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नहीं / अज्ञान + अहंकार = मूढ़ता / संस्मरण : एक महिला जिनका दूसरों को बदलने में रस है / दूसरों की कुंडलिनी जगाना / मूढ़ता का कोई अंत नहीं है / परमात्मा का इनकार-चाहे प्रकट हो, चाहे अप्रकट / अपने से श्रेष्ठ को देखना करीब-करीब असंभव / ऊंचाई से नीचे देखना आसान है / कृष्ण की भगवत्ता को देखने के लिए आंख चाहिए / स्वयं से पार जो है, उसे अस्वीकार करने की जिद्द / कृष्ण की देहगत सीमाओं को देखना / विधायक खोज में ऊर्जा को लगाना / विराट के स्वीकार से विकास की संभावनाओं का खुलना / मूढ़ता-अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना / कृष्ण को हो सकता है, तो मुझे भी हो सकता-यह भरोसा / मूढ़ता का केंद्र है-अहंकार / निंदा का मनोविज्ञान / विकास की चुनौती से बचने की तरकीबें / मुर्दा व्यक्तियों को भगवान मानने की आसानी / चमत्कारों की अपेक्षा / मदारीगिरी की पूजा / आदमी की गरिमा-पशु से भी नीचे गिर सकता; देवताओं से भी ऊपर उठ सकता / ऊपर न जाने वाला-नीचे गिरेगा / श्रेष्ठ की अभीप्सा।
देवी या आसुरी धारा ... 227
मूढ़ता के तीन लक्षणः वृथा आशा, वृथा कर्म, वृथा ज्ञान / भविष्य का सपना / समय का धोखा / दुष्पूर चाह / दूसरे से कभी सुख नहीं मिला है। सुख है भीतर स्वयं में / दूसरे से दुख भी नहीं मिल सकता / रेत से तेल निचोड़ने की कोशिश / जीवन के नियमों को न समझने से दुख / नियम के अनुकूल होने से सुख / आंतरिक दरिद्रता का बोध / आत्मिक भूख / गलत दिशाएं–धन, यश / हमारा पूरा जीवन-वृथा कर्मों का जोड़ है / क्रोध है-दूसरे की गलती के लिए स्वयं को सजा देना / अहंकार को सिद्ध करने की कोशिशें / पुण्य है-वर्तमान क्षण का आनंद / वृथा ज्ञान-उधार ज्ञान / सार्थक ज्ञान—जो रूपांतरण लाए / बंबई के गीतापाठी और सत्संगी / ज्ञान का लेन-देन-धंधा / दैवी प्रकृति के साथ बहने वाले अमूढ़ हैं / शुभ काम को टालने और अशुभ को शीघ्र करने वाले मूढजन / दैवी-धारा / हर घटना या परिस्थिति को देखने के दो ढंग/ कर्म नहीं-अंतस के भाव का मूल्य है / बोधकथा : वेश्या गई स्वर्ग, साधु गए नर्क / भगवान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है-भक्ति की क्षमता का होना / योगशास्त्र कहते हैं-भगवान भी एक उपाय है / बड़े सबल व्यक्ति थे-बुद्ध और महावीर / बिना भगवान के भक्त होना-कठिन है-असंभव नहीं / कोई प्रेम-पात्र न हो तो भी प्रेम बिखरता रहे / परमात्मा की धारणा का सहयोग / उपासना अर्थात प्रभु की निकटता में होना / यांत्रिक क्रियाकांड नहीं—जीवंत अंतस भाव / किराए के पंडे-पुजारी / सारा जगत उसका मंदिर है / उपासना का भाव चौबीस घंटों में फैल जाए / स्तुति खुशामद नहीं है / अनुकंपा का सतत बोध / मंसूर का विपरीत परिस्थिति में भी अहोभाव / हमारी कमजोर आस्था / प्रभु-स्मरण का कोई अवसर न चूकें।
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ज्ञान, भक्ति , कर्म ... 243
अनेक मार्ग, अनेक विधियां-गंतव्य एक / प्रत्येक व्यक्ति भिन्न है / अहंकार का निष्कर्षः मेरा मार्ग ही सबके लिए सही / दूसरों को गलत सिद्ध करने का रुग्ण रस / जन्म से धर्म को निश्चित करना गलत है / व्यक्तित्व के ढांचे के अनुकूल धर्म का चुनाव जरूरी / सचेतन चुनाव की जीवंतता / निष्ठा में है बल / स्वधर्म की खोज / आरोपित धार्मिक शिक्षा / मां-बाप से शरीर मिलता है / आत्मिक विकास की यात्रा अलग है / संकल्प से आत्मा सबल / धर्म-सबसे बड़ी चुनौती, सबसे बड़ा अभियान / वसीयत की तरह धर्म का हस्तांतरण संभव नहीं / तीन मौलिक ढांचे–ज्ञान, भाव और कर्म / जानने के लिए सब कुछ दांव पर लगाने वाला / तीन टुकड़े-ज्ञाता, ज्ञेय और ज्ञान / परिचय और ज्ञान में फर्क / विज्ञान और धर्म का फर्क / निष्पक्ष दूरी / एकात्म, लीनता, एकरसता / तटस्थ दर्शक होना या भागीदार बनना / दूसरे का मार्ग समझना कठिन / विपरीत मार्ग के प्रति सदभाव व उदारता / अभेद-अद्वैत-बोध निराकार की खोज / भक्त के लिए ज्ञानमार्ग रूखा-सखा / ज्ञान नहीं—प्रेम / जानना नहीं बना / ज्ञान मार्ग में दो-पन बाधा है।