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________________ गीता दर्शन भाग-4 देता है। ये कमजोरी के लक्षण हैं। लेकिन जिस दिन दरवाजा बंद होता है, उसी दिन ज्ञान तो आगे बढ़ता चला जाता है, किताब रुक जाती है। किताब रुक जाती है। ठीक वैसी घटना अभी थोड़े दिन पहले फिर घटी। उससे आपको बात समझ में आ जाएगी। सिक्खों का वेद है, गुरु-ग्रंथ । नानक के समय में, उस समय के जितने ज्ञानियों के इशारे थे, सब उसमें संगृहीत किए गए हैं। उसमें फिक्र नहीं की गई है कि कौन हिंदू है, कौन मुसलमान है, कौन ब्राह्मण है, कौन शूद्र है। उसमें फरीद के भी वचन हैं, उसमें और कबीर के भी, उसमें दादू के भी। उस समय जितने भी फकीर इशारे वाले थे, उन सबके वचन संग्रहीत कर लिए गए हैं। 1 लेकिन फिर धीरे-धीरे बात मरने लगी। फिर धीरे-धीरे दरवाजे सख्त होने लगे। फिर उसमें वही सम्मिलित हो सकेगा, जो सिक्ख है । फिर दसवें गुरु ने द्वार बंद कर दिए। धर्म कमजोर हो गया। फिर दसवें गुरु ने कहा कि अब इस किताब में आगे नहीं जोड़ा जा सकेगा । उसी दिन यह किताब बूढ़ी होकर मर गई। क्योंकि अब इसमें ग्रोथ नहीं हो सकती। लेकिन दस गुरुओं तक यह किताब विकासमान होती रही, बढ़ती होती रही। इसमें जुड़ता रहा । ज्ञान एक धारा है, जैसे गंगा एक धारा है। गंगा अगर कह दे प्रयाग में आकर कि अब नदी-नाले मुझमें नहीं जुड़ सकेंगे, अब कोई मुझमें आगे नहीं जुड़ेगा। अब मैं गंगा हूं। और एक गंदे नाले को मैं नहीं गिरने दूंगी। क्योंकि कहां पवित्र गंगा, और एक साधारण-सा नाला आकर मुझमें गिर जाए और गंदा कर जाए! जिस दिन गंगा यह कहती है कि एक साधारण-सा नाला मुझमें गिरकर मुझे गंदा कर देगा, उस दिन वह गंगा नहीं रही। क्योंकि गंगा का मतलब ही यह है कि जिसमें कोई भी गिरे, गिरते से पवित्र हो जाए। अब नाला गंगा को गंदा कर देगा, तो नाला ज्यादा शक्तिशाली हो गया ! जब भी कोई धर्म भयभीत हो जाता है और डरता है कि कुछ मिश्रित न हो जाए, कुछ गलत न हो जाए, इसलिए सब घेराबंदी कर लो उस दिन किताबें बंद हो जाती हैं। वेद की जब कृष्ण ने यह बात कही, तब ये तीनों किताबें जिंदा किताबें थीं। अब ये तीनों किताबें जिंदा किताबें नहीं हैं। एक जगह इनके द्वार बंद हो गए। अगर वे द्वार खुले होते, तो वेद ने जगत के सारे ज्ञानको संग्रहीत किया होता। जैसा कि आपने देखा होगा, वेद ठीक वैसी ही चीज थी इस मुल्क में, जैसे कि आज इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका है। हर वर्ष | उसको नए एडीशन करने पड़ते हैं। क्योंकि ज्ञान विकसित होता है, उसे सम्मिलित कर लेना होता है। रोज ज्ञान बढ़ता है, तो इनसाइक्लोपीडिया को रोज ज्ञान को बढ़ाए जाना पड़ता है। उसके पुराने एडीशन बाहर होते जाएंगे। रोज यह ज्ञान बढ़ता रहेगा। किसी दिन अगर इनसाइक्लोपीडिया वाले यह सोचें कि बस, अब हम और ज्ञान को भीतर नहीं आने देंगे, उसी दिन इनसाइक्लोपीडिया आउट आफ डेट हो जाएगा, उसी दिन मर जाएगा। वेद हमारा इनसाइक्लोपीडिया था। ओंकार की तरफ जितने इशारे किए गए थे, हमने वेद में संगृहीत किए थे। तो कृष्ण कहते हैं, वे तीनों वेद मैं ही हूं। और हे अर्जुन, प्राप्त होने योग्य गंतव्य, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, सबका साक्षी, सबका वास स्थान, शरण लेने योग्य, हितकारी, उत्पत्ति, प्रलय सबका आधार, निधान और वह, जिसमें सबका लय होता है, अविनाशी, बीज कारण भी मैं ही हूं। इसमें तीन-चार बातें महत्वपूर्ण हैं, वह हमें खयाल में ले लेनी चाहिए। गंतव्य, दि एंड, आखिरी मंजिल, जो पाने योग्य है, वह मैं ही हूं। और अगर मेरे अतिरिक्त कुछ भी तुझे पाने योग्य लगता है, तो | थोड़ा सोच-समझ लेना, वह पाने योग्य नहीं हो सकता। परमात्मा के अतिरिक्त जो भी व्यक्ति कुछ और पाने में लगा है, सच पूछिए तो पाने में नहीं, खोने में लगा है। परमात्मा के अतिरिक्त अगर आपने कुछ पा भी लिया, तो आखिर में आप पाएंगे कि आपने सब खो दिया, पाया कुछ भी नहीं है। क्योंकि और हम कुछ भी पा लें, वह हमारी संपदा नहीं बनती, सिर्फ विपत्ति बनती है। संपत्ति नहीं, विपत्ति । कुछ भी हम इकट्ठा | कर लें, वह हमसे बाहर ही छूट जाता है। वह हमारे प्राणों का विकास नहीं होता, सिर्फ प्राणों पर बोझ बन जाता है। और एक न एक दिन मृत्यु सब छीन लेती है । मृत्यु सब छीन लेती है। 266 मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन अपनी मरणशय्या पर पड़ा है। आखिरी घड़ी है। वह आंख खोलता है और अपनी पत्नी से कहता है कि मेरा जो सागर के तट पर भवन है, चाहता हूं कि मेरे मित्र अहमद को दे दिया जाए — वसीयत कर रहा है। उसकी पत्नी कहती है, अहमद को ? इस आदमी की शक्ल मुझे पसंद ही नहीं। बेहतर हो, यह हम रहमान को दे दें ! मुल्ला दुख में आंख बंद कर लेता है। फिर आंख खोलता है और
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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