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________________ ज्ञान, भक्ति, कर्म खतरा बड़ा यह होता है कि जो धर्म उसका मार्ग बन सकता था, वह जन्म से उसे अगर न मिला हो, तो अड़चन पैदा हो जाती है। वह अड़चन गहरी है। इधर मैं जानता हूं ऐसे लोगों को, जो कि हिंदू के घर में न पैदा होकर अगर मुसलमान के घर में पैदा हुए होते, तो उन्हें लाभ हो जाता। ऐसे लोगों को जानता हूं, जो मुसलमान के घर में पैदा न होकर हिंदू के घर में पैदा होते, तो उनके जीवन में धर्म के फूल खिल जाते। उनके व्यक्तित्व का ढांचा और उनके जन्म के ढांचे का कोई मेल नहीं है। जन्म एक और बात है, धर्म एक और बात है। जन्म शरीर की बात है, धर्म व्यक्ति के टाइप की खोज है। धर्म व्यक्ति की अंतरात्मा की तलाश है। और प्रत्येक व्यक्ति को अपने ही ढंग से अपने धर्म को खोजना चाहिए। स्वधर्म की खोज जन्म से पूरी नहीं होती, स्वधर्म की खोज करनी पड़ती है। इसलिए एक और घटना घटती है कि सभी धर्म जब पहली दफा अवतरित होते हैं, तो उनमें जो जीवन और जो तेज होता है, वह समय के बीतते-बीतते क्षीण हो जाता है। जब भी कोई नया धर्म अवतरित होता है— नए धर्म का अर्थ है, जब कोई नया टाइप, व्यक्तित्व का कोई नया ढंग परमात्मा की तरफ जाने का मार्ग खोज लेता है, तो एक नए धर्म का सूत्रपात होता है— जब भी कोई नया धर्म पैदा होता है, तो उसमें एक ताजगी, एक प्रफुल्लता, एक जीवन का बहाव होता हैं। मोहम्मद के समय में जो इस्लाम की खूबी थी, वह आज नहीं है। हो नहीं सकती। कृष्ण के समय में, कृष्ण की मौजूदगी में जो कृष्ण के आस-पास घटित हुआ था, वह आज नहीं हो सकता। महावीर के साथ जो पहली दफा जैन हुए थे, उनके बच्चे उसी अर्थों में जैन नहीं हो सकते। क्योंकि महावीर के पास जिन्होंने पहली दफा | जैन होने का निर्णय लिया था, वह उनका कांशस डिसीजन था; वह उनका चेतना से लिया गया संकल्प था। वह उन्होंने चुना था । वह उनकी अपनी निष्ठा थी। वह उधार नहीं थी। वह बाप-दादों से नहीं आई थी। उसके लिए उन्होंने स्वयं खोज की थी। इसलिए महावीर के आस-पास जो लोग जैन हुए, उनके जैन होने में जो रस था, उनके जैन होने में जो प्राण था, वह किसी जैन के बेटे को नहीं हो सकता। होने का कोई कारण नहीं है। क्योंकि वह रस और प्राण स्वयं के चुनाव से उत्पन्न होता है। अगर कोई व्यक्ति गलत मार्ग भी चुन ले अपनी पूरी निष्ठा के साथ, तो मैं कहता हूं, वह परमात्मा तक पहुंच जाएगा। क्योंकि निष्ठा पहुंचाती है, मार्ग नहीं। और कोई व्यक्ति अगर उधार निष्ठा से ठीक से ठीक मार्ग भी चुन ले, तो कभी परमात्मा तक नहीं पहुंचता है। क्योंकि निष्ठा पहुंचाती है, मार्ग नहीं। निष्ठा है बल मार्ग में बल नहीं है; मेरे संकल्प में बल है। लेकिन जन्म से तो संकल्प मिलता नहीं ! जन्म से सिद्धांत मिलते हैं, शास्त्र मिलता है; जन्म से शब्द मिलते हैं, संकल्प नहीं मिलता। इसलिए जन्म के साथ जंब तक दुनिया में धर्म बंधा रहेगा, तब तक दुनिया अधार्मिक रहने को मजबूर रहेगी, आदमी को अधार्मिक रहना पड़ेगा। क्योंकि हम धार्मिक होने का चुनाव नहीं देते। इसे ऐसा समझें, मैं मुसलमान घर में पैदा हुआ हूं। अगर वह मार्ग मेरी व्यक्तिगत रुझान में नहीं बैठता; अगर वहां मैं नहीं हूं, जहां से उस मार्ग पर चल सकूं; अगर मैं ऐसा नहीं हूं, जो उस मार्ग से संयुक्त हो सके; अगर मुझ में और उस मार्ग में कोई तालमेल नहीं बैठता, तो मेरे सामने एक ही उपाय रह जाता है कि मैं | अधार्मिक हो जाऊं। 245 इस दुनिया में इतने अधार्मिक लोग दिखाई पड़ते हैं, इतने अधार्मिक नहीं हैं ये ! इनका केवल दुर्भाग्य एक है कि ये जन्म के साथ धर्म को बांधने की चेष्टा में संलग्न हैं । और जब हम बीस-पच्चीस वर्ष तक एक व्यक्ति को एक धर्म की शिक्षा दें, तो वह उसके अंतस - चेतन में प्रवेश कर जाती है, फिर वह धर्म परिवर्तित भी नहीं कर सकता। अगर एक हिंदू मुसलमान हो जाए, वह लाख उपाय करे मुसलमान होने का, उसके भीतर का हिंदू जो पच्चीस साल तक उसके भीतर निर्मित हुआ है, कभी भी मिट नहीं सकता। कभी भी मिट नहीं सकता, वह उसके भीतर बना ही रहेगा। एक हिंदू ईसाई हो जाए, लेकिन उसके अंतस चेतन में जो प्रवेश कर गया है, वह उसकी आधारभूमि रहेगी। उसकी ईसाइयत के | नीचे हिंदू का रंग रहेगा। वह चर्च में जीसस को हाथ जोड़ेगा, लेकिन हाथ जोड़ने के ढंग वही होंगे, जो राम के मंदिर में रहे थे । | उसका अंतस - चेतन, उसका अनकांशस निर्मित हो चुका है। अब मनसविद कहते हैं कि सात साल में अंतस चेतन निर्मित हो जाता है । और सात साल के बाद उसे बदलना असंभव के करीब है। सात साल की उम्र में अंतस - चेतन निर्मित हो जाता है, आधार रख दिए जाते हैं, फिर भवन उसके ऊपर ही उठेगा। अगर एक व्यक्ति को ऐसे धर्म में जन्म मिल गया, जिससे
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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