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* गीता दर्शन भाग-42
यह स्तुति है।
कह रहा है कि तेरी बड़ी कृपा है। ऐसे तो मैं आदमी ऐसा हूं कि जीसस को सूली लग रही है। और सूली पर आखिरी क्षण वे फांसी भी लगे, तो कम है। तूने इतने में ही बचा लिया! कहते हैं, हे परमात्मा, इन सबको माफ कर देना, क्योंकि इन्हें पता | यह उसको बार-बार नमन है। और ऐसे भाव में जो जीएगा नहीं, ये क्या कर रहे हैं!
सतत, अगर उसकी जिंदगी क्रमशः उस परमात्मा की तरफ बहने यह उसका गुणगान है। यह उसका कीर्तन है। यहां भी अनुकंपा | | लगे, तो... ही जीसस को खयाल में आती है।
(किसी व्यक्ति ने उठकर मंसूर के संबंध में कुछ उलटा-सीधा जीवन में कोई भी अवसर न जाए जब हम उसकी अनुकंपा को | प्रश्न पूछा, निकट बैठे लोगों ने उसे पागल समझ वापस बैठा अनुभव न करें। दुख हो कि सुख, शांति हो कि अशांति, सफलता दिया। इस पर भगवान श्री ने हंसते हुए उसे समझाकर अपनी बात मिले कि असफलता, रात हो कि दिन, सूरज उगता हो कि ढलता जारी रखी।) हो–उसकी अनुकंपा हमें प्रतीत होती रहे, उसके गुणों का एक कुछ फिक्र न करिए। कोई मंसूर के प्रेमी आ गए हैं। उन पर सरगम हमारे भीतर बजता रहे, तो स्तुति है, तो कीर्तन है। हम जीएं नाराज मत हो जाइए। उन पर नाराज हो गए, तो आसुरी प्रवृत्ति की कैसे ही, लेकिन भीतर एक सतत स्मरण उसका बना रहे। उसके तरफ बहना शुरू हो जाता है। उन पर खुश हो जाइए। एक मौका स्मरण से हम न चूकें, तो उसका स्मरण है।
| आपको दिया नाराज होने का, अगर नहीं हों, तो यात्रा दूसरी तरफ कष्ण कहते हैं. ऐसे दढ निश्चय वाले भक्तजन निरंतर मेरा शुरू हो जाती है। कीर्तन करते हुए मुझे बार-बार नमस्कार करते हुए...।
जीवन प्रतिपल एक चुनाव है। परमात्मा की तरफ, हर जगह से बार-बार कैसे नमस्कार करिएगा? जहां भी आपको उसकी हम खोज लें। अब ये सज्जन आ गए, उनमें भी हम शैतान को देख अनुकंपा अनुभव हो-और कहां उसकी अनुकंपा नहीं अनुभव | सकते हैं; उनमें भी हम पागल को देख सकते हैं; उनमें भी हम होगी? अनुभव करने की दृष्टि हो, तो सब जगह उसकी अनुकंपा | परमात्मा को देख सकते हैं। हम पर निर्भर करेगा, उन पर निर्भर अनुभव होगी।
नहीं है। वे पागल हैं कि नहीं हैं, यह उनकी बात है। लेकिन हम यह मंसूर जा रहा है एक रास्ते से। पैर में पत्थर लग गया है, लहूलुहान | देख सकते हैं, उनकी इस वृत्ति में भी हमें एक मौका है, अगर हम हो गया। वहीं बैठकर, हाथ जोड़कर घुटने टेक दिए हैं। साथियों ने | | उनमें भी उसकी ही अनुकंपा अनुभव करें। उन्होंने सिर्फ कहा, कहा, क्या करते हो? पागल हो गए हो! पैर से लहू बह रहा है। आकर पत्थर ही मार सकते थे। उन्होंने सिर्फ कहा, कुछ और तो
मंसूर ने कहा, जहां तक मैं जानता हूं, जैसा मे आदमी हूं, मुझे | किया नहीं। जैसे हम आदमी हैं, इनके साथ कुछ भी किया जाए, फांसी होती तो भी कम था। उसकी कृपा है। फांसी बची, सिर्फ पैर | तो थोड़ा है। में जरा-सा पत्थर लगा है। जैसा मैं आदमी हूं, उसे तो फांसी भी जीवन में हर घड़ी चुनते रहें, जहां से उसकी स्तुति और उसका हो, तो कम है। उसकी कृपा है कि फांसी बच गई और पैर में सिर्फ स्मरण हो सके, तो एक दिन भीतर वह सघन भाव उपस्थित हो पत्थर लगा है।
जाता है भक्त का, जो कि द्वार है भगवान के अनुभव के लिए। अगर आपके पैर में पत्थर लगता, तो मालूम है आपके मुंह से आज इतना ही। क्या निकलता? आपके मुंह से गाली निकलती। सारी दुनिया उस - लेकिन उठेंगे नहीं। पांच मिनट कीर्तन करेंगे। एक बात कह दूं, क्षण में बिलकुल बेकार हो जाती। सारा जीवन असार हो जाता। बीच में जब कीर्तन चले, तो आप उठे मत। कोई एक खड़ा हो अगर आपका वश चले, तो आप उस वक्त पूरी दुनिया में आग लगा | | जाता है, तो पीछे लोगों को खड़ा होना पड़ता है। दें, सब नष्ट-भ्रष्ट कर दें। नहीं चलता वश, बात अलग है। लेकिन | दूसरी बात, यहां नीचे जो लोग भी आकर खड़े होते हैं, वे अगर भीतर तो सोच लेते हैं। जरा-सा दांत में दर्द हो जाए, तो जगत में कीर्तन में नाचते हों, तो ही खड़े हों। आकर खड़े होकर देखना नहीं ईश्वर दिखाई नहीं पड़ता। जरा-सी सिर में पीड़ा हो जाए, तो जगत है। फिर वहीं बैठकर देखते रहें। यहां नीचे भी कोई आकर खड़ा एकदम नास्तिकता से भर जाता है, सब अंधेरा हो जाता है। | नहीं होगा। कीर्तन में सम्मिलित होना हो, तो आ जाएं! यह मंसूर कुछ और ढंग का आदमी है। यह हाथ जोड़कर उससे |
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