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________________ * गीता दर्शन भाग-42 फिर रहे हैं कि आग जल रही है! कुछ नहीं होता। की तरफ हवाएं चलती हैं, तब अगर आप अपनी नाव को खोल थोड़ा-सा इंचभर भी जीवन बदलता हो, ऐसे ज्ञान की तलाश देते हैं, तो आप पश्चिम की तरफ पहुंच जाते हैं। इस जगत में पूरब करनी चाहिए; और ऐसे ही ज्ञान पर भरोसा करना चाहिए; और ऐसे की तरफ भी हवाएं चलती हैं। जरा प्रतीक्षा करें और नाव का पाल ही ज्ञान को भीतर जाने देना चाहिए। व्यर्थ के ज्ञान को भीतर नहीं जाने तब खोलें, जब पूरब की तरफ हवाएं चलती हैं, तो आप पूरब पहुंच देना चाहिए, क्योंकि भीतर कचरा भरने के लिए स्थान नहीं है। जो जाते हैं। बहुत कचरा भीतर भर लेता है, फिर कभी सार्थक भी दरवाजे पर आ । प्रतिपल जीवन में नीचे की तरफ जाने वाली हवाएं भी बहती हैं जाए, तो वह कचरे की वजह से भीतर नहीं जा सकता। और ऊपर की तरफ जाने वाली हवाएं भी बहती हैं। आप जिन ऐसा मैं देखता हूं बहुत लोगों को। वे मेरे पास आकर कभी कहते हवाओं का सहारा ले लेते हैं, आप उसी यात्रा पर निकल जाते हैं। हैं कि यह बात तो ठीक लगती है, लेकिन पहले जो बातें सुनी हैं, | जब कोई आपको गाली देता है, तब यह हवा दूसरी तरफ जा रही उनकी वजह से बड़ी मुश्किल हो रही है! | है। अगर आपने अभी पाल खोल दी अपनी नाव की, तो आप क्रोध __ मैं उनसे कहता हूं कि अगर पहली सुनी बातों ने तुम्हारी जिंदगी | | के जगत में उतर जाएंगे। यह आपका जिम्मा है, यह गाली देने वाले बदल दी हो, तो मेरी बात को भूल जाओ! और अगर पहली सुनी | का नहीं है। इस जगत में सब हो रहा है, यह आप पर निर्भर है। बातों ने तुम्हारी जिंदगी न बदली हो, तो कचरे की तरह उनको बाहर | | जब कोई शांत ध्यान में बैठा है, तब भी एक हवा दूसरी तरफ बह फेंक दो! इतनी हिम्मत रखनी चाहिए कि जिस ज्ञान से मेरे में कोई रही है। काश, आप भी इसके पास शांत होकर थोड़ी देर बैठ जाएं, अंतर नहीं पड़ा, उसे मैं बाहर उतारकर रख सकूँ। जिस दवा से कोई | तो शायद आपकी नाव किसी दूसरी यात्रा पर निकल जाए। फायदा न हुआ हो, बल्कि बीमारी और सघन हो गई हो, उस दवा | बुद्ध एक गांव में बहुत बार गए। उस गांव में एक दुकानदार है। को कब तक लेते रहिएगा? मित्र उसको कहते हैं कि बुद्ध आए हैं। वह कहता है कि अभी तो लेकिन बड़े खतरनाक बीमार भी हैं दुनिया में! वे बीमारी को ही दुकान पर बहुत ग्राहक हैं। कभी बुद्ध आते हैं, वह कहता है, इस नहीं पकड़ लेते, दवा तक को जोर से पकड़ लेते हैं। वे कहते हैं, बार तो लड़के की शादी है। कभी बुद्ध आते हैं, वह कहता है कि एक दफे बीमारी रहे कि जाए, लेकिन दवा को हम न छोड़ेंगे! आज तो मौसम ठीक नहीं है; आज बाहर न जा सकूँगा। कभी दवा को कोई पकड़ ले, तो उस मरीज को क्या कहिएगा? यह कहता है, आज तबियत खराब है। पागल हो गया। ज्ञान पकड़ने की चीज नहीं है, रूपांतरित होने की | | तीस वर्ष बुद्ध उस गांव से अनेक बार गुजरे, लेकिन वह आदमी है, बदलने की है, आत्मक्रांति की है, ट्रांसफार्मेशन की है। | यही कहता रहा, कभी यह कारण है, कभी वह कारण है। लेकिन तो कृष्ण कहते हैं, वह ज्ञान वृथा है, जिस ज्ञान से कोई अंतर इस आदमी को कोई जाकर गाली दे, ग्राहकों को छोड़कर दरवाजे नहीं पड़ता। ऐसा व्यक्ति मूढ़ है। वृथा आशा, वृथा कर्म और वृथा | से बाहर निकल आएगा। कोई इसको गाली दे, धुआंधार वर्षा हो ज्ञान से भरे हुए मूढजन...। रही हो, फिक्र छोड़ देगा। कोई इसको गाली दे, बीमार हो, मर भी - इसके बाद वे दूसरे हिस्से में उनकी बात करते हैं, जो मूढ़ नहीं हैं।। । | गया हो, तो फिर से प्राण आ जाएंगे; बाहर निकल आएगा कि वे कहते हैं, हे पार्थ, दैवी प्रकृति के आश्रित हुए जो महात्माजन, | | किसने गाली दी? लेकिन बुद्ध इसके गांव से गुजरते हैं, तो यह मुझको सब भूतों का सनातन कारण और नाशरहित अक्षरस्वरूप तीस साल तक कोई न कोई बहाना खोजता रहता है। जानकर अनन्य मन से युक्त हुए निरंतर भजते हैं। ___ मैं पटना में था, वहां के कलेक्टर मुझे रात ग्यारह बजे मिलने इसमें दो बातें समझ लेने की हैं। एक तो दैवी प्रकृति के आश्रित | | आए। तो मैंने उनसे कहा कि अब तो मैं सोने जा रहा हूं, बिस्तर पर हुए—यह कीमती हिस्सा है। बैठ गया हूं, आप देख ही रहे हैं। बस, अब सिर रखने की देर थी इस जगत में ऊपर की तरफ जाने वाला प्रवाह है, नीचे की तरफ और आप आ गए हैं। आप कल सुबह आठ बजे आ जाएं। उन्होंने जाने वाला प्रवाह है। आप जिस प्रवाह को चुन लेते हैं, वही प्रवाह | कहा, आठ बजे तो मैं आ ही नहीं सकता, क्योंकि आठ बजे तो मैं आपके जीवन को गतिमान करने लगता है। इस जीवन में पूरब की | सोकर ही नहीं उठता। तरफ भी हवाएं चलती हैं, और पश्चिम की तरफ भी। जब पश्चिम मैंने उनको कहा कि नौ बजे आ जाएं, क्योंकि फिर नौ से ग्यारह 2361
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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