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* मैं ओंकार हूं
गया पदार्थ है। परमाणु भी पदार्थ का छिपा हुआ मन है, ए हिडेन हैं, तो तीन प्रकार के ज्ञान होंगे। तीन तरह के टाइप हैं, प्रकार हैं, माइंड। क्षुद्रतम में भी विराट छिपा हुआ है, और विराट को भी | तो तीन प्रकार के इशारे होंगे। प्रकट होना हो, तो क्षुद्र का ही सहारा है।
कृष्ण ने कहा कि वे तीनों वेद मैं हूं। ओंकार कहकर कृष्ण कहते हैं कि मैं वह परम अस्तित्व हूं, जहां चाहे कोई कर्म से अपने कर्ता को मिटा दे, तो ओंकार में प्रवेश केवल उस ध्वनि का साम्राज्य रह जाता है, जो कभी पैदा नहीं हुई | कर जाता है। चाहे कोई अपने प्रेम से प्रेमी को डुबा दे, तो ओंकार
और कभी मरती नहीं है, जो अस्तित्व का मूल आधार है। उस | | में प्रवेश कर जाता है। और चाहे कोई अपने ज्ञान से द्वैत के पार हो संगीत के सागर का नाम ओंकार है।
| जाए, अद्वैत में प्रवेश कर जाए, तो उस ओंकार को उपलब्ध हो उस तक पहुंचना हो, तो अपने मन से सब ध्वनियां समाप्त जाता है। करनी चाहिए। अपने मन से एक-एक ध्वनि को छोड़ते जाना वेद का अर्थ है, वे किताबें नहीं, जो वेद के नाम से जानी जाती चाहिए, एक-एक शब्द को, एक-एक विचार को और मन की ऐसी | | हैं। वेद से अर्थ है, वे समस्त इशारे, जो मनुष्य-जाति को कभी भी अवस्था ले आनी चाहिए, जब मन निर्ध्वनि हो जाए, साउंडलेस हो | और कहीं भी उपलब्ध हुए हों, जो ओंकार की तरफ ले जाते हैं। जाए। और जिस दिन आप पाएंगे कि मन हो गया ध्वनिशून्य, उसी | ध्यान रखें, वेद शब्द बहुत अदभुत है। इसके बड़े विस्तीर्ण अर्थ दिन आप पाएंगे, ओंकार प्रकट हो गया! ओंकार वहां निनादित हो | | हैं। वेद शब्द का अर्थ होता है, ज्ञान। इसलिए वेद को किसी किताब ही रहा था। ओंकार की धुन वहां बज ही रही थी सदा से, अनंत से, | | में बांधा नहीं जा सकता। जहां भी ज्ञान है, वहीं वेद है। जहां भी अनादि से। लेकिन आप इतने शोरगुल में व्यस्त थे, आप इतने जोर | | इशारा है, वहीं वेद है। में लगे थे बाहर कि आपको वह ध्वनि सुनाई नहीं पड़ती थी। उन दिनों तक कृष्ण ने जब यह बात कही, तो वह सारा ज्ञान तीन
आपका यह उपद्रव शांत हो जाए, आपका यह बुखार से भरा | पुस्तकों में संगृहीत था। इसलिए इन तीन पुस्तकों का नाम लिया। हुआ, दौड़ता हुआ पागलपन शांत हो जाए, तो जो सदा ही भीतर | | अगर आज कृष्ण हों, तो इन तीन का नाम नहीं लेंगे। इसमें कुरान बज रहा है, वह अनुभव में आने लगता है। वह मनुष्य की | भी सम्मिलित होगा, इसमें बाइबिल भी सम्मिलित हो जाएगी, इसमें आत्यंतिक अवस्था है। वह उसका परम भविष्य है। जेंदावेस्ता भी जुड़ेगा, इसमें लाओत्से का ताओ तेह किंग भी आने
कृष्ण कहते हैं, मैं ओंकार हूं। और कृष्ण कहते हैं, ऋग्वेद, | ही वाला है। इन पांच हजार वर्षों में, कृष्ण के बाद, जो-जो इशारे सामवेद, यजुर्वेद भी मैं ही हूं।
उस ओंकार की तरफ हुए हैं, वे भी वेद का हिस्सा हो गए। ओंकार के बाद वेद की बात कहने का कारण है, प्रयोजन है। वेद एक विकासमान धारा है। वेद कोई सीमित किताब नहीं है। कृष्ण कहते हैं, वह परम ध्वनि मैं हूं, और उस परम ध्वनि को | | इसीलिए वेद का कोई लेखक नहीं है। एक-एक वेद में सैकड़ों पहुंचने वाले जितने भी शास्त्र हैं, वह भी मैं हूं। उस परम ध्वनि की ऋषियों के वचन हैं। उस जमाने तक जितने ऋषियों का ज्ञान था,
ओर जिन-जिन शास्त्रों ने इशारा किया है, वह भी मैं हूं। वह ध्वनि | वह सब संगृहीत हो गया। फिर वेद के दरवाजे बंद हो गए। और तो मैं हूं ही, लेकिन जो इंगित; वह चांद तो मैं हूं ही, जिन अंगुलियों | | जिस दिन वेद के दरवाजे बंद हुए, उसी दिन हिंदू धर्म मुर्दा हो गया। ने चांद की तरफ इशारा किया है, वे अंगुलियां भी मैं ही हूं। क्योंकि | __ वेद का दरवाजा खुला ही रहना चाहिए। उसमें नए ऋषि होते मेरे अतिरिक्त मेरे उस गुह्यतम रूप की तरफ इशारा भी कौन कर रहेंगे। उनके वचन संगृहीत होते ही चले जाने चाहिए। चाहे वे कहीं सकेगा? मेरी तरफ अंगुली भी कौन उठा सकेगा सिवाय मेरे? | भी हों। तो कृष्ण कहते हैं, वेद भी मैं ही हूं।
वेद किसी व्यक्ति की किताब नहीं है। यह बड़े मजे की बात है। वेद का अर्थ है, वह सब, जिसने ओंकार की ओर इशारा किया | | वेद न मालूम कितने व्यक्तियों का संग्रह है। उस जमाने तक जितने है। वेद का अर्थ है, वह सारा ज्ञान, जिसने उस परम ध्वनि की तरफ | | लोगों ने जाना था, उन सबका संग्रह है। लेकिन फिर द्वार बंद हो गए। ले जाने का मार्ग खोला है। उन्होंने तीन वेद का नाम लिया है। जब कोई धर्म जीवंत होता है, तो भयभीत नहीं होता, खुले दरवाजे विचारपूर्वक ही यह बात है। क्योंकि कल मैंने आपसे कहा, तीन | रखकर सोता है। जब कोई धर्म कमजोर हो जाता है, मरने के करीब प्रकार के मनुष्य हैं। तो तीन प्रकार के वेद होंगे। तीन प्रकार के मन आता है, बूढ़ा हो जाता है, तो दरवाजे बंद कर देता है और पहरे लगा
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