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* गीता दर्शन भाग-4*
उसका मेल नहीं खाता और सौ में से नब्बे मौके पर यह घटना समझना! कोई धर्म में पैदा होता ही नहीं; धर्म खोजना पड़ता है। यह घटेगी। क्योंकि जन्म का धर्म से कोई संबंध नहीं है, धर्म का संबंध एक अंतोज है। यह एक अंतोज है सत्य की, और निजी है। और संकल्पपूर्वक चुनाव से है। व्यक्ति को धार्मिक होना पड़ता है, हर आदमी को खोजना पड़ता है। यह उधार मिलता ही नहीं। धार्मिक कोई पैदा नहीं हो सकता। और यह गौरव की बात है। अगर कोई सोचता हो, किसी गुरु से मिल जाएगा, अगर कोई
अगर हम धार्मिक पैदा ही होते हों, तो धर्म बड़ी साधारण बात सोचता हो, किसी से मिल जाएगा, तो गलती है। खोजना ही रह जाएगी। अगर हम धार्मिक इसी तरह होते हों-जैसे बाप से पड़ेगा। खोजेंगे, तो ही गुरु भी मिलेगा। खोजेंगे, तो ही किसी से
आंख पाते हैं, जैसे बाप से हाथ पाते हैं, जैसे बाप से शरीर का रंग भी मिलने का मार्ग साफ होगा। लेकिन यह मुरदे हस्तांतरपा से नहीं पाते हैं-अगर ऐसे ही हम धर्म भी पाते हों, तो धर्म भी | मिलता। कोई ट्रांसफर नहीं कर सकता। कोई बाप लिख नहीं जा बायोलाजिकल, एक जैविक घटना हो जाएगी।
सकता कि मेरे धन के साथ मैं धर्म भी अपने बेटे को वसीयत में तब तो इस
का अर्थ हुआ कि शरीर ही नहीं, आत्मा भी हम बाप देता हूं। नहीं तो दुनिया में जैसे धन बढ़ गया, ऐसे ही धर्म भी बढ़ से पाते हैं; जो कि सरासर झूठ है। शरीर मिलता है माता और पिता गया होता। से; तो शरीर का जो भी है, वह माता-पिता से मिलता है। लेकिन | दुनिया में धन बहुत बढ़ गया है। दो हजार साल पीछे लौटें, धन आत्मा माता-पिता से नहीं मिलती; आत्मा की यात्रा अन्यथा है, | और कम था। और पांच हजार साल पीछे लौटें, धन और कम था। अलग है।
दुनिया में सब चीजें बढ़ गईं, जिनकी वसीयत हो सकती थी। सिर्फ और आत्मा की यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण मुकाम यह है कि धर्म नहीं बढ़ा। बल्कि धर्म कम हो गया मालूम पड़ता है। जरूर आत्मा हर संकल्प से विकसित होती है। जितना बड़ा संकल्प, कहीं कोई फर्क है। उतनी आत्मा सबल होती है। और धर्म इस जगत में सबसे बड़ा जो भी चीज वसीयत की जा सकती है, वह बढ़ जाएगी। दुनिया संकल्प है; सबसे बड़ी चुनौती है; सबसे बड़ा अभियान है; | की भाषाएं बढ़ गईं; दुनिया का वैज्ञानिक ज्ञान बढ़ गया; दुनिया में दस्साहस है। क्योंकि अज्ञात में छलांग है उसकी खोज है, जिसका किताबें बढ गई: दनिया के मकान बढ गए: दनिया में आदमी बढ हमें कोई भी पता नहीं; उस तरफ की यात्रा है, जिस तरफ के हमें गए। दुनिया में सब बढ़ गया है, जो भी वसीयत हो सकती है। कोई संकेत भी नहीं मिलते; उस सागर में उतरना है, जिसका कोई क्योंकि बाप दे जाता है बेटे को, तो बाप ने जो भी कमाया था, नक्शा नहीं है। और एक अनजान में, अपरिचित मार्ग पर भटक उसके ऊपर बेटा कमाना शुरू करता है। फिर बेटा उसमें जोड़ देता जाने का डर है, पहुंच जाने की उम्मीद कम है। इसलिए धर्म सबसे | है, अपने बेटे को दे जाता है। बाप की भी कमाई, अपनी भी कमाई, बड़ा साहस है; दुस्साहस है। कमजोर का काम नहीं है धर्म। बेटा वहां से शुरू करता है।
लेकिन आमतौर से हम देखते हैं, कमजोर धर्म से जुड़ा हुआ ___ तो जगत में सब चीजें बढ़ती जा रही हैं, प्रोग्रेसिव हैं, गतिमान दिखाई पड़ता है। अक्सर ऐसा दिखाई पड़ता है, जितने कमजोर हैं; सिर्फ एक चीज घटती जा रही है, वह धर्म है। लेकिन शायद लोग हैं, वे सब धर्म की आड़ में खड़े हो जाते हैं। इन कमजोरों ने आपने कभी सोचा न हो, इसका कारण क्या है? यह धर्म क्यों ही धर्म को जन्म का हिस्सा बना दिया, क्योंकि सुविधा है उसमें। घटता जा रहा है? धर्म को भी चुनने की कठिनाई न रही! इतना भी श्रम न उठाना पड़ेगा नासमझ हैं, वे कहते हैं कि धर्म इसलिए घट रहा है कि वैज्ञानिकों अब कि धर्म को चुने। वह भी जन्म के साथ जुड़कर लेबिल की ने अधार्मिक बातें कर दीं; वे कहते हैं, लोग नास्तिक हो गए; वे तरह मिल जाएगा। उसे हमें चुनना नहीं पड़ेगा, खोजना नहीं पड़ेगा, | कहते हैं, लोग भौतिकवादी हो गए; वे कहते हैं, लोग बिगड़ गए। अन्वेषण नहीं करना पड़ेगा, भूल-चूक नहीं करनी पड़ेगी, बच ये सब बातें गलत हैं। कोई बिगड़ा नहीं है। कोई नास्तिक नहीं जाएंगे सब भूल-चूक से!
हो गया है। किसी भौतिकवादी की बातों से धर्म का कुछ बिगड़ नहीं तो फिर एक लेबिल ही मिलेगा, धर्म मिलने वाला नहीं है! | | सकता। और धर्म अगर इतना कमजोर है कि वैज्ञानिक की बातों से
कृष्ण ने कहा है कि स्वधर्म। लेकिन लोग अक्सर समझते हैं कि मिट जाए और भौतिकवादी की बातों से मिट जाए, तो किसी योग्य स्वधर्म का मतलब है, जिस धर्म में पैदा हुए! भूलकर ऐसा मत भी नहीं है, मिट ही जाना चाहिए। धर्म इतना कमजोर नहीं है। धर्म
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