________________
* गीता दर्शन भाग-4
है। इसमें कठिनाई नहीं है। महावीर हो सके, वे पा सके परम | उपासना का अर्थ होता है, उसके पास बैठना। उपासना का अर्थ अवस्था बिना भगवान की धारणा के; भगवान को पा सके बिना | होता है, उसके पास बैठना। कहीं भी बैठे हों, अगर अनुभव करें भगवान की धारणा के। लेकिन उनके पीछे का आदमी तो नहीं पा | कि परमात्मा के पास बैठे हैं, तो उपासना हो गई। घर में बैठे हों, सकेगा; फिर उसे कठिनाई हुई। कोई भगवान नहीं रहा जैन विचार | | कि मंदिर में, कि जंगल में, कहीं भी बैठे हों, अगर उसकी उपस्थिति में, तो फिर महावीर को भगवान की तरह मानकर पूजा करनी शुरू | अनुभव कर सकें, अगर अनुभव कर सकें उसका स्पर्श-कि करनी पड़ी।
| हवाओं में वही छूता है, और सूरज की किरणों में वही आता है, खंटी तो चाहिए ही। भक्त हआ नहीं जा सकता बिना भगवान | और पक्षियों के गीत में उसी के गीत हैं, और वृक्षों में जो सरसराहट के; भगवान होना चाहिए।
होती है हवा की, पत्ते जो कंपते हैं, वही कंपता है; सागर की जो कृष्ण कहते हैं कि ये जो भक्तजन हैं, यह जो भक्ति की धारा है, | लहर हिलती है, यह उसी की तरंगें हैं-अगर ऐसी प्रतीति हो सके, यह जो सतत अनन्य चिंतन है, यह जो परमात्मा का स्मरण तो उपासना हो गई। है-उसके नाम का, उसके गुणों का; उसकी स्तुति है—यह भक्त उपासना का अर्थ यह नहीं कि गए मंदिर में, घंटा बजाया, पूजा के हृदय को निर्मित करती है।
| की; घर लौट आए। ऐसा भी नहीं है कि उसमें उपासना नहीं हो ठीक वैसे ही, जैसे बीज को हम बो देते हैं। वृक्ष तो बीज में छिपा | सकती है। उसमें हो सकती है। लेकिन जितनी जल्दबाजी में आदमी होता है, वृक्ष बाहर से नहीं आता, वह तो बीज में छिपा होता है;। घंटे बजाते हैं, उससे शक होता है। जितनी जल्दी में घंटा बजाते हैं, लेकिन अगर पानी न डाला जाए, और अगर सूरज की धूप न मिले, | जितनी जल्दी में पूजा-प्रार्थना करते हैं! तो वह जो छिपा है, वह भी प्रकट नहीं हो पाता। और अगर प्रकट और देखें उनकी पूजा-प्रार्थना का जो समय है, वह काफी भी हो जाए, और अगर माली का सहारा न मिले, और माली की | फ्लेक्सिबल होता है। कभी जब उन्हें फुर्सत होती है, या पत्नी से सुरक्षा न मिले, तो प्रकट हो जाए, तो भी टूट जाता है। घर झगड़ा हो गया हो, या दुकान आज बंद हो, या आज अदालत
जो है, वह तो बीज में है, लेकिन गौण सहारे आस-पास खड़े | न जाना हो, तो उपासना लंबी हो जाती है। आज जल्दी दफ्तर करने होते हैं। एक दिन जरूर बीज इतना बड़ा वृक्ष बन जाता है कि पहुंचना हो, उपासना सिकुड़कर छोटी हो जाती है। संक्षिप्त में भी फिर पशुओं का डर नहीं रहता; कि फिर उसे कोई तोड़ सकेगा, | | निपटा देते हैं। जल्दी से घंटी बजाई है, जल्दी से सब किया है! इसका भय नहीं रहता। फिर वर्षा न भी हो, तो अब बीज वर्षा के जो और भी ज्यादा जल्दी में हैं और जिनके पास सुविधा है, वे भरोसे नहीं है। अब उसने अपनी जड़ें फैला ली हैं। वह दूर नीचे | | खुद उपासना नहीं करते, नौकर-चाकर रख लेते हैं, उनसे करवा पाताल तक पहुंच गया है। अब वह अपना पानी खुद खींच सकता | देते हैं। पंडित हैं, पुजारी हैं, उपासना के लिए आप बीच में दलाल है। अब सूरज कुछ दिन न भी निकले, तो वृक्ष को बहुत चिंता नहीं | रख लेते हैं। भगवान से आपको लेना-देना है, पंडित-पुजारी को है। अब उसने सूर्य की बहुत-सी ऊर्जा को छिपाकर अपने भीतर | आपसे कुछ लेना-देना है; दोनों के बीच संबंध हो जाता है, राशि-कोष निर्मित कर लिए हैं। अब वह उनसे काम चला लेगा। समझौता हो जाता है, सौदा हो जाता है। वह कहता है, हमें आप अब माली भूल भी जाए और छूट भी जाए, तो वृक्ष अब अपनी | | इतना दे देना, हम इतनी उपासना कर देंगे। और आप निश्चित हैं खुद ही सुरक्षा करने में समर्थ हो गया है। लेकिन बीज ये बातें नहीं | कि उपासना चल रही है! कर सकता।
उपासना भी उधार हो सकती है? उपासना का अर्थ है, खुद तो महावीर तो वृक्ष जैसे व्यक्ति हैं, इसलिए बिना ईश्वर के चला | | उसके पास होना। दूसरा उसके पास कैसे होगा? और वह दूसरा लेते हैं। कोई कठिनाई नहीं आती। और ईश्वर को पा लेते हैं। | भी हो सकता था, उसको उसकी चिंता नहीं है। उसको चिंता आपसे लेकिन हम तो छोटे-छोटे बीज हैं, इनके लिए आस-पास बहुत | पैसे लेने की है। वह जब उपासना कर रहा है मंदिर में, तब वह तरह की व्यवस्था चाहिए।
गिनती कर रहा है, महीने के कितने दिन-बाकी बचे, कि आज तो कृष्ण कहते हैं, ईश्वर की धारणा, ईश्वर की तरफ उन्मुखता, । तनख्वाह का दिन आ गया कि नहीं आ गया: कि वह देख रहा है. उपासना उपयोगी है।
यहां से उपासना करके दूसरे के घर जाना है, फिर तीसरे के घर जाना
240