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* मैं ओंकार हूं
बात, वह है ओंकार का अनुभव।
मांस-पेशियां टकराती हों, चाहे मेरे मुंह से निकलती हुई वायु का तो कृष्ण कहते हैं, भविष्य भी मैं हूं। कहते हैं, अतीत ही मैं नहीं | धक्का आगे की वायु से टकराता हो, लेकिन टकराहट से पैदा होता हूं, तुम्हारा पिता ही मैं नहीं हूं, पिता का पिता ही मैं नहीं हूं, तुम्हारी |
| है संगीत। हमारी सभी ध्वनियां टकराहट से पैदा होती हैं। हम जो जो भी संभावना है भविष्य की, वह भी मैं हूं। तुम जो हो सकते हो, | | भी बोलते हैं, वह एक व्याघात है, एक डिस्टरबेंस है। वह भी मैं हूं। तुम जो थे, वह मैं हूं ही। तुम जो हो, वह मैं हूं ही। ओंकार उस ध्वनि का नाम है, जब सब व्याघात खो जाते हैं, तुम जो हो सकते हो; वह फूल, जो अभी नहीं खिला, खिलेगा | | सब तालियां बंद हो जाती हैं, सब संघर्ष सो जाता है, सारा जगत वह भी मैं हूं। और वह जो बीज अभी नहीं लगा, लगेगा, वह भी विराट शांति में लीन हो जाता है, तब भी उस सन्नाटे में एक ध्वनि मैं हूं। इस जगत का अतीत ही मैं नहीं हूं, इस जगत की संपूर्ण | सुनाई पड़ती है। वह सन्नाटे की ध्वनि है; वॉइस आफ साइलेंस; संभावना भी मैं हूं। जो कुछ भी हो सकेगा, वह भी मैं हूं। | वह शून्य का स्वर है। उस क्षण सन्नाटे में जो ध्वनि गूंजती है, उस
क्योंकि अगर परमात्मा सिर्फ अतीत है और भविष्य नहीं, तो ध्वनि का, उस संगीत का नाम ओंकार है। व्यर्थ है। क्योंकि अतीत तो हो चुका। जो हो चुका, अब उससे कुछ | - अब तक हमने जो ध्वनियां जानी हैं, वे पैदा की हुई हैं। अकेली लेना-देना नहीं है। जो नहीं हुआ है, वही हमारी आशा है। अगर | | एक ध्वनि है, जो पैदा की हुई नहीं है; जो जगत का स्वभाव है; उस परमात्मा सिर्फ हमारा अतीत है, तो भविष्य अंधकार है। अतीत तो | | ध्वनि का नाम ओंकार है। जा चुका, मर चुका, हो चुका। मौलिक रूप से परमात्मा को हमारा इस ओंकार को कृष्ण कहते हैं, यह अंतिम भी मैं हूं। जिस दिन भविष्य होना चाहिए। तो ही आशा, सार्थक आशा का जन्म होता | सब खो जाएगा, जिस दिन कोई स्वर नहीं उठेगा, जिस दिन कोई है, तो ही सार्थक अभीप्सा का, उस महत्वाकांक्षा का, जो अंतिम | अशांति की तरंग नहीं रहेगी, जिस दिन जरा-सा भी कंपन नहीं को अनुभव करना चाहती है।
| होगा, सब शुन्य होगा, उस दिन जिसे त सनेगा. वह ध्वनि भी मैं कृष्ण कहते हैं, मैं तुम्हारा भविष्य भी हूं। और भविष्य में जो | ही हूं। सब के खो जाने पर भी जो शेष रहेगा, वह मैं हूं। या ऐसा अंतिम घटना घट सकती है, वह वे कहते हैं। वे कहते हैं, ओंकार | कहें, जब सब खो जाता है, तब भी मैं शेष रह जाता हूं। जब कुछ भी मैं हूं।
भी नहीं बचता, तब भी मैं बच जाता हूं। मेरे खोने का कोई उपाय ओंकार का अर्थ है, जिस दिन व्यक्ति अपने को विश्व के साथ नहीं है, वे यह कह रहे हैं। एक अनुभव करता है, उस दिन जो ध्वनि बरसती है। जिस दिन | वे कह रहे हैं, मेरे खोने का कोई उपाय नहीं है। मैं मिट नहीं व्यक्ति का आकार में बंधा हुआ आकाश निराकार आकाश में सकता हूं, क्योंकि मैं कभी बना नहीं हूं। मुझे कभी बनाया नहीं गया गिरता है, जिस दिन व्यक्ति की छोटी-सी सीमित लहर असीम है। जो बनता है, वह मिट जाता है। जो जोड़ा जाता है, वह टूट सागर में खो जाती है, उस दिन जो संगीत बरसता है, उस दिन जो जाता है। जिसे हम संगठित करते हैं, वह बिखर जाता है। लेकिन ध्वनि का अनुभव होता है, उस दिन जो मूल-मंत्र गूंजता है, उस | | जो सदा से है, वह सदा रहता है। मूल-मंत्र का नाम ओंकार है। ओंकार जगत की परम शांति में गूंजने | इस ओंकार का अर्थ है, दि बेसिक रियलिटी; वह जो मूलभूत वाले संगीत का नाम है।
सत्य है, जो सदा रहता है। उसके ऊपर रूप बनते हैं और मिटते हैं, संगीत दो तरह के हैं। एक संगीत जिसे पैदा करने के लिए हमें | | संघात निर्मित होते हैं और बिखर जाते हैं, संगठन खड़े होते हैं और स्वर उठाने पड़ते हैं, शब्द जगाने पड़ते हैं, ध्वनि पैदा करनी पड़ती | | टूट जाते हैं, लेकिन वह बना रहता है। वह बना ही रहता है। है। इसका अर्थ हुआ, क्योंकि ध्वनि पैदा करने का अर्थ होता है कि | | यह जो सदा बना रहता है, इसकी जो ध्वनि है, इसका जो संगीत कहीं कोई चीज घर्षण करेगी, तो ध्वनि पैदा होगी। जैसे मैं अपनी | | है, उसका नाम ओंकार है। यह मनुष्य के अनुभव की आत्यंतिक दोनों ताली बजाऊं, तो आवाज पैदा होगी। यह दो तालियों के बीच | बात है। यह परम अनुभव है। जो घर्षण होगा, जो संघर्ष होगा, उससे आवाज पैदा होगी। । ___ इसलिए आप यह मत सोचना कि आप बैठकर ओम, ओम का
तो हमारा जो संगीत है, जिससे हम परिचित हैं, वह संगीत संघर्ष उच्चार करते रहें, तो आपको ओंकार का पता चल रहा है। जिस का संगीत है। चाहे होंठ से होंठ टकराते हों, चाहे कंठ के भीतर की ओम का आप उच्चार कर रहे हैं, वह तो उच्चार ही है। वह तो
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