूमता चला जाता है। और जो नीचे है, वह | रामकृष्ण ने विवेकानंद को कहा था। कठिनाई में थे; पिता चल ऊपर आने की आशा करता रहता है। और ऊपर आ भी नहीं पाता बसे थे; बहुत कर्ज छोड़ गए थे। घर में भूख के सिवाय और कुछ है कि नीचे जाना शुरू हो जाता है; क्योंकि चाक घूमता रहता है। | भी नहीं था। विवेकानंद सड़कों पर घूमकर भूखे-प्यासे वापस लौट जो ऊपर है, वह ऊपर बने रहने की कितनी ही कोशिश करे, बना | | आते थे। मां दुखी न हो, तो उससे कहते थे, आज मित्र के घर नहीं रह पाता; नीचे उतरना पड़ता है।
निमंत्रण है। वहां से हंसते हुए, पेट पर हाथ फेरते हुए, झूठी डकार कृष्ण कहते हैं, कामना से अगर स्वर्ग भी मिल जाए, तो भी लौट लेते हुए घर में प्रवेश करते थे। आना पड़ता है। कामना की कोई भी उपलब्धि वास्तविक नहीं है। रामकृष्ण को पता चला, तो रामकृष्ण ने कहा कि तू पागल है। कामना की कोई भी उपलब्धि यथार्थ नहीं है। कामना की कोई भी | तू जाकर मंदिर में मां को क्यों नहीं कह देता है? अपनी तकलीफ उपलब्धि स्वप्न से ज्यादा नहीं है। स्वप्न टूटेगा ही। कितना ही लंबा | कह दे। कोई स्वप्न देखे, स्वप्न टूटेगा ही।
रामकृष्ण ने कहा, तो विवेकानंद टाल भी न सके। दरवाजे पर क्या कोई उपाय है कि व्यक्ति इस स्वप्न और इस चाक के | रामकृष्ण बैठे हैं दक्षिणेश्वर के, और विवेकानंद को धक्का देकर परिभ्रमण से बाहर हो जाए?
भीतर भेजा है कि तू जा, मां से कह; सभी कुछ ठीक हो जाएगा। तो कृष्ण कहते हैं, जो अनन्य भाव से मेरे में स्थित हुए भक्तजन | | उस पर छोड़ दे, वह योग-क्षेम सम्हाल लेगी। मुझ परमेश्वर को निरंतर चिंतन करते हुए निष्काम भाव से उपासते. विवेकानंद भीतर गए। घंटा बीत गया। रामकृष्ण झांककर देखते हैं, उन नित्य एकीभाव से मुझ में स्थित पुरुषों का योग-क्षेम मैं स्वयं हैं, हाथ जोड़े खड़े हैं; आंख से आंसू बह रहे हैं! फिर रामकृष्ण सम्हाल लेता हूं।
| प्रतीक्षा करते हैं। और घंटा बीत गया! फिर आवाज देते हैं। इसमें तीन बातें समझने जैसी हैं।
विवेकानंद बाहर आते हैं। आनंदित हैं। आंसू फूल की तरह मुस्कुरा एक, निष्काम भाव से जो मुझे उपासते हैं। कठिन है बहुत। यही रहे हैं। चित्त आनंद से भरा है। नाचते हुए बाहर आते हैं।
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