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________________ * जगत एक परिवार है * में लीन हो जाते हैं, मैं फिर रचता हूं। ये फिर मुझ में लीन हो जाते हैं, परमात्मा के लिए लीला है। यह इतना सुंदर नहीं हो सकता, अगर मैं फिर रचता हूं-एड इनफिनिटम। इसका कोई हिसाब नहीं है। ये यह उसके लिए काम हो। सभी काम कुरूप हो जाते हैं। सभी काम थकते ही नहीं। इन्होंने कोई हाली-डे नहीं मनाया। इसका कुछ कारण कुरूप हो जाते हैं। होगा। ये बहुत गंभीर नहीं मालूम पड़ते, नहीं तो थक जाते। ___ एक नर्स एक बच्चे की सेवा करती है, तब वह काम होता है; हिंदू धारणा ईश्वर की, गंभीर धारणा नहीं है। बहुत प्रफुल्लित, | और एक मां जब अपने बच्चे को खिलाती है, तब वह खेल होता बहुत खेल जैसी धारणा है। इसलिए हमने जगत को लीला कहा है। | है, वह लीला होती है, काम नहीं होता। वह उसका आनंद है। लीला अनूठा शब्द है। दुनिया की किसी भाषा में इसका अनुवाद | इसलिए जब एक मां अपने बच्चे के साथ खेल रही होती है, तब नहीं किया जा सकता। क्योंकि अगर हम कहें प्ले, तो वह खेल का | | एक अनूठा सौंदर्य प्रकट होता है। और जब एक नर्स भी उस बच्चे अनुवाद है। लीला परमात्मा के खेल का नाम है। और दुनिया में | के साथ खेल रही होती है, तब एक कुरूपता प्रकट होती है। उस किसी धर्म ने चूंकि परमात्मा को कभी खेल के रूप में देखा नहीं, | | कुरूपता का कारण नर्स नहीं है, बच्चा नहीं है; उस कुरूपता का इसलिए लीला जैसा किसी भाषा में कोई शब्द नहीं है। लीला अनूठे | | कारण काम है। जिस जगह भी काम आ जाएगा, वहीं चित्त उदास रूप से भारतीय शब्द है। इसका कोई उपाय नहीं है। अगर हमें | | हो जाता है। और जहां खेल आ जाता है, वहीं चित्त नृत्य से भर करना भी हो कोशिश, तो उसको डिवाइन प्ले। लेकिन वह शब्द | जाता है। नहीं बनते। लेकिन अगर हम अपने महात्माओं की तरफ देखें, तो हमें शक लीला काफी है। उसमें ईश्वर को जोड़ना नहीं पड़ता। लीला होगा। इनको देखें अगर हम, तो हमें लगेगा, ये तो भारी उदास हैं! शब्द पर्याप्त है। उसका मतलब यह है कि यह सारा का सारा जो | | अगर इन्हीं महात्माओं की तरफ से परमात्मा की तरफ जाना हो, तो सृजन है, यह कोई गंभीर कृत्य नहीं है। यह एक आनंद की | | हमें मानना चाहिए, परमात्मा तो सतत रो ही रहा होगा! महात्मा ही अभिव्यक्ति है। यह सारा जो विकास है, यह कोई सिर-माथे पर | | अगर उसका दरवाजा हैं, तो ये महात्मा तो ऐसे मरे हुए बैठे हैं कि सलवटें पड़ी हों ईश्वर के, ऐसा नहीं है। यह एक नाचता हुआ, यह जीवन की कोई पुलक इनमें मालूम नहीं होती। ये तो अपने भीतर एक मौज से चलता हुआ प्रवाह है। यह भारी चिंता नहीं है; यह जैसे मरघट लिए हुए हैं, ताबूत हैं, कā हैं। मौज है। ___जीसस ने इस शब्द का उपयोग किया है। जीसस ने कहा है कि इसे थोड़ा खयाल में ले लें, क्योंकि यह बहुत उपयोग का है। ये धर्मगुरु! तुम सफेद ताबूत हो। तुम पुती-पुताई सफेद कब्रे हो। और जिस दिन कोई व्यक्ति अपने जीवन को भी लीला बना लेता. | तुममें जो स्वच्छता दिखाई पड़ रही है, वह केवल ऊपर की पुताई है. उसी दिन मक्त हो जाता है. उसी दिन वह ईश्वरीय हो जाता है.| है: भीतर तम सडी हई लाशें हो। . उसी दिन वह ईश्वर हो जाता है। ___ महात्मा का उदास होना जरूरी है। महात्मा हंसता हुआ मिले, जब तक आपका जीवन काम है, तब तक आप एक गुलाम हैं, तो भक्त चले जाएंगे। क्योंकि महात्मा में हम प्रफुल्लता देखने को अपनी ही चिंताओं के, अपनी ही गंभीरता के। अपनी ही गंभीरता | राजी नहीं हैं। हमने धर्म को एक गंभीर कृत्य बना लिया है। हमने के पत्थरों के नीचे दबे जा रहे हैं। ये पहाड़ जो आपके सिर पर हैं, धर्म को इतना गंभीर कृत्य बना लिया है कि उसमें ईश्वरीय तत्व तो आपकी ही गंभीरता के हैं। उतार दें इन पहाड़ों को। जीवन को एक विलीन ही हो जाएगा। खेल समझें, एक आनंद, तो फिर सिर पर कोई बोझ नहीं है। फिर | । इसलिए आज अगर कृष्ण जैसा आदमी हमारे बीच हो, तो आप आप जीवन से नाचते हुए गुजर सकते हैं। फिर आपके होंठ पर भी । यह मत सोचना कि आप कृष्ण के पैर छू सकोगे। आप नहीं छू बांसुरी हो सकती है। फिर आपके प्राण में भी गीत हो सकता है। | सकोगे। क्योंकि अगर यह कृष्ण चौरस्ते पर खड़े होकर चौपाटी पर और जिस दिन आपके प्राण में भी यह लीला का भाव उदय होगा, बांसुरी बजाता मिल जाए, तो आप पुलिस में खबर करोगे! आप उस दिन आप इस सत्र को समझ पाएंगे कि यह पूरा का पूरा जगत कहोगे, यह हमारा कृष्ण नहीं है। यह क्या बात है! कृष्ण और उस परमात्मा के लिए भी लीला है। | बांसुरी बजा रहे हैं? वह तो आप किताब में पढ़ लेते हो, तो टाल और ध्यान रहे, यह जगत इतना सुंदर इसीलिए है कि उस जाते हो। यू कैन टालरेट। अगर चौपाटी पर बजाएं, तो बहुत 209
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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