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गीता दर्शन भाग-4
लेकिन एक छोटे बच्चे के सामने बाप कैसे यह माने कि मैं नहीं जानता हूं! पर उसे पता नहीं है, यह बच्चा कितने दिन छोटा रहेगा? थोड़े दिन में इसे पता चल जाएगा कि यह बाप झूठ बोलता रहा है।
इसलिए अगर हर बेटा उम्र पाने के बाद बाप का आदर छोड़ देता है, तो उसका कुल कारण इतना है, बाप के द्वारा की गई बेईमानियां, जो बचपन में बच्चे के साथ की गई हैं। क्योंकि उस वक्त तो बाप बड़ा मजा लिया ज्ञानी होने का। फिर जैसे बच्चा बड़ा होता है, वह पाता है, यह बाप भी उतना ही अज्ञानी है जितना मैं ! इसको भी कुछ पता नहीं है। इसने नाहक ही झूठी शान और झूठा अहंकार मेरे ऊपर थोपा। तो आदर खो जाएगा।
सिर्फ वही बाप अपने बेटे का आदर पाने में समर्थ हो सकता है, जो ईमानदार है। ईमानदार का अर्थ है, जो मूढ़ नहीं है; जो मूढ़ता नहीं करता। क्या जरूरत है! जो हमें पता नहीं है, कह दें कि पता नहीं है। जो हमें पता है, कह दें कि पता है। इसमें जो आदमी डांवाडोल होता है, वह मूढ़ है।
कृष्ण कहते हैं, ऐसा होने पर भी — कि परमात्मा की मौजूदगी ही सारे जीवन की सृजनात्मकता है, कि उससे ही सारा जीवन गतिमान है, कि उससे ही सारा जीवन परिपूर्ण है, कि वही है जीवन का मूल, कि वही उसकी आत्मा है - ऐसा होने पर भी, मूढ़ लोग चारों तरफ यह सब देखकर भी, इस चारों तरफ जीवन को अनुभव करके भी, अपनी मूढ़ता नहीं छोड़ते मालूम पड़ते हैं।
जब भी कोई व्यक्ति ईश्वर के संबंध में बिना जाने वक्तव्य देता है, तब वह अपने ही साथ नहीं, औरों के साथ भी अपराध कर रहा है। लेकिन हम क्षुद्र बातों के संबंध में कहीं ज्यादा सही वक्तव्य देते हैं। जितनी विराटतर होती है बात, उतने ही हमारे वक्तव्य झूठे होते चले जाते हैं। जिन्हें कुछ भी पता नहीं है, वे उनको समझाए चले जाते हैं, जो उनसे पूछने चले आए हैं।
एक महिला मेरे पास आती थीं। महत्वाकांक्षी हैं। अधिक लोग हैं। और जब पुरुष महत्वाकांक्षी होते हैं, तो उतना अस्वाभाविक उपद्रव नहीं होता। जब स्त्रियां महत्वाकांक्षी होती हैं, तो भारी उपद्रव होता है। क्योंकि स्त्री स्वभावतः महत्वाकांक्षी नहीं है। इसलिए जब कोई महत्वाकांक्षी स्त्री होती है, तो फिर पुरुष उससे जीत नहीं सकते। क्योंकि वह पागल की तरह होती है। फिर उसके सामने टिकना बहुत मुश्किल है।
आती थीं देवी। बहुत महत्वाकांक्षी हैं। गुरु बनने की महत्वाकांक्षा है। तो मुझसे आकर निरंतर वह एक ही बात पूछती थीं।
यह नहीं पूछती थीं, मैं क्या करूं? वह मुझसे पूछती थीं, मैं दूसरों को क्या करवाऊं ? यह नहीं पूछती थीं कि मेरे मन को शांति | कैसे मिले? वह मुझसे पूछती थीं, दूसरे लोग बहुत अशांत हैं, उनको शांति कैसे दी जाए? यह नहीं पूछती थीं कि उन्हें कुछ समझना है। वह यही पूछती थीं कि दूसरों को समझाना है, तो कैसे समझाया जाए ?
ऊपर से देखने पर लगेगा, बड़ी सेवा की भावना है। मैं उनको कहा भी कि पहले समझो; दूसरों को समझाना महत्वपूर्ण नहीं है। | तुम्हें समझ आ जाएगी, तो उसकी मौजूदगी ही दूसरों को समझाने का कारण हो जाएगी। पहले शांत हो जाओ। तुम शांत हो जाओगी, तो तुम्हारे पास जो भी आएगा, वह उस शांति से आकर्षित होगा । वह शांति संदेश बन जाएगी। पर उनका कोई रस ही नहीं था। उनका | कोई रस स्वयं में नहीं था।
यह भी मूढ़ आदमी का बुनियादी लक्षण है, उसका स्वयं में, स्वयं के विकास में, सृजन में, स्वयं के रूपांतरण में कोई रस नहीं होता। उसकी उत्सुकता दूसरों में बहुत होती है। असल में वह दूसरों को मैनिपुलेट करने में, दूसरों को चलाने में रस लेता है।
यह बहुत हैरानी की बात है कि जब हम दूसरों को दबाते हैं, तो | हम अच्छे ढंग से भी दबा सकते हैं। बुरे लोग बुरे ढंग से दबाते हैं, अच्छे लोग अच्छे ढंग से दबाने लगते हैं। और बुरे आदमी से तो | छुटकारा भी कर सकते हो, अच्छे आदमी से छुटकारा बहुत | मुश्किल है। क्योंकि वह इतने प्रेम से दबाता है आपकी गर्दन कि जिसका कोई हिसाब नहीं है। वह इतने भले मन से दबाता है कि आप यह भी नहीं कह सकते कि मेरी गर्दन घुटी जा रही है ! इसलिए भले लोग बुरे लोगों से भी बुरे सिद्ध होते हैं।
उन महिला को एक ही रस था कि दुनिया में क्रांति लानी है, दुनिया को सुधारना है। रोज मेरे पास कोई न कोई आता है, जिसको | दुनिया को ठीक करने का खयाल पकड़ जाता है। अपने को ठीक | करने की बात मूढ़ता से छुटकारा दिला सकती है; दूसरों को ठीक | करने की बात गहरी मूढ़ता में फंसा देती है।
मैंने उन्हें समझाया, उनकी समझ के बाहर थी बात। वह मुझसे पूछती थीं कि मेरी कुंडलिनी जग गई है या नहीं? आप कह दो।
मैंने उनको कहा कि अगर जग जाएगी, तो तुम्हें पता चल | जाएगा। मुझसे पूछने की कोई जरूरत नहीं है। पूछती हो, उसका मतलब ही यह होता है कि नहीं जगी है। जिस दिन मैंने उनसे यह कहा,
उसी दिन से उन्होंने आना बंद
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