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* दैवी या आसुरी धारा
मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, यह कल का पुरस्कार है। आज का | | अज्ञान में था, तो इस ज्ञान और अज्ञान में फर्क क्या है? पुरस्कार कल दे चुका हूं।
आप गीता पढ़ जाएं और वही के वही आदमी रहें, जो गीता पढ़ने उस रात भी नौकर नहीं सो सके!
के पहले थे, तो इस गीता के साथ जो मेहनत हुई, वह व्यर्थ गई। हम जो भी अपेक्षाएं बांधकर जीते हों। कुछ भी हो जाए, कुछ न | और इस गीता ने जो आपको दिया, वह बेकार है, दो कौड़ी का भी करें और स्वर्णमुद्रा मिल जाए, तो भी दुख होता है। कुछ करें, नहीं है। क्योंकि आप वही के वही हैं; कहीं कोई फर्क नहीं हुआ। स्वर्णमुद्रा न मिले, तो भी दुख होता है। अपेक्षा में दुख है, अपेक्षा ___ मैं देखता हूं, गीतापाठी हैं, चालीस साल से गीता पढ़ रहे हैं। में पीड़ा है।
यहां बंबई में कई सत्संगी हैं. वे रोज सुबह से उठकर सत्संग करते कृष्ण कहते हैं, और वृथा ज्ञान वाले...।
रहते हैं। नियमित करते रहते हैं। कौन वहां बोल रहा है. कौन नहीं वृथा ज्ञान क्या है? जो ज्ञान अपने काम न आए, वह वृथा है। | बोल रहा है, इससे भी कोई प्रयोजन नहीं है, सत्संग करना उनका और हम सबके पास ऐसा-ऐसा ज्ञान है, जो काम कभी भी नहीं | | धंधा है। अपना रोज सुबह सत्संग कर आते हैं। वह वैसे ही, जैसे आता। दुनिया में ज्ञान की कोई भी कमी नहीं है। शायद जरूरत से कोई आदमी रोज सुबह उठकर चाय पीता है, कोई रोज सुबह ज्यादा है। और हर आदमी के पास पर्याप्त मात्रा में है, जरूरत से | उठकर सिगरेट पीता है, ये सत्संग करते हैं! ज्यादा है। इसलिए हरेक बांटता रहता है, हर किसी को बांटता /चालीस साल से ये सत्संग कर रहे हैं। शायद सिगरेट पीने वाले रहता है।
का कुछ असर भी हुआ हो, कैंसर हो गया हो, टी.बी. हो गई हो, इस दुनिया में जितने मुक्तहस्त होकर हम ज्ञान बांटते हैं, और | वह भी इनको नहीं हुआ। कुछ नहीं हुआ इन्हें। ये सत्संग से ऐसे कोई चीज नहीं बांटते। हालांकि कोई लेता नहीं आपके ज्ञान को, | बचकर निकल जाते हैं! और इनको करवाने वाले लोग भी बैठे हुए पर आप बांटते चले जाते हैं। क्योंकि दूसरे के पास भी पहले से ही | | हैं कि वे इनको करवाते रहते हैं। वे भी इनको करवाते रहते हैं। काफी है। कोई किसी की सलाह नहीं मानता। इस दुनिया में जो उनको भी इससे प्रयोजन नहीं है। सबसे ज्यादा दी जाती है चीज, वह सलाह है। और जो सबसे कम कुछ हैं, जिनको सत्संग करवाना ही है, वह उनकी बीमारी है। ली जाती है, वह भी सलाह है। कोई नहीं मानता, लेकिन आप बांटे | | कुछ हैं, जिनको सत्संग करना ही है, वह उनकी बीमारी है। ये दोनों चले जाते हैं।
तरह के बीमार मिल जाते हैं, फिर चलता रहता है ज्ञान का __ यह ज्ञान, जो आप बांटते फिरते हैं, आपके किसी काम आया लेन-देन! कहीं कोई फल नहीं होता। हां, एक फल होता दिखाई है कभी? इसका आपने कभी कोई उपयोग किया? यह ज्ञान कभी पड़ता है कि धीरे-धीरे ये सुनने वाले सुनाने वाले बन जाते हैं, यह आपके जीवन का अंतरंग हिस्सा बना? यह ज्ञान आपकी बीइंग, एक फल दिखाई पड़ता है! जो सुनते रहे काफी दिन, फिर इतना पिकी आत्मा बना? यह ज्ञान कभी आपके हृदय में धड़का और ज्ञान इकट्ठा हो जाता है कि अब उसका क्या करें? तो ज्ञान का एक आपके खून में बहा? यह ज्ञान कभी आपके मस्तिष्क की मज्जा बन ही उपयोग मालूम पड़ता है कि दूसरे को ज्ञानी बनाओ! स्वयं से पाया? या बस कोरे शब्द हैं, जो आपके भीतर गूंजते रह जाते हैं? उसका कोई लेना-देना नहीं है। आप एक ग्रामोफोन रिकार्ड हैं?
अपने भीतर आप जांच करना, कौन-सा ज्ञान है, जिसने जरा खयाल करेंगे अपनी बुद्धि का तो आपको पता लगेगा कि | आपको छुआ हो, जिसने आपको स्पर्श किया हो, जिसके बाद बिलकुल ग्रामोफोन रिकार्ड हैं। कुछ है, जो डाल दिया जाता है | आप वही आदमी न रह गए हों, जो आप पहले थे; रत्तीभर भी भीतर, फिर आप उसे बाहर डालते रहते हैं। यह ज्ञान वृथा है। बदल गया हो कुछ! क्योंकि जो ज्ञान जीवन को रूपांतरित न कर जाए, आपके खुद ही | कुछ बदलता दिखाई नहीं पड़ता हो, तो कृष्ण कहते हैं, यह वृथा काम न आए, वह इस दुनिया में किसी और के काम न आ सकेगा। | ज्ञान है। ऐसा ज्ञानी व्यक्ति, ऐसा वृथा ज्ञानी मूढ़ है। थोड़ा-सा ज्ञान
ज्ञान वही सार्थक है, जिसे जानने से ही मेरे जीवन में रूपांतरण काफी है, जो बदले। ऐसी आग को घर में जलाकर भी क्या करेंगे, हो। ज्ञान का अर्थ ही है, जो क्रांति हो जाए! जानूं और बदल जाऊं। | जिससे आंच भी न निकलती हो! एक प्याली चाय भी बनानी हो, जानूं और बदलू न, जानकर भी वही रह जाऊं, जो अनजाने में था, | | तो न बनती हो! और जला रहे हैं जिंदगीभर से, और घर में चिल्लाते
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