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* विराट की अभीप्सा
कभी-कभी सर्जकों को उसकी प्रतीति होती है, उसका कारण | इसलिए मातृत्व एक गहरी धार्मिकता है। इसलिए जिस दिन यह है। और जिस कवि को कवि के अंतरतम में सृजन का यह | स्त्री मां नहीं होना चाहेगी, उस दिन स्त्री का धार्मिक होना असंभव अनुभव न हुआ हो, वह तुकबंद है, कवि नहीं है। उसने शब्दों को | | हो जाएगा। जोड़ना सीख लिया है। उसकी कविता कंस्ट्रक्शन है, क्रिएशन | | मैंने कहा कि स्त्री को यह सुलभ है कि उसके भीतर सृजन की नहीं। कंपोजीशन है, क्रिएशन नहीं। उसने जोड़-तोड़ बना ली है। प्रक्रिया घटती है। जैसे इस पूरे जगत के गर्भ में किसी दिन सारे वह भाषा जानता है, वह भाषा का खेल जानता है। वह नियम | | चांद-तारे पैदा हुए, एक बहुत छोटे-से रूप में स्त्री के भीतर जीवन जानता है। वह शब्दों को बिठा लेता है। लेकिन उसने कभी काव्य पुनः निर्मित होता है; बार-बार निर्मित होता है। का जन्म नहीं देखा है।
___ यह उसका गौरव भी है, यह उसकी दुविधा भी है। क्योंकि इसी ___ इसलिए हम अपने मुल्क में कवियों की दो कोटियां करते रहे हैं। कारण स्त्री कुछ और सृजन नहीं कर पाती। स्त्री कोई अच्छे गीत एक कोटि कवियों की वह थी, जो शब्दों को निर्माण कर लेते थे, | | नहीं निर्मित कर पाई। उसने कोई अच्छी मूर्तियां नहीं बनाईं। स्त्री के जमा लेते थे, उनको हम कवि कहते थे। एक वे भी कवि थे, जिनके | | नाम पर कोई बड़ी कला नहीं है। स्त्री किसी धर्म को जन्म नहीं दे भीतर कविता का जन्म होता था, उनको हम ऋषि कहते थे। ऋषि का । | पाई। स्त्री ने कोई भी ऐसा अनूठा काम किया हो सृजन का? वह अर्थ कवि है। लेकिन फर्क थोड़ा-सा है। ऋषि हम उसे कहते हैं, जो | | नहीं किया। उसका कुल कारण इतना है कि उसके भीतर सृजन की मिट गया और जिसने जन्म होते अपने भीतर किसी चीज को देखा। | इतनी बड़ी घटना घटती है कि उसे बाहर सृजन का खयाल नहीं
कभी, सजन के किसी क्षण में उसकी झलक मिल सकती है, आता है। यह दुर्भाग्य भी है। अगर भीतर की सूजन की घटना में क्योंकि हर सृजन में वह मौजूद होता है। कभी आपने खयाल किया ईश्वर का अनुभव न हो पाए और बाहर सृजन की क्षमता टूट जाए, हो, जब कोई स्त्री पहली दफा गर्भवती होती है, तो उसके सौंदर्य में तो यह दुर्भाग्य भी है। शरीर के पार की कोई चीज उतरनी शुरू हो जाती है। असल में मां पुरुष ने बहुत कुछ सृजन किया है। मनसविद कहते हैं, पुरुष बने बिना स्त्री सौंदर्य के पूरे निखार को कभी उपलब्ध नहीं होती है। कमी अनुभव करता है भीतर, इसलिए बाहर से पूर्ति करता है सृजन जब उसके भीतर कोई जन्म हो रहा होता है, कोई सजन हो रहा होता | | करके। इसलिए जब एक माइकलएंजलो एक चित्र निर्मित कर लेता है, तब उसके आस-पास परमात्मा की छबि और मौजूदगी है, जब एक मोजार्ट एक गीत की तरंग, एक संगीत की लय तय अनिवार्य है।
| कर लेता है, या तानसेन जब एक राग को जन्म दे देता है, या जब ___ अगर स्त्रियां इस सत्य को जान लें कि जब उनके भीतर कुछ एक महावीर एक जीवन के नए आयाम को पैदा कर देते हैं, या जब निर्मित हो रहा है, तब वे परमात्मा के अति निकट होती हैं, अगर एक बुद्ध एक नया द्वार खोल देते हैं, तब इन्हें जो प्रतीति और जो वे क्षण उनके ध्यानपूर्ण हो जाएं, तो एक स्त्री को अलग से साधना | तृप्ति होती है, वह प्रतीति और तृप्ति सृजन की है। करने की कोई भी जरूरत नहीं है। उसका मां होना ही उसकी साधना ध्यान रहे, जहां भी सृजन की क्षमता है, वहां परमात्मा का हो जा सकती है।
अनुभव आसान है। इसलिए नान-क्रिएटिव, असृजनात्मक लोग पुरुष इस लिहाज से वंचित है, स्त्री इस लिहाज से बहुत गरिमा | | परमात्मा को कभी अनुभव नहीं कर पाते। युक्त है। क्योंकि पुरुष के भीतर कुछ भी निर्माण नहीं होता, सृजन लेकिन बड़ी हैरानी की बात है। अनेक लोग हैं, जो परमात्मा की नहीं होता, स्त्री के भीतर कुछ सृजन होता है। स्त्री के भीतर सृजन | | खोज में जाते हैं और बिलकुल गैर-सृजनात्मक हो जाते हैं। हमारे की प्रक्रिया गजरती है। और छोटा-मोटा सजन नहीं होता। एक | मुल्क में तो बहुत लोग हैं। हमारे मुल्क में तो कुछ ऐसा है कि जो फूल जब खिलता है पौधे पर, तो सारा पौधा सुंदर हो जाता है। | व्यक्ति परमात्मा की खोज में जाता है, उसका सृजन से कोई संबंध क्यों? क्योंकि फूल का सृजन हुआ। लेकिन जब जीवन का ही नहीं रह जाता। श्रेष्ठतम फूल, मनुष्य, किसी स्त्री के भीतर निर्मित होता है, तो | और ध्यान रहे, सृजन निकटतम है, जहां से उसकी प्रतीति हो स्वभावतः उसका सारा व्यक्तित्व एक अनोखे सौंदर्य से भर जाता | | सकती है। इसलिए अगर एक साधु सृजन छोड़कर और मुर्दे की है। उस क्षण परमात्मा बहुत निकट है।
भांति जीने लगता है, तो उसे परमात्मा का अनुभव नहीं हो पाएगा,
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