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जीवन के ऐक्य का बोध - अ - मन में ... 271
मन के देखने का ढंग - खंड-खंड करके / मन अंश को ही देख पाता है / धर्म है अमन से दिए गए वक्तव्य / फिलासफी है - शिक्षित मन से दिए गए वक्तव्य / अरस्तू, प्लेटो, कांट, हीगल - विचारक हैं / धर्म का जन्म होता है उस आदमी से - जिसका मन खो गया / मन की दूसरी कठिनाई - विरोधों में तोड़कर देखना / रावण के बिना राम नहीं हो सकते / दोनों एक खेल के हिस्से हैं / जिंदगी तर्क और गणित को मानकर नहीं चलती / राम भली-भांति जानते हैं कि रावण भी उनका ही दूसरा छोर है / लक्ष्मण को रावण के पास भेजना – सीखने के लिए / मन क्या है ? / विचार और शब्द को पैदा करने वाला यंत्र है मन / गहरी नींद या बेहोशी-मन से नीचे की अवस्था / समाधि मन के ऊपर की अवस्था है / अधिक चिंतन - अधिक खंड / बुद्धः न कुछ सुंदर है, न कुछ कुरूप; जो जैसा है, वैसा है / ध्यान अर्थात मन का, विचार का खो जाना / जब उपयोग हो, तभी मनचले / सूर्य, बादल, बरसात - सब मैं हूं / ईश्वर मृत्यु भी है / मृत्यु जीवन की पूर्णता है / मृत्यु को बुरा कहने से बुढ़ापा बुरा हो गया / पश्चिम में बूढ़ा अनादृत / पत्नी के मरने पर च्वांगत्सू का खंजड़ी बजाकर गीत गाना, उत्सव मनाना / विपरीत हमारी भ्रांति है / वही रस कांटा बनता - और वही रस फूल / शिवलिंग का विरोधाभासी प्रतीकः शिव मृत्यु के देवता हैं, और लिंग जीवन का प्रतीक है / मैं ही सत - मैं ही असत / सत अर्थात जो है, असत अर्थात जो नहीं है / मन के लिए सर्वाधिक कठिन विरोधाभास होना, न होना एक है / दो नहीं के बीच में छोटा-सा होना / है से नहीं है— नहीं है से है— सतत प्रवाह / हिंदी और अंग्रेजी दोनों का जन्म - संस्कृत भाषा से / मां, माता, मातृ, मदर / पिता – पीटर, पैटर, फादर / प्रतिपल चीजें बन रही हैं, मिट रही हैं / जन्म दिन से ही मरना शुरू हो जाता है / सकाम अर्थात मन से जीना / स्वर्ग की कामना / समस्त द्वंद्वों में जो चुनावरहित हो गया - वह प्रभु को उपलब्ध / सकामी इंद्रलोक को तो पा ही सकता है / आनंद - सुख-दुख के पार है / सुख-दुख परस्पर विपरीत हैं / अ-मन हो जाए, तो ही अद्वैत, निर्द्वद्व, जीवन ऐक्य का बोध
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वासना और उपासना ... 285
अनेक मन हैं हमारे भीतर / विपरीत खंड - एक साथ / मन बाहर भी बांटता है - और भीतर भी / धर्म है मन को खाने की प्रक्रिया / संसार है मन को शक्तिशाली बनाना / मन ही मन - आत्मा बिलकुल नहीं / द्वंद्व के हटते ही, जो है, उसका अनुभव / द्वंद्व — चुनाव — अस्वीकार - दुख / सुखे के पीछे-पीछे दुख आता है / उपेक्षा और आशा का फल -विषाद / जन्मों-जन्मों का भ्रम / विपरीत दिखाई नहीं पड़ता / वासना गई — कि मन गया / गरीब का दुख — अभाव का / अमीर का दुख — उपलब्धि का / अप्राप्त में सुख की आशा / प्राप्त से ऊब / सकाम साधना का फल चुक ही जाता है / स्वर्ग भी तृप्त नहीं कर पाता / सुख से लौटने पर दुख का बोध और प्रगाढ़ हो जाना / संसार चक्र में घूमते रहना / वासना की सभी उपलब्धियां स्वप्नवत / उपासना और वासना का फर्क / जहां वासना है - वहां उपासना संभव नहीं / परमात्मा का भी साधन की तरह उपयोग करना / विवेकानंद काली से धन न मांग सके / उपासना अर्थात परमात्मा के पास होना / इस जगत के सारे संबंध - सकारण / कारण के हटते ही प्रेम का बिखर जाना / अकारण की भाषा ही हमें नहीं आती / निष्काम उपासक का योग-क्षेम प्रभु सम्हालते हैं / बोधकथाः सम्राट का प्यारा गुलाम और कड़वा फल / आस्तिकता अर्थात सर्व-स्वीकार / मोहम्मद की फकीरी: रात सब बांटकर सोना / जो भी हो उसमें ही प्रभु कृपा जानना / जहां निर्वासना - वहां परमात्मा / परमात्मा एक खाली शब्द है हमारे लिए / उपासना आंख है / हर जगह उसकी याद जाने लगे / उसकी उपस्थिति का बोध सघन होना / वासना भिक्षा पात्र है / स्वामी राम की बादशाहत / हमारी प्रार्थनाएं बंधन को बढ़ाने वाली।