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* विराट की अभीप्सा
में झलक आ जाती है भरोसे की, तो उसको भी लगता है कि होगा, | | आसान इसलिए है कि उनकी मनुष्यता हमारे सामने से तिरोहित हो जरूर होगा। क्योंकि इतने लोग भी मानने लगे हैं! उसे खुद भी कोई गई होती है। राम पर उनके गांव के धोबी को भी भरोसा नहीं था कि भरोसा नहीं है। क्योंकि भरोसा आत्मक्रांति बन जाता है। | यह आदमी भगवान है। अब हम आराम से राम को भगवान मान
यहूदियों को भरोसा नहीं है। वे सूली पर लटकाते हैं। ठीक सूली सकते हैं। अब हमें तकलीफ नहीं है। अब मनुष्य रूप तिरोहित हो पर लटकाने के पहले पायलट ने जीसस से पूछा है, तुम सच-सच गया है। इसलिए अब हमें यह सोचने की सुविधा नहीं है कि वे भी मुझे कह दो, क्या तुम ईश्वर के पुत्र हो?
| हमारे जैसे मनुष्य हैं, भगवान कैसे हो सकते हैं! इसे कैसे कहा जा सकता है! और अगर जीसस कह भी दें, तो | फिर जैसे समय बीतता है, हम कथाएं गढ़ते चले जाते हैं। और कौन मानता है? ये कृष्ण चिल्लाकर कह रहे हैं, कौन मानता है? उन कथाओं में हम यह कोशिश करते हैं कि किसी भी तरह से कोई मानने को तैयार नहीं होता।
उनका मनुष्य रूप तिरोहित हो जाए। हमारी सारी कथाएं उनके नहीं मानने का गहरा कारण यह है कि हम ऊपर उठने को तैयार मनुष्य रूप को तिरोहित करने का उपाय हैं। यह सिद्ध हमको करना नहीं हैं। और ये बातें खतरनाक हैं। इनको मानें, तो ऊपर उठना पड़ता है बाद में कि वे मनुष्य नहीं थे, सिर्फ मनुष्य रूप में दिखाई पड़ेगा। हम बचाव कर रहे हैं। ये सब डिफेंस मेजर हैं। हम कहते पड़ रहे थे। फिर सब तरह से हम सिद्ध करते हैं। यह सारा सिद्ध हैं, ये बुद्ध, कुछ भी नहीं हैं। क्योंकि अगर ये कुछ हैं, तो फिर मुझे | करना हमारी उस मूढ़ता का ही हिस्सा है। जब वे मनुष्य रूप में आत्मग्लानि पैदा होगी। फिर मुझे पीड़ा होगी शुरू, फिर मुझे संताप | सामने होते हैं, तो हमें तकलीफ होती है, क्योंकि उस रूप को होगा कि अगर ये बुद्ध इतने परम आनंद में हो सकते हैं, तो मैं क्यों | असिद्ध नहीं किया जा सकता। नहीं हो सकता हूं। तो फिर मुझे ग्लानि शुरू होगी। तो मैं इस झंझट | | बुद्ध भी बीमार पड़ते हैं। यह बुद्ध का भक्त, जो उनको भगवान में नहीं पड़ना चाहता। मैं कहता हूं, यह सब बनावट है, यह सब मानता हो, उसे बड़ी तकलीफ देता है। बुद्ध भी बीमार पड़ते हैं! दिखावा है। यह आदमी बन-ठनकर, शांत होकर, आंख बंद करके | बुद्ध को तो बीमार नहीं पड़ना चाहिए। क्योंकि बुद्ध कोई मनुष्य तो बैठ गया है। कुछ हुआ-वुआ नहीं है। भीतर कुछ भी नहीं है। भीतर नहीं हैं! कुछ भी नहीं है।
फिर बाद में उसे कथाएं गढ़नी पड़ती हैं कि बुद्ध इसलिए बीमार क्यों? बुद्ध के भीतर प्रवेश करके देखा, कि कृष्ण के भीतर पड़े कि उन्होंने किसी भक्त की बीमारी अपने ऊपर ले ली। इसलिए प्रवेश करके देखा, कि यह आदमी भगवान है या नहीं हैं? | बीमार पड़े। या बुद्ध इसलिए बीमार पड़े कि उन्होंने सारे जगत की
नहीं, देखने की जरूरत नहीं है। हम देखने के पहले ही जानते हैं | | बीमारियां अपने में लेकर उनका सबका छुटकारा कर दिया। कि नहीं है। यह हमारा जानना हमारी मूढ़ता है। और यह मूढ़ता बड़ी __जीसस को सूली लगी, तो भक्तों को खयाल था कि उनको मरना महंगी पड़ गई है।
| नहीं चाहिए सूली पर; क्योंकि अगर मर गए, तो फिर भगवान ___ इसलिए एक बहुत मजे की घटना घटती है। वह घटना यह है कि | कैसे! मनुष्य रूप दिक्कत डाल रहा है। जीसस मर गए, तो भक्तों इस जगत में हम कृष्ण, बुद्ध या महावीर जैसे लोगों को उनके मरने | | को बड़ी तकलीफ हुई। तो कथा बाद में गढ़नी शुरू हो गई कि वे के बाद ही उनको भगवान मान पाते हैं, जिंदा में नहीं मान पाते। | तीन दिन के बाद पुनरुज्जीवित हो गए, रिसरेक्ट हो गए! क्योंकि मरने के बाद कई आसानियां हो जाती हैं। पहली आसानी तो अगर यह मान लिया जाए कि वे तीन दिन के बाद पुनरुज्जीवित यह हो जाती है कि उनका मनुष्य रूप सामने नहीं रह जाता। | हो गए, तो वे फिर कब मरे? इसका ईसाइयों के पास कोई जवाब
नहीं है। फिर वे मरे कब? अगर वे तीन दिन के बाद पनरुज्जीवित अब मान सकते हैं। लेकिन अगर महावीर सामने होते. तो मश्किल | हो गए और देखे गए, तो फिर वे मरे कब? फिर उन्हें दुबारा तो पड़ती; इसको प्रमाणित करना पड़ता। अब मान सकते हैं, क्योंकि | मरना चाहिए! कोई उत्तर नहीं है। अब इसमें कोई झगड़ा नहीं है, इसमें कोई झंझट नहीं है। इसमें कोई | | क्यों? हुए जीवित या नहीं, यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है। झंझट नहीं है, इसमें अब कोई झगड़ा नहीं है।
| लेकिन आज दो हजार साल बाद इससे भरोसा मिलता है कि वे इसलिए मुर्दा व्यक्तियों को भगवान मान लेना बहुत आसान है। भगवान थे। सूली लगा दी, फिर भी जीवित हो गए। आदमी नहीं
हैं कि महावीर के
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