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________________ * गीता दर्शन भाग-44 है, अच्छा है, तो हमारा मन मानने का नहीं करता। सुन भी लें, तो | जाए, तो तीसरे की आकांक्षा रखता है। वह बढ़ता चला जाता है। टालरेट करते हैं। सह लेते हैं कि ठीक है; होगा। होगा भी। दूसरी ध्यान रहे, वह आदमी मूढ़ है, जो सारी दुनिया को बुरा सिद्ध चर्चा छेड़ो! कोई दूसरी बात करें। | करने में लगा है। क्योंकि अंततः यह सारी दुनिया की बुराई लौटकर और अगर कोई ज्यादा जिद्द करे कि नहीं, भला है ही। संत है। | उसकी अपनी बुराई हो जाएगी, और उसके विकास का कोई उपाय महात्मा है। फलां है, ढिका है। तो हम कहेंगे, कोई गवाही है? . न रह जाएगा। किसने कहा? कौन कहता है? जो कहते हैं, उनकी नैतिकता का | अमूढ़ उसे कहते हैं, जो सारी दुनिया के भले होने का भरोसा कुछ पक्का है? तुमने कैसे जाना? क्या प्रमाण हैं? | रखता है। जिसकी अंतर्निहित आस्था इस बात की है कि सब लोग जब भी कोई किसी की भलाई की बात करे, तो हमें पीड़ा होती । भले हैं। और अगर कभी किसी आदमी की बुराई की खबर मिलती है मानने में, क्योंकि हमारी अंतर्निहित निष्ठा के विपरीत है। यह है, तो भी वह यह नहीं कहता कि वह आदमी बुरा है। इतना ही हमारी मूढ़ता है। कहता है, आदमी भला है, लेकिन भले आदमी से भी भूल-चूक क्योंकि मजा यह है इस मूढ़ता का कि जितना ही हम सिद्ध करने | | हो जाती है। आदमी तो भला ही है। तो भला आदमी भी कभी भटक में सफल हो जाते हैं कि सारी दुनिया बुरी है, उतना ही हमारे अच्छे | जाता है। अंतर्निहित आस्था उसकी भलाई की है। वह सारी दुनिया होने का उपाय बंद हो जाता है। जब सारी दुनिया बुरी है, तो मुझे | में चारों तरफ भलाई को खड़ा हुआ देखता है। तब उसे अपनी बुराई अच्छे होने का कोई भी कारण नहीं रह जाता। जब आप सुबह से | | दिखाई पड़नी शुरू होती है। तब वह अनुभव करता है, इस दुनिया अखबार पढ़ते हैं और देख लेते हैं कि कितनी औरतें भगाई गईं, में शायद सबसे पिछड़ा हुआ मैं ही हूं! तब उसके विकास की कितनी हत्याएं की गईं, कौन-कौन कालाबाजारी में पकड़े गए, तब | | संभावना, उत्क्रांति, उठ सकता है ऊपर। भीतर-भीतर कोई खड़ा खुश होने लगता है। वह कहता है कि सारी लेकिन हमारी मूढ़ता का कोई अंत नहीं है। हम सिद्ध करने में दुनिया ऐसी है। लगे रहते हैं कि कृष्ण भगवान हैं या नहीं, कि बुद्ध भगवान हैं या इसका मतलब यह है कि हम बिलकुल निश्चित रह सकते हैं। नहीं, कि महावीर भगवान हैं या नहीं, कि जीसस ईश्वर के पुत्र थे हम जैसे हैं, निश्चित रह सकते हैं। अभी तक न हमने किसी की या नहीं, या यह दावा झूठा है! यही तो झगड़ा था। जीसस के बाबत औरत भगाई। सोचा है, भगाई नहीं है! तो सोचने में क्या ऐसी बुराई यहूदियों ने झगड़ा खड़ा किया कि वे ईश्वर के पुत्र नहीं हैं; इसलिए है, जब लोग भगा ही रहे हैं! तो विचार मात्र कोई इतना बुरा नहीं सूली दी। और दो-ढाई हजार साल से ईसाई मिशनरी, ईसाई है। यह सब कालाबाजारी हो रही है, हत्याएं हो रही हैं, सब हो रहा | धर्मगुरु सिद्ध करने में लगा है कि वे ईश्वर के पुत्र हैं। है। भीतर एक तृप्ति होती है कि हम काफी अच्छे हैं। और जिसको ध्यान रहे, जब हम बहुत सिद्ध करने में लग जाते हैं कि फलां यह तृप्ति हो जाती है कि मैं काफी अच्छा हूं, उसने आत्महत्या कर आदमी ईश्वर का पुत्र है, तब भी हम गवाही देते हैं कि भरोसा हमें ली अपनी। है नहीं। सिद्ध बहुत करने का मतलब भी यही होता है। अगर एक __ अच्छा आदमी कभी भी तृप्त नहीं होता अपनी अच्छाई से; बुरा | आदमी दिनभर कहे कि मैं सदा सच बोलता हूं, मैं सदा सच बोलता आदमी सदा ही अपनी अच्छाई से तृप्त होता है। अच्छा आदमी ह, मैं झूठ कभी नहीं बोलता, तो आप पक्का समझना कि वह सदा एक डिसकंटेंट में जीता है, एक असंतोष में, कि मैं और | आदमी चौबीस घंटे झूठ बोलने से पीड़ित है। ये इतनी गवाही की अच्छा, और अच्छा, और अच्छा कैसे होता चला जाऊं! बुरा कोई जरूरत नहीं है। आदमी सदा संतोषी होता है अपने बाबत, भीतर के बाबत, कि मैं | | ठीक है; अगर यह अंतर्निहित आस्था है कि एक आदमी ईश्वर बिलकुल अच्छा हूं। और तब बुरा आदमी रोज-रोज नीचे गिरता | | है, तो ठीक है। यह हमारा विकास बन जाना चाहिए। इसे मैं दूसरे जाता है। अगर आज वह पहले नर्क में राजी है, तो कल दूसरे में | | को समझाने जाने की कोई जरूरत नहीं है। राजी हो ज एगा: परसों तीसरे नर्क में उतरकर राजी हो जाएगा। यह बडे मजे की बात है कि आपको पक्का न हो. तो आप दसरे अच्छा आदमी पहले स्वर्ग में भी खड़ा हो, तो राजी नहीं होता है कि | को समझाने की कोशिश करते हैं। तो अगर ईसाई मिशनरी समझाता यह स्वर्ग है। वह दूसरे स्वर्ग की आकांक्षा रखता है। दूसरे में पहुंच | | फिरता है लोगों को कि ईश्वर का पुत्र है जीसस; जब दूसरे की आंख 222
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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