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* विराट की अभीप्सा
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है ही नहीं। उसका कमरे में प्रवेश ही शांति हो जानी चाहिए। उसकी | हुआ था, उसे हम कभी भी न खोज पाएंगे। मौजूदगी काफी होनी चाहिए। .
इसलिए जगत को हम कितना ही खोजें, हम परमात्मा को न खोज शिक्षक आते हैं, वे मुझे कहते हैं, गुरुओं का कोई सम्मान नहीं पाएंगे। इसलिए विज्ञान ठीक कहता है कि हम बहुत खोजते हैं, रहा। तो मैं उनसे पूछता हूं, जब भी कोई गुरु होता है, तो सम्मान | लेकिन परमात्मा मिलता नहीं। और जब तक न मिले, तब तक जरूर होता है। गुरु ही न रहे होंगे। अगर तुम कहते हो, गुरुओं का विज्ञान माने भी कैसे! उसकी बात भी ठीक है। क्योंकि हम हर चीज कोई सम्मान न रहा, तो मुझे शक होता है कि गुरु ही न रहे होंगे। को खोज लेते हैं, परमात्मा कहीं मिलता नहीं। और अगर यह उसका क्योंकि गुरु का मतलब ही यह होता है कि वह मौजूद है, तो सम्मान सृजन है, तो कहीं न कहीं उसकी सृष्टि में उसको मिलना ही चाहिए। की घटना घटती ही है, उसे घटाना नहीं पड़ता। उसके लिए लेकिन अगर कृष्ण का यह सूत्र याद रखा जाए, तो विज्ञान आयोजन नहीं करना पड़ता। गुरु की परिभाषा ही यह होनी चाहिए अधैर्य नहीं दिखाएगा। क्योंकि विज्ञान भलीभांति जानता है कि कि जिसकी मौजूदगी में आदर उत्पन्न हो। अगर गुरु को भी आदर कैटेलिटिक एजेंट भी होते हैं, और उनकी मौजूदगी से घटनाएं उत्पन्न करना पड़े, तो वह आदमी गुरु तो नहीं है, और कुछ भी घटती हैं। फिर घटी हुए घटना को तोड़ने से कैटेलिटिक एजेंट को होगा। क्योंकि जो उत्पन्न करना पड़े, वह कृत्रिम हो जाता है। | नहीं पाया जा सकता।
कृष्ण कहते हैं, मेरी मौजूदगी में रचना का सिलसिला शुरू होता - तो क्रिएटर की तरह नहीं, स्रष्टा की तरह नहीं, उपस्थिति मात्र है। मैं बनाता भी नहीं; यह मेरा कृत्य नहीं है; यह मेरी उपस्थिति काम करती हो, ऐसे कैटेलिटिक एजेंट की तरह मैं इस जगत को मात्र, मेरे मौजूद होते ही जीवन चल पड़ता है।
निर्मित करता हूं। सुबह सूरज निकलता है, फूल खिल जाते हैं। ऐसा सूरज । यदि यह ठीक है, तो विज्ञान उसी दिन परमात्मा को अनुभव कर एक-एक फल पर आकर फल को खिलाता नहीं है। बस, उसकी पाएगा, जिस दिन विज्ञान सजन की प्रक्रिया में मौजूद हो, सृष्टि से मौजूदगी! पक्षी गीत गाने लगते हैं। अब सूरज एक-एक पक्षी की उसे कभी खोजा नहीं जा सकता। गर्दन पकड़कर गीत गवाता नहीं है। बस, उसकी मौजूदगी! नींद टूट । ध्यान रखें, यह और थोड़ा गहरे जाने की जरूरत पड़ेगी। सृष्टि जाती है, आंखें खुल जाती हैं, जागरण फैल जाता है। सूरज किसी का अर्थ है, जो बन गई चीज। तो बन गई चीज से उसे कभी नहीं के द्वार पर आकर खटखटाता नहीं, कि उठो! बस, उसकी मौजूदगी। | खोजा जा सकता, क्योंकि उसकी उपस्थिति से बनी है। उसके हाथ
लेकिन इससे भी गहरी बात है, कैटेलिटिक एजेंट। सूरज की तो | | की कोई छाप नहीं है उस पर। उसके हस्ताक्षर नहीं हैं। तो हम कितने किरणें आती हैं। नहीं दरवाजा खटखटाती होंगी, फिर भी किसी | | ही डिटेक्टिव्स लगाएं, और हम कितने ही जासूस लगाएं, कहीं सूक्ष्म तल पर दरवाजा खटखटाती हैं। और नहीं एक-एक कली को कोई छाप उसकी मिलती नहीं है। फूल खिलता है, उसकी कोई छाप सूरज पकड़कर खोलता है, फिर भी उसकी किरणें आकर एक-एक | | मिलती नहीं। पहाड़ बनते हैं, मिट जाते हैं, उसकी कोई छाप मिलती कली को सहलाती हैं। और नहीं पक्षियों की गर्दन दबाता है कि गीत | | नहीं। चांद-तारे जन्मते हैं, खो जाते हैं, उसकी कोई छाप मिलती गाओ, फिर भी उसकी किरणें कोई गहरा संस्पर्श देती हैं और पक्षी | नहीं। जो चीज बन गई है, उसमें उसकी छाप नहीं मिलेगी। के कंठ से गीत फूट पड़ता है। नहीं, आपको झकझोरता नहीं है कि इसलिए विज्ञान असमर्थ मालूम पड़ता है। वह करीब-करीब से उठो! लेकिन फिर भी किसी गहरे रासायनिक तल पर उसकी | | गुजर जाता है और परमात्मा की कोई झलक नहीं मिलती। और जब किरणों की मौजूदगी हवा में आक्सीजन को बढ़ा देती है; और | तक स्पष्ट प्रमाण न मिलें, तब तक विज्ञान की अपनी मजबूरी है, आक्सीजन का बढ़ जाना आपके भीतर एक झकझोर ले आता है | वह स्वीकार नहीं कर सकता। और आपको उठ जाना पड़ता है।
परमात्मा की झलक किसको मिलती है? परमात्मा की झलक कैटेलिटिक एजेंट और भी सूक्ष्म बात है। इतना भी नहीं करता। उसको मिलती है, जो सृष्टि में खोजने नहीं जाता, बल्कि सृजन की बस, सिर्फ मौजूद होता है। एंड दि प्रेजेंस वर्क्स; सिर्फ मौजूदगी ही प्रक्रिया में मौजूद होता है। काम करती है; कोई रासायनिक प्रवेश नहीं होता। इसलिए हम । इसलिए बहुत मजे की बात है कि कभी किसी कवि को झलक पीछे, जो निर्माण हुआ है, अगर उसे तोड़ें, तो जिसकी मौजूदगी में मिल जाती है उसकी; वैज्ञानिक को नहीं मिल पाती। कभी किसी
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