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* गीता दर्शन भाग-4*
जीवन के विपरीत है। और जीवन को हम अच्छा और मृत्यु को बुरा च्वांगत्से की पत्नी मर गई है, सम्राट उसे दुख प्रकट करने आया समझते हैं।
| है, और च्वांगत्से खंजड़ी बजाकर वृक्ष के नीचे बैठा गीत गा रहा इसलिए मित्र के लिए हम जीवन की प्रार्थना करते हैं, और शत्रु | | है। सम्राट थोड़ा बेचैन हुआ। यह च्वांगत्से बड़ा फकीर था, तभी के लिए मृत्यु की प्रार्थना करते हैं। चाहते हैं मित्र जीए, और चाहते | तो सम्राट खुद आया था चलकर कि उसकी पत्नी मर गई है तो उसे हैं शत्रु मर जाए। लेकिन हमें पता नहीं; मर तो वही सकता है, जो जाकर दो शब्द संवेदना के कह आए। लेकिन यहां संवेदना का कोई जीएगा। और हमें यह भी पता नहीं कि जो जीएगा, उसे मरना ही | | उपाय ही न था! यह आदमी खंजड़ी बजाकर गीत गा रहा था! पड़ेगा। तो जब हम किसी की मृत्यु की प्रार्थना करते हैं, तब हम | संवेदना प्रकट करनी तो दूर रही...। उसके जीवन की भी प्रार्थना कर रहे हैं। और जब हम किसी के | सम्राट तय करके आया था, जैसा कि सभी लोग तय करके जाते जीवन के लिए शुभकामना करते हैं, तब हम मृत्यु की भी हैं, जब कोई मर जाता है, कि क्या कहना! कैसे शुरू करना! कठिन शुभकामना कर रहे हैं। क्योंकि जीवन बिना मृत्यु के हो नहीं सकता | मामला भी है। किसी के घर कोई मर गया, कहां से शुरू करो! क्या है; वे एक ही चीज के दो छोर हैं।
कहो! भाषा मुश्किल में पड़ती है, साहस जवाब देता है। जीवन और मृत्यु बड़े विपरीत छोर हैं। हम सबको ऐसा अब तक सब तय करके आया था, यह-यह कहूंगा, ऐसे-ऐसे बात शुरू लगता रहा होगा कि जीवन को जो समाप्त करती है, वह मृत्यु है। करूंगा, किसी तरह निपटाकर निकल आऊंगा। लेकिन यहां और लेकिन वह दृष्टि गलत है। जीवन को जो पूर्ण करती है, वह मृत्यु | मुश्किल बढ़ गई, क्योंकि च्वांगत्से खंजड़ी पीट रहा है। सम्राट है। जीवन मृत्यु में जाकर अपने चरम शिखर को छूता है। | बिलकुल उदास होकर आया था, तैयार होकर आया था।
इसलिए भारत ने जवानी को बहुत मूल्य नहीं दिया, वार्धक्य को | | स्वभावतः, दूसरे का जीवन हमें जब प्रफुल्लित नहीं करता, तो मूल्य दिया। पश्चिम जवानी को मूल्य देता है; वृद्ध को कोई मूल्य | | दूसरे की मृत्यु हमें दुखी क्यों करेगी! और अगर दूसरे का जीवन नहीं देता। वृद्ध होना अवमूल्यित हो जाना है, डिवेल्युएशन हो | हमें प्रफुल्लित ही कर पाए, तो हम उस स्थिति को जान लेंगे, जहां जाता है। आदमी बूढ़ा हुआ पश्चिम में कि डिवेल्युएशन हुआ, | | फिर मृत्यु भी दुखी नहीं कर पाती। उसका अवमूल्यन हो गया। उसका जो भी मूल्य था जगत से, वह सम्राट आया था उदास बाना पहनकर। देखा, तो रहा नहीं खो गया।
गया। उसने च्वांगत्से से कहा कि महानुभाव! दुख न मनाएं, इतना क्यों? क्योंकि अगर जीवन और मृत्यु विपरीत हैं, तो फिर जवान | ही काफी है। लेकिन खंजड़ी बजाएं और गीत गाएं, यह जरा ज्यादा ही जीवन के शिखर को छूता है; बूढ़ा तो मौत की तरफ जाने लगा। | हो गया! दुख न मनाएं, चलेगा, ठीक है। लेकिन यह जरा ज्यादा
इसे ऐसा समझें, अगर मृत्यु बुरी है, तो बूढ़ा अच्छा कैसे हो हो गया! सकता है? क्योंकि बूढ़े का मतलब है, जो मृत्यु में जाने लगा। वह च्वांगत्से ने कहा, क्या कहते हैं। जिसके साथ मैंने जीवन के मृत्यु का पथिक है; मृत्यु उसके करीब आने लगी। बूढ़े का मतलब परम आनंद जाने, और जिसके साथ जीवन की लंबी यात्रा पूरी की, है, जिससे मृत्यु प्रकट होने लगी। तो फिर जवान शिखर है जीवन क्या उसके पूर्ण होने के क्षण में मैं गीत गाकर विदा भी न दे सकूँ! का। अगर मृत्यु जीवन के विपरीत है, तो जवानी जीवन होगी। फिर मगर यह कुछ और ढंग है देखने का। यह मन से देखी गई बात जवानी का मूल्य होगा, बूढ़े का अवमूल्यन हो जाएगा | नहीं है। अगर मन से देखी गई हो, तो मृत्यु दुख का कारण है, जन्म
पश्चिम ने मृत्यु को जीवन की समाप्ति समझा है, इसलिए बूढ़ा | खुशी का कारण है। यह मन के कहीं पार से देखी गई बात है, जहां अनादृत हो गया। इस भाव के साथ बूढ़े का कोई आदर नहीं हो जन्म और मृत्यु विपरीत नहीं रह जाते, जहां दोनों ही एक ही जीवन सकता। पूरब ने मृत्यु को जीवन की पूर्णता समझा है, इसलिए बूढ़ा | की धारा के अंग हो जाते हैं। और जहां जीवन मृत्य और जन्म के आदृत हुआ। क्योंकि वही चरम शिखर है जीवन का, जवान नहीं; | बीच की धारा बन जाता है, दोनों किनारे उसी के हो जाते हैं। वृद्ध ही चरम शिखर है जीवन का। और मृत्यु का क्षण सिर्फ अज्ञान तो च्वांगत्से कहता है कि उसकी महापूर्णता के क्षण में मैं उसे के कारण अवसाद का क्षण है; अगर समझ हो, तो उत्सव का क्षण | । गीत गाकर विदा न दे सकू, तो मुझसे ज्यादा अकृतज्ञ कौन होगा? भी हो सकता है।
सम्राट की समझ में नहीं पड़ा होगा। आपकी भी समझ में पड़ना
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