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खोज की सम्यक दिशा ... 301
मनुष्य की सब चाहों में परमात्मा की ही चाह छिपी / बीज में छिपी संभावनाएं / अनजानी खोज / आदमी धन क्यों खोजता है / असुरक्षा, खालीपन, अतृप्ति / खोज की गलत और भ्रांत दिशा / पद की खोज-हीनता की ग्रंथि / हर सफलता अधूरी / प्रथम होने का संघर्ष / परमात्मा से कम में तृप्ति संभव नहीं / मौत से बचने की कोशिश / मृत्यु से बचाव नहीं-अमृत की खोज / सकाम उपासना-अज्ञानपूर्ण / परमात्मा के सिर्फ पास होना काफी है / हजारों यांत्रिक विधियां / रामकृष्ण की सहज पूजा / हार्दिकता, आत्मीयता / अस्तित्व का केंद्र है परमात्मा / विकासमान चेतना का लक्षण-व्यर्थ की पुनरावृत्ति न करना / पिछले जन्मों का विस्मरण / पछतावा है-फिर से क्रोध करने की तरकीब / जैसा श्रद्धा-पात्र, वैसे ही हो जाना / देवता-वासनाओं से घिरे हुए / मनुष्य चौराहा है / मनुष्य पशुओं से भी नीचे गिर सकता है और देवताओं के भी पार जा सकता है / परमात्मा न नया है, न पुराना-बस है / अनुभव की पूर्णता अतिक्रमण है / परमात्मा चरम बिंदु है / यांत्रिकता तोड़ो / बुद्ध-पुरुषों के बाबत भविष्यवाणी नहीं की जा सकती / परमात्मा से कम को लक्ष्य न बनाएं / असंभव को चुनें।
कर्ताभाव का अर्पण ... 317
सब परमात्मा का है-सब परमात्मा है / पूजा में क्या चढ़ाएं / उसकी ही चीजें उसे लौटा रहे हैं / मनुष्य निर्मित केवल एक चीज-अहंकार, कर्ताभाव / कर्ताभाव का अर्पण / मैं को बचाकर कुछ भी चढ़ाएं-व्यर्थ है / त्याग का, तपस्या का हिसाब रखना / पुण्य और नैतिकता का अहंकार / भला-बुरा सब मुझ पर छोड़ / कर्म छोड़ना बिलकुल सरल है / कर्ता को छोड़ना बहुत कठिन है / अहंकार गहरे से गहरा संसार है / शुद्ध बुद्धि और निष्काम प्रेमी भक्त / बुद्धि शुद्ध होती है-जब निर्विचार होती है / विचारों पर मालकियत भी शुद्ध बुद्धि नहीं है / बोधकथाः गाय तुमसे बंधी है या तुम गाय से बंधे हो / बांधने वाला बंध जाता है / नीति अर्थात अशुभ को दबाना और शुभ को उभारना / कभी-कभी छुट्टी का दिन जरूरी / नीति की सामाजिक उपयोगिता / धर्म और नीति का फर्क / प्रेम अशद्ध हो जाता है-वासना से, कामना से / भक्ति की दोहरी शर्त-बुद्धि शुद्ध हो और हृदय निष्काम / भक्ति कठिन है / प्रेम किया नहीं जा सकता / भक्त का जीवन बहु-आयामी / मीरा का नृत्य / बुद्ध का शून्य मौन / भक्त की अभिव्यक्तियां / बुद्धि के बहुत विश्वविद्यालय हैं / हृदय की शिक्षा का अभाव / प्रेम में तो जाना-वासना से बच जाना / पानी में उतरना-भीगना मत / हमारे प्रेम के पीछे छिपी है वासना / ऐसा प्रेम-जो अंतर्दशा हो / प्रेम को फैलाने के प्रयोग करना / प्रेम-ऊर्जा का चुंबकीय आकर्षण / घृणा का विकर्षण / मुक्त और अनबंधी प्रेम-ऊर्जा / व्यक्ति की खिलावट की तीन अवस्थाएं-पत्ते, पुष्प, फल / पूजा में पत्र-पुष्प-फल चढ़ाने का प्रतीक / नीत्से का वचनः पक जाना सब कुछ है / कृष्ण का वचनः अर्पित हो जाना सब कुछ है | आप जो हैं, वही अर्पित कर दें / चेतना के फूल चढ़ाना / अर्पित व्यक्ति परमात्मा ही हो जाता है / कृष्ण का कहनाः सब छोड़; मेरी शरण आ / अहंशून्य मैं / कृष्ण और अर्जुन का संबंध बड़ा आत्मीय / प्रभु-अर्पित हो युद्ध में उतर जा / कृष्ण द्वारा प्रस्तावित संन्यास की क्रांतिकारी धारणा / समर्पण के बाद-समस्त शुभ-अशुभ का अतिक्रमण / परमात्मा मुक्ति है।