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* गीता दर्शन भाग-4
दूसरे की तरफ लगे रहते हैं। यह वृथा आशा है; और ऐसा व्यक्ति | | अगर आपको सुख की कोई झलक मिलती है, तो वह इसीलिए मूढ़ है। मूढ़ वह इसलिए है कि वह जीवन के नियम को समझ ही | मिलती है कि कभी भूल-चूक से आप जीवन के नियम के अनुकूल नहीं पा रहा है। और जीवन का नियम प्रतिपल प्रकट हो रहा है। पड़ जाते हैं। कभी भूल से आप दीवाल से निकलना भूल जाते हैं
जब भी चाहोगे दूसरे से सुख, तत्काल दुख मिलेगा। यह दुख और दरवाजे से निकल जाते हैं। या कभी ऐसा हो जाता है कि आप दूसरे से नहीं मिलता, दूसरे से सुख चाहने के कारण मिलता है। दरवाजे को दीवाल समझ लेते हैं और निकल जाते हैं। लेकिन जब आपने नियम के विपरीत चलने की कोशिश की, इसलिए दुख भी सुख फलित होता है, तो नियम की अनुकूलता से। मिल जाता है। आपने नियम के प्रतिकूल बहने की कोशिश की, वृथा आशा का अर्थ है, नियमों के प्रतिकूल आशा। जैसा मैंने टांग टूट जाती है। आपने नियम के प्रतिकूल चलने की कोशिश उदाहरण के लिए आपसे कहा, दूसरे से सुख मिल सकता है, यह की, दीवाल से सिर टकरा जाता है। इसमें दीवाल का कसूर नहीं एक वृथा आशा है। इसका चुकता परिणाम दुख होगा। और जब है। दीवाल निकलने के लिए नहीं है। निकलना हो, तो दरवाजे से दुख होगा, तो हम कहेंगे, दूसरे से दुख मिल रहा है। हम अपनी निकलना चाहिए।
भ्रांति नहीं छोड़ेंगे, यह मूढ़ता है। दुख मिल रहा है, सबूत हो गया लेकिन अगर आपका एक दीवाल से सिर टकराता है, तो आप | कि मैंने जो चाह की, वह नियम के प्रतिकूल थी। तत्काल दूसरी दीवाल चुन लेते हैं कि इससे निकलने की कोशिश दूसरे से कुछ भी नहीं मिल सकता है। दूसरे से मिलने का कोई करेंगे। और जिंदगीभर दीवालें चुनते चले जाते हैं; और वह जो उपाय ही नहीं है। इस जगत में जो भी महत्वपूर्ण है, वह हम अपने दरवाजा है, उसे चूकते चले जाते हैं। एक दीवाल से ऊबते हैं, तो ही भीतर खोदकर पाते हैं। दूसरी दीवाल को पकड़ लेते हैं। दूसरी से ऊबते हैं, तो तीसरी और दूसरी तरफ से समझने की कोशिश करें। प्रत्येक व्यक्ति दीवाल को पकड़ लेते हैं। लेकिन दीवाल को नहीं छोड़ते! अपने चारों ओर आशाओं का, इच्छाओं का एक जाल बुनता है।
हर आदमी दुखी है। दुख का कारण जीवन नहीं है। दुख का अगर आशाएं टूटती हैं, जाल टूटता है, इच्छाएं पूरी नहीं होतीं, तो कारण जीवन बिलकुल नहीं है। क्योंकि जीवन तो परमात्मा का | वह समझता है कि परमात्मा नाखुश है, भाग्य साथ नहीं दे रहा है। स्वरूप है। दुख वहां हो नहीं सकता। दुख का कारण है, जीवन के | लेकिन वह यह कभी नहीं सोचता कि मैंने जो जाल बुना है, वह जो शाश्वत नियम हैं, उनकी नासमझी।
जाल गलत है। जमीन में कशिश है। आप एक झाड़ पर से गिर पड़ेंगे, तो टांग भाग्य हर एक के साथ है। भाग्य का अर्थ है, जीवन का परम टूट जाएगी। इसमें न तो झाड़ का कोई हाथ है और न जमीन का नियम, दि अल्टिमेट ला। भाग्य सबके साथ है। जब आप भाग्य कोई हाथ है। जमीन तो सिर्फ चीजों को नीचे की तरफ खींचती है। के साथ होते हैं, तो सफल हो जाते हैं। जब आप भाग्य के विपरीत आपको झाड़ पर सम्हलकर चढ़ना चाहिए। आप गिरते हैं, तो आप हो जाते हैं, तो असफल हो जाते हैं। भाग्य किसी के विपरीत नहीं जिम्मेवार हैं। आप यह नहीं कह सकते हैं कि जमीन की कशिश ने है। लेकिन हमारे जाल में ही बुनियादी भूलें होती हैं। थोड़ा अपने मेरे पैर तोड़ डाले। जमीन को कोई आपसे मतलब नहीं है। आप न | जाल की तरफ देखें। गिरे होते. तो जमीन की कशिश भीतर पड़ी रहती। वह नियम आप एक आदमी चाहता है कि धन मझे मिल तो मैं धनी हो पर लागू न होता। नियम तो काम कर रहे हैं। जब आप उनके | जाऊंगा। भीतर एक निर्धनता का बोध है हर आदमी को, एक इनर प्रतिकूल होते हैं, तो दुख उत्पन्न हो जाता है; जब उनके अनुकूल | पावर्टी है। हर आदमी को लगता है भीतर, मेरे पास कुछ भी नहीं होते हैं, तो सुख उत्पन्न हो जाता है।
है; एक खालीपन, एंप्टीनेस, रिक्तता है। भीतर कुछ भी नहीं है। ध्यान रखें, सुख का एक ही अर्थ है, जीवन के नियम के जो | इसे कैसे भर लूं! इस रिक्तता को भरने की दौड़ शुरू होती है। अनुकूल है, वह सुख को उपलब्ध हो जाता है। दुख का एक ही कोई आदमी धन से भरना चाहता है। गलत जाल रचना शुरू अर्थ है कि जीवन के नियम के जो प्रतिकल है, वह दख को उपलब्ध कर दिया। क्योंकि ध्यान रहे, धन भीतर नहीं जा सकता, और भीतर हो जाता है। अगर आप दुखी हैं, तो स्मरण कर लें कि आप जीवन | है निर्धनता। और धन बाहर रह जाएगा। धन भीतर जाता ही नहीं। के आधारभूत नियम के प्रतिकूल चल रहे हैं। कभी भूल-चूक से| इसलिए एक बड़े मजे की घटना घटती है, जितना धन इकट्ठा
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