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* गीता दर्शन भाग-44
थे, आदमी होता तो मर जाता।
झूठा है, तो इनके लड़के की नौकरी का क्या होगा? इनकी बीमारी सूली जब लग रही थी, तब भक्त देख रहे थे आशा से कि कोई का क्या होगा? फलाने को कैंसर है, उसका क्या होगा? चमत्कार होगा! आखिरी क्षण में जीसस कोई खेल दिखाएंगे! तो मैंने कहा, तू ठहर! जब लड़के को नौकरी मिल जाए, तब तू
वही आदमी की मूढ़ता! आदमी भगवान को नहीं मानता, बताना जाकर। तब वे कहेंगे, हमको पहले से ही पता था। अभी चमत्कार को मानता है। चमत्कार हो, तो उसे लगता है कि चलो, उनका इनवेस्टमेंट है। अभी चमत्कार में थोड़ा न्यस्त स्वार्थ है। कुछ तो अपने से अलग है, कुछ भिन्न है। हाथ से राख निकाल देता कृष्ण को आप न मानेंगे! कृष्ण को आप मान सकते हैं, अगर है, ताबीज निकाल देता है: जरूर कुछ बात है!
कोई चमत्कार हो। चमत्कार को मान सकते हैं। क्योंकि हमारी आदमी से मतलब नहीं है। यह आदमी राख से भी दो कौडी का मढता चमत्कार और मदारीगिरी से प्रभावित होती है। चमत्कार हम हो, तो चलेगा; लेकिन राख निकाल देता है हाथ से! मदारीगिरी से देख सकते हैं, हमारे तल पर होता है। हाथ खाली है और राख गिर मतलब है। तो मदारी को हम चाहे एक दफा भगवान मान भी लें, गई! अब इसमें कोई दिक्कत नहीं है। कोई चेतना ऊपर उठाने की हालांकि मन में हम जानते रहेंगे कि जरूर किसी ट्रिक से, कहीं चोगे जरूरत नहीं है। यह तो हमारी आंख में भी दिख जाता है कि हाथ वगैरह में छिपा रखी होगी-मन में। लेकिन जब तक खुल न जाए, खाली था और राख गिर गई। तो चमत्कार हो गया। तब तक कुछ कहना ठीक नहीं है। कहीं ताबीज निकाला होगा, जो चमत्कार आपको चमत्कार मालूम पड़ता है, वह आपकी क्योंकि स्विस मेड घड़ी अगर हाथ से निकलती हो, तो बिना छिपाए चेतना को ऊपर उठाने वाला सिद्ध नहीं हो सकता। वह आपकी नहीं निकलेगी। हम जानते हैं कि स्विस मेड है; हाथ से निकल कैसे बुद्धि जहां है, वहीं दिख जाता है। बड़ा चमत्कार तो यह है कि हम रही है!
अपनी मनुष्यता से ऊपर उठकर थोड़ा देख पाएं, तो हमें कृष्ण जैसे ऐसे एक महात्मा बंबई में किसी के घर ठहरे होंगे। वे जब चले | व्यक्ति का रूप दिखाई पड़ना शुरू हो। गए, तो वह महिला मेरे पास आई और उसने कहा कि मैं बड़ी लेकिन कृष्ण कहते हैं, वे मुझे तुच्छ समझते हैं, क्योंकि मैं मनुष्य मुश्किल में पड़ गई हूं। मैं तो सारे अपने मित्रों, परिवारों, संबंधियों | के शरीर में खड़ा हूं। को सबको उनका भक्त बना दी। सिर्फ इसीलिए कि वे घड़ी, वृथा आशा, वृथा कर्म और वृथा ज्ञान वाले अज्ञानीजन राक्षसों ताबीज न मालूम क्या-क्या निकाल देते हैं। इस बार बड़ी मुश्किल | के और असुरों के जैसे मोहित करने वाली प्रकृति अर्थात स्वभाव हो गई है। वे गए हैं और उनका बैग घर में रह गया है। उसमें दो को ही धारण किए हुए हैं। सौ स्विस मेड घड़ियां हैं।
एक आखिरी बात, मनुष्य अनिर्मित, अपूर्ण चेतना है। जानवरों तो मैंने उससे पूछा कि तुझे पहले पक्का भरोसा था? के पास पूरा व्यक्तित्व है। एक गाय पूरी गाय है; एक कुत्ता पूरा उसने कहा, भरोसा तो नहीं था। शक तो होता था भीतर कि कुत्ता है; आदमी पूरा आदमी कभी नहीं हो पाता। आदमी जरूर कहीं न कहीं घड़ी छिपी होगी। अब प्रमाणं मिल गया। कम-ज्यादा होता रहता है। आदमी आदमी की तरह पैदा नहीं होता, तो अब तू क्या करेगी?
आदमी उसे बनना होता है। आदमी में विकास है। एक कुत्ता कुत्ते उसने कहा कि अब मैं बड़ी मुश्किल में पड़ी हूं। जिनको मैंने की तरह पैदा होता है। फिर आप किसी कुत्ते से यह नहीं कह सकते उनका भक्त बनाया, उनको भी मैं कहती हूं, तो वे कहते हैं, तेरा | कि तुम अधूरे कुत्ते हो, या कम कुत्ते हो। कोई अधूरा कुत्ता नहीं है, दिमाग खराब हो गया है!
कोई कम कुत्ता नहीं है। सब कुत्ते बराबर कुत्ते हैं। वह जो कुत्तापन मैंने उससे पूछा कि तू जिनको कहती है, उनके कोई निहित स्वार्थ | है, वह सबको मिला हुआ है एक-सा। तो नहीं हैं?
लेकिन आदमी से हम कह सकते हैं कि तुम थोड़े कम आदमी उसने कहा, हैं। किसी का लड़का बीमार है; किसी को नौकरी | | हो। किसी से हम कह सकते हैं कि तुम थोड़े ज्यादा आदमी हो। नहीं मिल रही है; किसी का बाप पागल हो गया है; किसी का कुछ | | किसी से हम कह सकते हैं कि तुम्हारी आदमियत का क्या हुआ? हो गया है।
| किसी कुत्ते से कह सकते हैं कि तुम्हारे कुत्तेपन का क्या हुआ? कोई तो अगर यह सिद्ध हो जाए कि वे बाबा चमत्कार जो कर रहे हैं, अर्थ नहीं है। व्यर्थ की बात है। कुत्ता हमेशा कुत्ता है। उसमें कभी
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