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________________ * दैवी या आसुरी धारा * है। दिन में एक पंडित दस-पांच घरों को निपटा देता है! निपटाना | हो जाए, अगर ये पापी जो हैं, पाप न करें। इसलिए उसको काम में है उसे। लगाए रखने के निमित्त ये बाहर आकर पाप किए चले जाते हैं। इसलिए ध्यान रहे, पुजारी परमात्मा से जितने दूर रह जाते हैं, | नहीं, कोई उससे प्रयोजन नहीं है। उसके गुणों की स्तुति का उतना शायद ही कोई रह पाता हो। क्योंकि पुजारी को प्रयोजन ही नहीं मतलब यह नहीं है कि हम एक खुशामद करें। स्तुति खुशामद नहीं रह जाता। उसका मतलब कुछ और है। यह उसके लिए धंधा है। । | है, वह फ्लैटरी नहीं है। और परमात्मा की आप कभी भी खुशामद उपासना आप उधार नहीं करवा सकते, आपको ही करनी नहीं कर सकते। क्योंकि खुशामद आप उसी की कर सकते हैं, पड़ेगी। और ऐसी उपासना का कोई मूल्य नहीं है कि मंदिर में तो जिसके और आपके बीच मूल्यों की समानता हो। परमात्मा के निकट होते हों और मंदिर के बाहर निकलते ही आप एक आदमी के पास जाकर कह सकते हैं कि आप जैसा परमात्मा खो जाता हो। ऐसी उपासना से क्या होगा? अगर वह है, महान कोई भी नहीं है। और वह खुश होगा, क्योंकि वह अहंकार तो सब जगह है। और अगर नहीं है, तो कहीं भी नहीं है; मंदिर में की तलाश में है। परमात्मा से आप यह कहकर उसे खुश न कर भी नहीं है। अगर नहीं है, तो सब मंदिर व्यर्थ हैं। और अगर है, तो | | पाएंगे कि आपसे महान कोई भी नहीं है। क्योंकि अहंकार की कोई सारी पृथ्वी, सारा जगत उसका मंदिर है। | तलाश नहीं है। और आप कितना भी कहें, वह जितना विराट है, इन दो के बीच उपासक को चुन लेना चाहिए। या तो वह समझ | | आपके शब्द उतना विराट होना प्रकट न कर पाएंगे। और वह ले कि वह मंदिर में भी नहीं है; और या फिर वह जान ले कि जहां | जितना महान है, आपके कोई शब्द उसको छू न पाएंगे। इसलिए भी अस्तित्व है, वहीं वह है। और उसकी यह जो खोज चलती रहे, | आपके कहने का कोई मतलब नहीं है। जहां भी वह है।... उसकी स्तुति का क्या अर्थ है? उसकी प्रार्थना का क्या अर्थ है? एक वृक्ष के पास बैठे, तो भी परमात्मा के पास बैठे। और एक उसके गुणों के कीर्तन का क्या अर्थ है? पशु के पास खड़े हों, तो भी परमात्मा के पास खड़े हों। एक मित्र बड़े अलग अर्थ हैं। बड़े अलग अर्थ हैं। पास हो, तो भी परमात्मा पास हो; और एक शत्रु पास हो, तो भी मंसूर निकल रहा है एक गली से, एक सूफी फकीर। फूल खिला परमात्मा पास हो। आपके लिए वही रह जाए। जितना यह बढ़ता है। खड़ा हो गया मंसूर। हाथ जोड़े, आकाश की तरफ देखा। उसके चला जाए विस्तार, जितनी यह प्रतीति उसकी गहन होती चली साधकों ने पूछा, यहां किसको हाथ जोड़ रहे हैं? कोई मस्जिद नजर जाए, उतने ही आप उपासना में रत हो रहे हैं। नहीं आती! मंसूर ने कहा, फूल खिला है, प्रभु की कृपा! अन्यथा उसके गुणों की चर्चा उपयोगी होगी। लेकिन हम गुणों की क्या | फूल कैसे खिल सकते हैं! चर्चा करते हैं? हम उसके गुणों की चर्चा कम करते हैं। हम गुणों यह कीर्तन है। की चर्चा में भी अपना हिसाब ज्यादा रखते हैं। मंदिर में मैं सुनता हूं ___ सूरज निकला है, मंसूर हाथ जोड़े खड़ा है। साथी कहते हैं, क्या लोगों को जाकर, वे कहते हैं कि हम पापी हैं और तुम पापियों का कर रहे हैं? क्या मूर्तिपूजक हो गए! मंसूर कहता है, सूरज निकल उद्धार करने वाले। इन्हें उसकी चर्चा से कम प्रयोजन है। इन्हें रहा है। इतना प्रकाश, इतना प्रकाश, प्रभु की कृपा है! प्रयोजन इसका है, इनको एक बात का पक्का है कि ये पापी हैं! यह स्तुति है। इसका बिलकुल पक्का नहीं है कि वह पापियों का उद्धार करने मंसूर मर रहा है, उसके हाथ-पैर काट दिए गए हैं। वह आकाश वाला है। ये तो केवल अपने पापों से बचाव का उपाय खोज रहे | | की तरफ आंखें उठाकर मुस्कुरा देता है। भीड़ पूछती है, यह तुम हैं। ये अपने पापों से बचाव का उपाय कर रहे हैं। इन्हें उसमें क्या कर रहे हो? दुश्मन इकट्ठे हैं, वे उसको मार रहे हैं। मंसूर उत्सुकता नहीं है। कहता है, प्रभु की कृपा है! क्योंकि इधर तुम मुझे मार रहे हो, उधर और मजा यह है कि बाहर निकलकर मंदिर के, ये कोई पापों में | | वह मुझे मिलने को बिलकुल तत्पर खड़ा है। इधर तुम मुझे कमी करने वाले नहीं हैं। अब ये बड़े निश्चित हैं, क्योंकि वह पापियों| | गिराओगे, उधर मैं उसमें डूब जाऊंगा। प्रभु की बड़ी कृपा है। और का उद्धार करने वाला है। अगर ये पाप न करेंगे, तो वह बेचारा शायद तुम सहायता न करते मुझे मारने में, तो मुझे पहुंचने में थोड़ी किसका उद्धार करेगा! परमात्मा भी खाली पड़ जाए, अनएंप्लायड देर भी हो जाती। 24]
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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