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भक्ति में दो-पन से अद्वैत फलित / प्रेम की एकता–ज्ञान की एकता से ज्यादा समृद्ध / भक्त ने जगत को सौरभ दिया है | सबका अपना-अपना सौंदर्य / हिंदू धर्म ने सभी मार्गों को आत्मसात कर लिया है / जैन धर्म में भक्ति के लिए कोई स्थान नहीं है / नग्न महावीर के सामने नाचना-गाना बेढंगा है। भक्ति का विरोधाभास-दो हों, तो मिलन का मजा / मंसूर का मार्ग था ज्ञान / मंसूर की तकलीफ-भक्ति-उन्मुख लोगों के बीच ज्ञानी की भाषा बोलना / भक्ति के अनेक ढंगः स्वामी-सेवक-भाव; प्रेमी-प्रेमिका-भाव; प्रेमिका-प्रेमी-भाव / हिंदू-धारा में परमात्मा पुरुष है / सूफियों की हिम्मतः परमात्मा को प्रेयसी मानना / हिंदू भक्तों की शालीनता व झिझक / सूफी भक्तों की निस्संकोच अभिव्यक्तियां / भक्ति के और रूप-परमात्मा को मां, पिता, पुत्र आदि मानना / संबंधों की आत्मीयता से एकता को उपलब्ध होना / शाश्वत प्रेम-केवल भक्ति में संभव / प्रेमियों की तकलीफ / प्रेम एक इशारा है-भक्ति की ओर / ईसाइयत का सारः कर्म और सेवा ही उपासना है / कर्म में इतने डूब जाना कि कर्ता मिट जाए / तीसरा मार्ग-कर्म, क्रिया, सेवा / प्रभु-स्मरणयुक्त प्रभु-अर्पित सभी क्रिया-कर्म उपासना बन जाते हैं / उपासना हार्दिक घटना है / स्वचालित, यंत्रवत पूजा-उपासना व्यर्थ है / आदत न बन जाए / सब में परमात्मा / अहंकार का अंधापन / प्रज्ञा की आंख का खलना।
मैं ओंकार हूं ... 257
धर्म अर्थात जो सबको धारण किए है / धर्म प्राणों का स्रोत है / महावीर कहते हैं : धर्म हमारा स्वभाव है / स्वभाव ही हमें धारण किए हए है / धर्म को हम खो नहीं सकते सिर्फ भूल सकते हैं / धर्म शिक्षण नहीं—पुनमरण है / सब जीवन-ऊर्जा के स्रोत छिपे हुए / वृक्ष जड़ों को भूल जाए, तो भी पोषण मिलना जारी / नास्तिक को भी ईश्वर से पोषण मिलना / ईश्वर अर्थात अस्तित्व का सार / जन्म-मृत्यु, सृजन-प्रलय, अमृत-जहर-सब ईश्वरीय / मैं हूं सबका धाता / मैं ही हूं-पिता, माता, पितामह / जीवन एक सतत श्रृंखला है / तुम थे; तुम हो; तुम रहोगे / हम परमात्मा की लहरें हैं । जानने योग्य ओंकार भी मैं हूं / जीवन की आत्यंतिक संभावना भी मैं हूं / आत्यंतिक अनुभव–ओंकार का / ओंकार है-अस्तित्व का परम संगीत /
ओंकार है-शून्य का स्वर / आहत ध्वनि-जो घर्षण से पैदा होती है / अनाहत नाद-समस्त घर्षणों के शून्य हो जाने पर जो पता चलता है / ओंकार । नाद-न जो कभी बना, न कभी मिटेगा / पूर्ण मौन और शांत होने पर ओंकार नाद का अनुभव / शाश्वत ध्वनि / ओंकार जगत का आधार है / विज्ञान का निष्कर्ष : आत्यंतिक तत्व विद्युत है । पूरब का निष्कर्षः अस्तित्व का मूल आधार ध्वनि है । विद्युत-ध्वनि का ही एक रूप / ध्वनि-विद्युत-मुर्गी-अंडा-कौन पहले / पदार्थ के विश्लेषण पर मिलता है विद्युतकण / मन के विश्लेषण पर-ध्वनि / अ-मन में ओंकारनाद / वेद भी मैं ही हं / वेद-जिनमें ओंकार की तरफ जाने के मार्ग कहे गए हैं / कृष्ण के समय केवल तीन वेद थे / कुरान, बाइबिल, जेंदवेस्ता, ताओ-तेह-किंग भी वेद हैं / वेद कोई सीमित किताब नहीं है / नए ऋषि सदा होते रहेंगे / वेद के दरवाजे बंद करते ही हिंदू धर्म मुर्दा हो गया / सिक्खों का वेद-गुरु-ग्रंथ / उस समय तक के सब ज्ञानियों के इशारे नानक ने संग्रहीत किए / दसवें गुरु ने दरवाजे बंद कर दिए / वेद हमारा इनसाइक्लोपीडिया था / एकमात्र पाने योग्य परमात्मा है / प्रभु अनुभव की संपदा / मैं बनाता, मैं सम्हालता, मैं ही मिटाता / अर्जुन, तू व्यर्थ अपने को बीच में मत ला / अहंकार निर्णायक बनना चाहता है / एक ही पाप है—अहंकार को मजबूत करना / परमात्मा के सागर की एक लहर मात्र है अर्जुन / हमारे अहंकार-बर्फ की तरह जमे हुए / हम एक दूसरे के अहंकार को जमाते रहते हैं / बुद्ध और महावीर को जंगल जाना—ताकि दूसरों की अनावश्यक ठंड न झेलनी पड़े । अर्जुन के अहंकार को पिघलाने के लिए कृष्ण कह रहे हैं : मैं सब कुछ हूं।