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* गीता दर्शन भाग-44
साथ एक हो जाऊं, तभी जानूंगा कि जाना। उसके पहले सब | मनुष्य का एक विभाजन है। जानना फिजूल है। उसके पहले जिसे हम जानना कहते हैं, वह | जिन लोगों को जानने की खोज है, उनके लिए भक्ति सदा जानना नहीं है।
फिजूल मालूम पड़ेगी। कीर्तन हो रहा होगा, तो वे कहेंगे, यह क्या बटैंड रसेल ने ज्ञान के दो हिस्से किए हैं; वे ठीक हैं। बट्रेंड रसेल | | पागलपन है! कोई गीत गा रहा होगा, वे कहेंगे, इससे क्या होगा! ने कहा है, एक तो ज्ञान है, जिसे हम कहें एक्वेनटेंस, परिचय। और कोई मंदिर में पूजा करता होगा, तो उन्हें समझ में नहीं पड़ेगी। एक वस्तुतः ज्ञान है, जिसे हम नालेज कहें।
__दूसरे का मार्ग कभी भी समझ में नहीं पड़ता। लेकिन समझदार परिचय का मतलब है, बाहर से। और ज्ञान का मतलब है, | उसी का नाम है, जो दूसरे के मार्ग को भी होने की सुविधा देता है, भीतर से।
चाहे उसकी समझ में न भी पड़ता हो। जब मैं यह कहूं कि मुझे यह इसका तो यह अर्थ हुआ कि समस्त विज्ञान परिचय है, क्योंकि | | कीर्तन समझ में नहीं पड़ रहा है, तो मैं इतना ही कह रहा हूं कि कोई वैज्ञानिक कितना ही जान ले, बाहर ही खड़ा रहता है। असल | | मुझसे इसका कहीं ताल-मेल नहीं खाता। लेकिन हम जल्दी आगे में विज्ञान का तो आधार ही यही है कि जानने वाले को बाहर खड़ा बढ़ जाते हैं। हम कहते हैं, यह गलत है। वहां भूल शुरू हो जाती रहना चाहिए। यहीं धर्म और विज्ञान के जानने में फर्क पड़ जाता है। है। मेरे लिए गलत होगा, तो भी किसी और के लिए सही हो सकता
वैज्ञानिक बाहर खड़ा रहता है। अपनी प्रयोगशाला में खड़ा है, | | है। मेरे लिए भ्रांत होगा, मेरे लिए नहीं होगा ठीक, तो भी किसी जांच रहा है। घटना उसकी टेबल पर घट रही है, वह दूर खड़ा देख | | और के लिए बिलकुल ठीक हो सकता है। रहा है। बल्कि वैज्ञानिक का नियम यह है कि दूरी इतनी होनी चाहिए | ___ कृष्ण कहते हैं, यह पहला विभाजन है ज्ञान का। . कि अपना भाव प्रविष्ट न हो जाए। वैज्ञानिक को बिलकुल निष्पक्ष लेकिन जब भी कोई अपने विभाजन के आर-पार जाने लगता होना चाहिए। निष्पक्ष होने के लिए दूरी चाहिए, पर्सपेक्टिव चाहिए, है, तो दूसरों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है। अपने मार्ग पर फासला चाहिए। बहुत पास हो जाओ, तो मन का लगाव बन चलना तो उचित है, लेकिन दूसरों के मार्गों को विचलित करना सकता है। लगाव नहीं होना चाहिए। निष्पक्ष, एक जज की हैसियत | | अनुचित है। से दूर खड़े होकर देखते रहो। जो हो रहा है, वही देखो। अपने को | - बहुत बार ज्ञान के मार्ग पर चलने वाले लोगों ने भक्ति के मार्ग उसमें प्रवेश मत करो। अन्यथा तुम वह भी देख सकते हो, जो नहीं पर जाते हुए लोगों के मार्ग में बड़ी बाधाएं और बड़ी अड़चनें खड़ी हो रहा है; जो तुम चाहते हो, होना चाहिए, वह भी देख सकते हो। कर दी हैं, अनजाने ही। क्योंकि उनके लिए जो ठीक नहीं लगता, इसलिए दूरी रखो, भीतर प्रवेश मत कर जाओ। बी एन आब्जर्वर, | वे कहते हैं, ठीक नहीं है। लेकिन किसी दूसरे मार्ग पर वह बिलकुल बट डोंट बी ए पार्टिसिपेंट। निरीक्षक तो रहो, लेकिन भागीदार मत ही ठीक हो सकता है। बन जाओ।
कृष्ण कहते हैं, यह जो पहली उपासना है, ज्ञान-यज्ञ का पूजन इसलिए विज्ञान कभी परमात्मा को नहीं जान पाएगा उन अर्थों | | करने वाले जो लोग हैं, वे एकत्व-भाव से, जो कुछ है, परमात्मा में, जिन अर्थों में कृष्ण ज्ञानी की बात कर रहे हैं। क्योंकि वहां दूसरी है, ऐसी प्रतीति में रमते हैं। यही उनकी उपासना है। वे मुझे सभी में शर्त है। वहां यह शर्त है, डोंट बी जस्ट एन आब्जर्वर. बी ए खोज लेते हैं। वे सभी में मझे देख लेते हैं। वे सब पर्दो को हटा देते पार्टिसिपेंट। बाहर मत खड़े रहो, भीतर आ जाओ। दर मत खड़े | हैं और जो पर्यों के भीतर छिपा है, उसकी झलक पा लेते हैं। रहो, दूरी गिरा दो। क्योंकि दूर से तुम जो जानोगे, वह बाहरी | यह झलक एक की झलक है; सारे भेद पर्दो के भेद हैं। पर्दे सब पहचान होगी। भीतर आओ, अंतरतम में प्रविष्ट हो जाओ। वहां | | हट जाएं, तो जो भीतर छिपा है, वह एक है। जैसे हम सब मकानों
आ जाओ, जिसके भीतर और जाने का उपाय नहीं है। आखिरी केंद्र | को गिरा दें, तो सभी मकानों के भीतर से जो आकाश प्रकट होगा, पर आ जाओ, परिधि को छोड़ दो। उस केंद्र पर आ जाओ, जिसके | वह एक होगा। भीतर और जाने की सुविधा ही नहीं है। तभी तुम जान पाओगे। । लेकिन सब मकान जब तक बने हैं, तब तक सभी मकानों की
तो ज्ञान एक दिशा है। इस दिशा में बहुत मार्ग जाते हैं, क्योंकि दीवालों में घिरा हुआ आकाश अलग मालूम पड़ता है। किसी फिर ज्ञान के भी बहुत-बहुत रूप हो जाते हैं। लेकिन मोटे अर्थों में मकान की दीवालें लाल हैं, और किसी की पीली हैं, और किसी
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