SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * गीता दर्शन भाग-42 ले–पांचवीं चाल! अभी मैं यह चलूंगा, यह उत्तर आएगा; तब मैं | गिर जाता। किसी का पैर पड़ जाता, किसी का बना-बनाया महल यह चलूंगा, तब यह उत्तर आएगा। ऐसे पांच को जो पहले से सोच जमीन पर हो जाता। बच्चे लड़ते, गाली देते, एक-दूसरे को मारते। ले, वही शतरंज में कुशल हो सकता है। किसी ने किसी का घर गिरा दिया हो, तो झगड़ा तो सुनिश्चित है। निश्चित ही है, कुशल शतरंज में होगा कि नहीं होगा, एक बात सारे झगड़े ही घरों के हैं। किसी का धक्का लग गया, किसी का घर पक्की है, पागल हो जाएगा। | गिर गया। किसी ने बड़ी मुश्किल से तो आकाश तक पहुंचाने की तो मैंने सना है कि इजिप्त का एक सम्राट शतरंज खेलते-खेलते | कोशिश की थी; और किसी ने चोट मार दी, और सब जमीन पर पागल हो गया। बड़ा खिलाड़ी था। सब इलाज किए गए, वह ठीक | गिर गया! न हो सका। तो फिर मनसविदों ने कहा कि अब एक ही उपाय है तो बुद्ध खड़े होकर देखते रहे। बच्चे एक-दूसरे से लड़ते रहे। कि इससे भी बड़ा शतरंज का खिलाड़ी कोई मिले, तो शायद यह झगड़ा होता रहा। फिर सांझ होने लगी। फिर सूरज ढलने लगा। ठीक हो जाए। बहुत खोज की गई, आखिर एक आदमी मिल गया। | फिर किसी ने नदी के किनारे आकर जोर से आवाज लगाई कि उसने मना किया। बहुत प्रलोभन दिए गए, प्रलोभन में आकर वह तुम्हारी माताएं तुम्हारी घर राह देख रही हैं; अब घर जाओ! जैसे ही चला आया। क्योंकि पागल के साथ वह शतरंज खेलने को तैयार | बच्चों ने यह सुना, अपने ही बनाए हुए घरों पर कूद-फांद करके, नहीं होना चाहता था। ऐसे तो शतरंज का खेल ही पागल करने | उनको गिराकर, वे घर की तरफ चल पड़े। वाला है, फिर पागल खिलाड़ी भी सामने हो! तो वह खेलना नहीं बुद्ध खड़े थे, देखते रहे। उन्होंने कहा, जिस दिन हम अपने सारे चाहता था। लेकिन सम्राट का मामला था, बड़े प्रलोभन थे। लाखों | जीवन को रेत के खेल जैसा समझ लें, और जिस दिन खयाल हमें रुपए का कहा गया, आ गया। आ जाए कि अब यह खेल समाप्त हुआ, पुकार आ गई वहां से कहते हैं, सालभर यह खेल चला। सम्राट ठीक हो गया, लेकिन | असली घर की, अब उस तरफ चलें, तो उस दिन हम भी इनको वह जो खेलने आया था, वह पागल हो गया! वह गरीब आदमी | गिराकर इसी तरह चले जाएंगे। अभी लड़ रहे थे कि मेरे घर को था। फिर उससे बड़ा खिलाड़ी खोजना भी मुश्किल था। और उतना | गिरा दिया, अब खुद ही गिराकर भाग गए हैं! वह पुरस्कार भी नहीं दे सकता था। वह पागल ही मरा। | बच्चे जैसे रेत के घर बनाकर खेल खेल रहे हों, वैसे ही जब शतरंज भी आदमी खेलता है. तो भारी तनाव। और अगर तनाव कोई व्यक्ति जीवन को खेल बना ले, तो अनासक्त हो जाता है। न हो, दो आदमी ताश खेलते हों, तनाव ज्यादा न रहा हो, तो खीसे परमात्मा के लिए जीवन एक खेल है। से कुछ निकालकर दांव पर लगा लेते हैं। क्योंकि ये रुपए जो हैं, ध्यान रहे, इसलिए हमने जो शब्द प्रयोग किया है, वह है, ये तत्काल किसी भी खेल को काम में परिवर्तित कर देते हैं। तो लीला। उसका अर्थ है, प्ले। थोड़ा आदमी दांव लगा लेता है। थोड़ा ही सही, तो फिर खेल में पृथ्वी पर किसी दूसरे धर्म ने जगत के निर्माण को लीला नहीं रस आ जाता है। कहा है। ईसाई ईश्वर अति गंभीर है। इसलिए छः दिन में उसने इतना रस क्यों आ जाता है खेल में? खेल में रस ही नहीं है आपको, | कठिन काम किया कि सातवें दिन विश्राम किया। ईसाई ईश्वर की जब तक कि कर्म न बन जाए। जब तक आसक्ति न बने, तब तक धारणा है कि संडे जो है, वह विश्राम का दिन है। इसलिए हाली-डे रस नहीं है। रुपए के साथ जुड़ते ही आसक्ति जुड़ जाती है। रुपया है, इसलिए छुट्टी है। क्योंकि छः दिन में ईश्वर ने दुनिया बनाई, फिर सेतु का काम कर जाता है। अनासक्त कर्म तो एक ही हो सकता | वह इतना थक गया, इतना परेशान हो गया कि सातवें दिन उसने है, जैसे छोटे बच्चे खेलते हैं। विश्राम किया। वह सातवें दिन इसीलिए ईसाई अभी भी काम करना बुद्ध ने कहा है कि गुजरता था एक नदी के किनारे से। बच्चों को | पसंद नहीं करता। कि जब भगवान तक सातवें दिन काम नहीं रेत के घर बनाते देखा, रुककर खड़ा हो गया। इसलिए खड़ा हो | करता, तो हमें तो करना ही नहीं चाहिए! गया कि बच्चे भी रेत के घर बनाते हैं और बूढ़े भी। थोड़ा इनके | लेकिन ईसाई जो धारणा है ईश्वर की, वह बहुत सीरियस है, खेल को देख लूं। रेत के ही घर थे। हवा का झोंका आता, कोई घर गंभीर है। तभी तो थक गया। और ये कृष्ण कभी नहीं कहेंगे कि मैं खिसल जाता। किसी बच्चे का धक्का लग जाता, किसी का घर थकता हूं। ये कहते हैं, कल्पों के बाद फिर रचता हूं। फिर सब मुझ 208
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy