________________
* जगत एक परिवार है *
मूल्यवान है। यह बच्चा कुरूप हो, तो भी फूल से ज्यादा मूल्यवान प्रकट होता है, वह पहले ही मौजूद होना चाहिए, अन्यथा प्रकट है। और यह बच्चा बिलकुल मूढ़ हो, तो भी मोर से ज्यादा नहीं हो सकता। इसे थोड़ा समझना कठिन होगा। मूल्यवान है! क्यों? क्योंकि इस बच्चे के पास एक भीतरी संभावना लेकिन अंत में वही प्रकट होता है, जो प्रथम में मौजूद होता है, है, जो फूल के पास और मोर के पास नहीं है। इस बच्चे के पास यह जीवन के शाश्वत नियमों में एक है। अगर फूल में से अंत में भीतर एक मन की संभावना है, कितनी ही छोटी, लेकिन एक और | बीज निकलते हैं, बीज से अंत में बीज निकलते हैं, वृक्ष से अंत में नई संभावना का द्वार खुल गया है। यह विकास के एक ऊपर के बीज निकलते हैं, तो वे बीज खबर देते हैं कि प्रथम में भी बीज ही तल पर खड़ा हो गया है।
रहा होगा। पत्थर पड़ा है। पत्थर से फूल एक कदम ऊपर है; विकासमान है। __ आपने या माली ने एक पौधा लगाया। यह माली मर जाएगा। फूल से यह बच्चा एक कदम ऊपर है, क्योंकि यह विकासमान ही | | इसके बेटे इस वृक्ष में आए हुए बीजों को बटोरेंगे। फिर भी वे कह नहीं है. यह मनन की क्षमता से भी भरा है. यह सोच भी सकता है। सकते हैं कि बीज चंकि अंतिम है. इसलिए बीज प्रथम में भी रहे
माइंड इज़ सेंट्रल टु लाइफ। मन जीवन का केंद्र है। लेकिन मन | | होंगे। क्योंकि अंतिम वही होता है, जो प्रथम में मौजूद था। अंत में कितना ही विकसित हो, एक आइंस्टीन बैठा हो, जिसके पास | | वही तो प्रकट होता है, जो पहले से छिपा था। अंत प्रथम की विकसित से विकसित मन है; जिसने जगत को कीमती सिद्धांत अभिव्यक्ति है। दिए, शक्ति दी, विज्ञान दिया। लेकिन पास में ही एक साधारण-सा तो जैसा चार्डिन ने शब्द उपयोग किया है, ओमेगा, अंत। बट मनुष्य बैठा हो ध्यान में लीन, तो आइंस्टीन से ज्यादा कीमती है। | ओमेगा इज़ आल्सो दि अल्फा। वह जो पहला है, वही अंतिम है। एक साधारण-सा व्यक्ति ध्यान में लीन बैठा हो, तो आइंस्टीन से | तो अगर ईश्वर जीवन की परम शिखर अनुभूति है, तो निश्चित ही ज्यादा कीमती है।
| वह प्रथम भी मौजूद होगी। इसलिए कृष्ण के इस सूत्र को अब हम क्यों? क्योंकि उसने और एक नया चरण पूरा किया। अब वह समझें, तो आसानी हो जाएगी। मन में ही नहीं जीता; मन को भी शांत करने पर, विचार के भी खो कहते हैं, कल्प के अंत में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं। जाने पर जो चेतना शेष रह जाती है, उसमें जीता है।
वे यह कह रहे हैं कि कल्प के अंत में सभी कुछ अंततः ईश्वरीय कांशसनेस इज़ सेंट्रल टु माइंड, मन का भी केंद्र चैतन्य है। हो जाता है; एवरीथिंग बिकम्स डिवाइन। अंत में अंत का अर्थ चैतन्य शिखर है। अस्तित्व आधार है, चैतन्य शिखर है। लेकिन | है, यह परम जो स्थिति होगी विकास होते-होते, यात्रा चैतन्य का भी प्रयोजन क्या? एक आदमी बैठा है शांत; मन के | चलते-चलते, जो आखिरी मंदिर आएगा, उसमें पत्थर भी, प्राण विचार खो गए, अशांति खो गई, सब खो गया। शांत है बिलकुल। | भी, सभी कुछ मुझ में लीन हो जाता है। क्योंकि मैं ही प्रथम और
चेतना से भरा है। लेकिन उसके पास ही एक दूसरा आदमी बैठा | मैं ही अंतिम हूं। कल्प के अंत में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते है, जो सिर्फ शांत ही नहीं है—मात्र शांति निषेध है, नकार है, | हैं, अर्थात मेरी प्रकृति में लय हो जाते हैं। मेरा जो स्वभाव है, मेरा अभाव है जो केवल शांत ही नहीं है, जो परमात्मा के अनुभव से | जो होना है. मेरा जो अस्तित्व है. अंत में सभी कछ उसमें लीन हो नाच उठा है।
जाता है। गॉड इज़ सेंट्रल टु कांशसनेस। अकेले शांत हो जाना निषेध है। | इसलिए कल्प को दो तरह से देखें। उसको सिर्फ अंत ही न मन तो खो गया, लेकिन नया कुछ अवतरित नहीं हुआ है। लेकिन | समझें; उसे लक्ष्य भी समझें। वह दोहरे अर्थों में अंत है। वह चेतना जब परमात्म से भर जाए और चेतना जब दिव्यता से भर | समाप्ति भी है, वह पूर्णता भी। और हर पूर्णता समाप्ति होती है। हर जाए, तो अब एक नया रंग, एक नया आनंद, एक एक्सटैसी, एक | समाप्ति पूर्णता नहीं होती, लेकिन हर पूर्णता समाप्ति होती है। वर्षा अमृत की हो गई है। यह शिखरों में भी शिखर है। ___ जब सारा जीवन विकसित होकर प्रभु के पास पहुंच जाता है, तो
ये पांच-अस्तित्व, जीवन, मन, ध्यान, परमात्मा। और समझ जगत तिरोहित हो जाता है, सिर्फ परमात्म-चेतना शेष रह जाती है। में आने की बात होगी, आसान हो जाएगा–अगर परमात्मा पीक यह एक कल्प का अंत है। है, शिखर है हमारे अनुभव का, हमारे अस्तित्व का, तो जो अंत में | - कृष्ण कहते हैं, और कल्प के प्रारंभ में मैं उनको फिर रचता हूं;
| 205]