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*गीता दर्शन भाग-4
तुम इसकी ही कड़ी हो।
| खिड़की नहीं, कोई दरवाजा नहीं। सब तरफ से बंद। कहीं बाहर से एक लहर उठती है सागर में, क्षणभर को नाचती है आकाश में, | | जुड़ने का कोई सेतु नहीं। कोई चर्चा नहीं हो सकती। पड़ोसी से सूरज को छूने की कोशिश करती है, और फिर गिर जाती है। लहर | मिलने का कोई उपाय नहीं। हाथ फैलाकर दोस्ती नहीं बांधी जा सोच सकती है कि मैं सागर से अलग हूं। सोच सकती है। अलग | सकती। सब तरफ से बंद। ऐसा प्रत्येक व्यक्ति एक बंद अणु है। होती भी है क्षणभर को। प्रकट ही दिखाई पड़ता है कि सागर से अगर ऐसा है, तो जगत एक भयंकर संघर्ष होगा और एक भयंकर अलग है। छलांग भरती है आकाश की तरफ, पूरा सागर नीचे पड़ा | असफलता भी। रह जाता है; सिर्फ लहर उठती है।
कृष्ण कहते हैं, जगत या व्यक्ति, अलग-अलग चीजें नहीं हैं, तो लहर को यह खयाल अगर आ जाए, यह अहंकार अगर आ| एक लंबी श्रृंखला है। जिसमें हर चीज पिछली कड़ी से और अगली जाए कि मैं अलग है, तो गलती तो कुछ भी नहीं है। और जब लहर कड़ी से जुड़ी है। यह जो वृक्ष की जड़ है, यह जो वृक्ष के शिखर पर को सागर नीचे खींचने लगे, तो लहर को ऐसा लगे कि सागर मुझे | | फूल खिला है, इससे जुड़ी है। अगर फूल से बात कर रहे होते अर्जुन मिटाने को तत्पर है, और हवाएं मुझे तोड़ देने को उत्सुक हैं, और | की जगह कृष्ण, तो फूल से वे कहते कि मैं तेरे भीतर तो हूं ही; तेरी सारा जगत मेरे खिलाफ है, और सारा जगत मुझे मिटाने की चेष्टा | जड़ों के भीतर भी मैं ही हूं। और तेरी जड़ें जिस बीज से पैदा हुई थीं, में लगा है, तो मुझे लड़ना है! यह भी तर्कयुक्त होगा। पहले निर्णय | उसके भीतर भी मैं ही था। और वह बीज जिस वृक्ष पर लगा था, वह के बाद, यह दूसरी बात स्वाभाविक है।
| भी मैं हूं। और वह वृक्ष जिन जड़ों से आया था, वह भी मैं। और तू लेकिन लहर को सागर मिटाने को उत्सुक है? सागर लहर को | लौटता जा पीछे; मैं तेरा पूरा इतिहास हूं; दि होल हिस्ट्री। मैं तेरा मिटाने को उत्सुक हो भी कैसे सकता है! और यह सच है कि लहर | अनंत इतिहास हूं। सब जो हुआ है पहले, उसमें मैं था। और अभी सागर में ही मिटती है। फिर भी सागर लहर को मिटाने को उत्सुक जो हो रहा है, वह उससे जुड़ा हुआ अंग है। नहीं है। क्योंकि लहर को यह पता ही नहीं है कि वह सागर का बढ़ा ___ व्यक्ति अपने को अस्तित्व से अलग न समझे, तो ही धर्म के हुआ हाथ है, और कुछ भी नहीं है। वह सागर की ही छाती पर उठी | अनुभव में उतरता है। अलग समझे, तो अधर्म के अनुभव में यात्रा एक तरंग है। वह सागर की ही छाती है। वह सागर की ही | शुरू हो जाती है। व्यक्ति अपने को जगत से एक जान पाए, तो महत्वाकांक्षा है, जो छलांग लगा गई है। इससे भिन्न नहीं है। सागर | तत्क्षण लहर फैलकर सागर बन जाती है। उसे क्यों मिटाएगा! सागर ही है वह।
__ और काश! मैं यह देख सकूँ कि मैं अपने पिता में, अपनी मां कृष्ण कहते हैं, मैं मां भी हूं, पिता भी हूं, पितामह भी हूं। | में, उनके पिता में, उनकी मां में, अनंत-अनंत श्रृंखलाओं में किसी
वे यह कह रहे हैं कि मैं वह अनंत श्रृंखला हूं, जिसकी तुम एक | | न किसी रूप में मौजूद था, तो फिर मेरा जन्म कोई अनहोनी घटना कड़ी हो। मैं तुम्हारे पीछे तुम्हारे पिता की तरह छिपा हूं; तुम्हारे पीछे | | नहीं रह जाती, एक लंबी श्रृंखला का हिस्सा हो जाता है। फिर मेरी तुम्हारी मां की तरह छिपा हूं; उनके भी पीछे, उनके भी पीछे, मैं | | मृत्यु भी मृत्यु नहीं होगी; क्योंकि जब मेरा जन्म मेरा जन्म नहीं है, सदा तुम्हारे पीछे खड़ा हूं। तुम मेरे ही बढ़े हुए हाथ हो; तुम मेरी ही तो मेरी मृत्यु भी मेरी मृत्यु नहीं हो सकती। मेरा जन्म एक लंबी लहर हो; तुम मेरी ही तरंग हो। और तुम्ही नहीं हो, तुम्हारी मां भी श्रृंखला का हिस्सा है और मेरी मृत्यु भी एक लंबी श्रृंखला का थी; तुम्हारे पिता भी थे; उनके पिता भी थे।
हिस्सा होगी। समझें। एक दृष्टि है व्यक्ति को व्यक्ति मानने की, एटामिक, | | और तीसरी बात कहते हैं, और जानने योग्य पवित्र ओंकार मैं हूं। अणु की तरह अलग। लीबनिज ने इसके लिए एक ठीक शब्द ___ अतीत की बात कही कि यह मैं हूं। अतीत की सारी श्रृंखला मैं पश्चिम में खोजा है। उसने शब्द दिया है, मोनोड। मोनोड का | | हूं; आई एम दि पास्ट, दि होल पास्ट। पूरा बीता हुआ सब मैं हूं। मतलब होता है, एक ऐसा अणु, जिसमें कोई खिड़की-दरवाजे नहीं | | और तत्क्षण भविष्य की बात कहते हैं कि जानने योग्य ओंकार भी हैं; जो सब तरफ से बंद है।
| मैं हूं। तो हम व्यक्ति को मोनोड समझ सकते हैं; विंडोलेस, डोरलेस, | | ओंकार का अनुभव इस जगत का आत्यंतिक, अंतिम अनुभव एटामिक, क्लोज्ड; सब तरफ से बंद एक मकान, जिसमें कोई है। कहना चाहिए, दि अल्टिमेट फ्यूचर। जो हो सकती है आखिरी
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