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* गीता दर्शन भाग-4
मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्।। को तोड़ें, तो हाइड्रोजन और आक्सीजन मिलते हैं, लेकिन हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ।। १० ।। हाइड्रोजन और आक्सीजन को साथ रख दें, तो पानी नहीं बनता।
अवजानन्ति मां मूढ़ा मानुषी तनुमाश्रितम् । | यह बड़ी अजीब बात है! क्योंकि पानी को तोड़ने पर हाइड्रोजन और परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम् ।। ११।। आक्सीजन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिलता, इसलिए स्वभावतः
मोघाशा मोधकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः। | हाइड्रोजन और आक्सीजन के मिलने से पानी बन जाना चाहिए। राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृति मोहिनीं श्रिताः ।। १२ ।।। लेकिन एक चीज खो रही है, एक मिसिंग लिंक है। हाइड्रोजन और हे अर्जुन, मुझ अधिष्ठाता की उपस्थिति मात्र से यह और आक्सीजन तब तक नहीं मिलते, जब तक बिजली मौजूद न मेरी प्रकृति अर्थात माया चराचर-सहित सर्व जगत को रचती | | हो। अगर विद्युत मौजूद हो, तो आक्सीजन और हाइड्रोजन मिल है और इस ऊपर कहे हुए हेतु से ही यह जगत
जाते हैं और पानी बन जाता है। बनता-बिखरता रहता है।
और मजे की बात यह है कि बिजली मौजूदगी के अतिरिक्त और ऐसा होने पर भी संपूर्ण भूतों के महान ईश्वर रूप मेरे परम | कुछ भी नहीं करती; वह पानी में सम्मिलित नहीं होती। अगर भाव को न जानने वाले मूढ़ लोग, मनुष्य का शरीर धारण सम्मिलित होती, तो जब हम पानी को तोड़ते, तो बिजली भी मिलनी करने वाले मुझ परमात्मा को तुच्छ समझते हैं। जो कि वृथा चाहिए। लेकिन पानी को तोड़ने पर हाइड्रोजन और आक्सीजन ही आशा, वृथा कर्म और वृथा ज्ञान वाले अज्ञानीजन राक्षसों के | मिलते हैं। अगर बिजली मौजूद न हो, तो भी घटना नहीं घटती। और असुरों के जैसे मोहित करने वाली प्रकृति अर्थात बिजली मौजूद हो, तो बिजली प्रवेश नहीं करती, लेकिन उसकी तामसी स्वभाव को ही धारण किए हुए है। मौजूदगी से ही घटना घट जाती है। जस्ट प्रेजेंस। मौजूदगी प्रविष्ट
| हो जाती है; बिजली प्रविष्ट नहीं होती।
इसे थोड़ा समझ लें। और मौजूदगी को तो तोड़कर पाया नहीं जा र स सूत्र में बहुत-सी बातें कही गई हैं महत्वपूर्ण, विचार सकता। जब हम पानी को तोड़ेंगे, तो बिजली मौजूद थी पानी बनते र के लिए भी, साधना के लिए भी, गहरी और ऊंची भी।। । वक्त, उसकी मौजूदगी को हम पानी से नहीं निकाल सकते हैं। ।
पहली बात। परमात्मा जगत का सृजन करता हो, | परमात्मा की मौजूदगी से जगत रचता है, कृष्ण यह कह रहे हैं। तो कैसे करता होगा? क्या वैसे ही, जैसे कुम्हार अपने चके पर वह यह कह रहे हैं कि मैं कैटेलिटिक एजेंट हूं। मैं बनाता नहीं, मेरा बर्तन रचता है? या वैसे, जैसे मूर्तिकार अपनी छेनी से पत्थर को होना ही सृजन का सूत्रपात है। काटता और मूर्ति को रचता है ? या वैसे, जैसे एक कवि शब्दों की | ।। यह बहुत गहरी बात है। और होना भी यही चाहिए। क्योंकि संयोजना करता और गीत को रचता है? परमात्मा का सृजन किस - परमात्मा को भी अगर घड़े की तरह निर्माण करना पड़े जगत को, विधि का है?
तो कुम्हार से बड़ी उसकी हैसियत नहीं है फिर। अगर उसे भी कार्य इस सूत्र में एक बहुत गहरी बात कही गई है। और जो लोग में संलग्न होना पड़े, तो उसका मतलब यह हुआ कि जिस पर वह विज्ञान को थोड़ा समझते हैं, उन्हें समझनी बहुत आसान हो जाएगी। काम कर रहा है, उस पर उसकी पूरी मालकियत नहीं है। पूरी क्योंकि विज्ञान मानता है कि कुछ ऐसा सृजन भी है, जब करने | | मालकियत का मतलब यह होता है कि इशारा भी न करना पड़े और वाला कुछ भी नहीं करता, केवल उसकी मौजूदगी ही सृजन हो काम हो जाए। मौजूदगी काफी होनी चाहिए। जाती है। विज्ञान उसे कैटेलिटिक एजेंट कहता है। उसके बिना | | अगर पिता अपने घर वापस लौटे और बेटे की तरफ आंख से घटना नहीं घटती; उसकी मौजूदगी से ही घटना घट जाती है; वह | इशारा करना पड़े कि मेरे पैर छु; मैं तेरा पिता हूं, मेरा आदर कर; स्वयं कुछ करता नहीं।
तो वह पिता नहीं रहा। उसकी मौजूदगी ही आदर बन जानी चाहिए। जैसे अगर हाइड्रोजन और आक्सीजन को हम मिलाएं, तो पानी वह मौजूद है, तो आदर घट जाना चाहिए। नहीं बनेगा; यद्यपि पानी को हम तोड़ें, तो हाइड्रोजन और एक शिक्षक अपने वर्ग में आए और डंडा ठोंककर टेबल पर आक्सीजन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिलता है। अगर हम पानी विद्यार्थियों को शांत करे, तो उसका अर्थ यह हुआ कि वह शिक्षक
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