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* जगतं एक परिवार है *
प्रकट न होने लगे; वह अदृश्य हमें दिखाई न पड़ने लगे। उस बीज है, और प्रत्येक चीज ऊपर उठ रही है। चीजें ठहरी हुई नहीं हैं, चीजों में से वृक्ष निकलने न लगे, फूल न खिलने लगें, तब तक हमें| | के तल रूपांतरित हो रहे हैं। और यह जो विकास है, इररिवर्सिबल उसका पूरा एहसास, उसकी पूरी प्रतीति नहीं होती। | है, यह पीछे गिर नहीं जाता। एक बच्चे को हम दुबारा बच्चा कभी
लेकिन यह धारणा उपयोगी है; क्योंकि यह धारणा हो, तो उस | | नहीं बना सकते। कोई उपाय नहीं है। क्योंकि विकास सुनिश्चित प्रतीति की तरफ चलने में आसानी हो जाती है। और हम उसी तरफ | रूप से उसकी आत्मा का हिस्सा हो जाता है। यात्रा कर पाते हैं, जिस दिशा को हम अपने संकल्प में उन्मुक्त कर आप जो भी जान लेते हैं, उसे फिर भुलाया नहीं जा सकता। लेते हैं। जिस दिशा को हम बंद कर देते हैं, उस तरफ यात्रा कठिन | आपने जो भी जान लिया, उसे फिर मिटाया नहीं जा सकता। हो जाती है।
क्योंकि वह आपकी आत्मा का सुनिश्चित हिस्सा हो गया। वह पश्चिम में एक विचारक अभी था, जिसका पश्चिम पर बहुत आपकी आत्मा बन गई। इसलिए इस जगत में जो भी हम हो जाते प्रभाव पड़ा, एडमंड लूसेल्ड। उसका कहना है, मनुष्य का पूरा | हैं, उससे नीचे नहीं गिर सकते। जीवन एक इनटेंशनलिटी है। मनुष्य का पूरा जीवन एक गहन तीव्र ___ अगर यह संयोग मात्र है, तो ठीक है। एक बूढ़ा किसी दिन इच्छा है। तो जिस दिशा में मनुष्य अपनी गहन तीव्र इच्छा को लगा सुबह उठकर पाए कि बच्चा हो गया! एक ज्ञानी सुबह उठे और देता है, वही दिशा खुल जाती है; और जिस दिशा से अपनी इच्छा | पाए कि सब अंधकार हो गया; अज्ञान ही अज्ञान छा गया! एक को खींच लेता है, वही बंद हो जाती है।
मूर्तिकार सुबह उठकर पाए कि उसकी छेनी-हथौड़ी को हाथ पकड़ तो अगर एक चित्रकार चित्रकार होना चाहता है, तो अपने | | नहीं रहे, हाथ छूट गए हैं ! उसे कुछ खयाल ही नहीं आता कि कल समस्त प्राणों की ऊर्जा को उस दिशा में संलग्न कर देता है। एक वह क्या था! मूर्तिकार मूर्तिकार होना चाहता है, एक वैज्ञानिक वैज्ञानिक होना नहीं, हमारा आज हमारे समस्त कल और अतीत के ज्ञान और चाहता है। लेकिन अगर आप कुछ भी नहीं होना चाहते, तो आप अनुभव को अपने में समा लेता है, निविष्ट कर लेता है। न केवल ध्यान रखिए, आप कुछ भी नहीं हो पाएंगे, क्योंकि आप किसी भी | | अतीत को निविष्ट कर लेता है, बल्कि भविष्य की तरफ पंखों को यात्रा पर अपनी चेतना को संगृहीत करके गतिमान नहीं कर पाते। | भी फैला देता है। आपके भीतर इंनटेंशनलिटी, आपके भीतर संकल्प का आविर्भाव जगत एक सुनिश्चित विकास है, एक कांशस इवोल्यूशन। ही नहीं हो पाता। तो आप एक लोच-पोच व्यक्ति होते हैं, जिसके अगर जगत विकास है, तो उसका अर्थ है कि वह कहीं पहुंचना चाह भीतर कोई केंद्र नहीं होता। बिना रीढ़ की, जैसे कोई शरीर हो बिना रहा है। विकास का अर्थ होता है, कहीं पहुंचना। जीवन कहीं रीढ़ की हड्डी का, वैसी आपकी आत्मा होती है बिना रीढ़ की। | | पहुंचना चाह रहा है। जीवन किसी यात्रा पर है। कोई गंतव्य है, कोई . यह जगत भी अपने समस्त रूपों में एक गहन इच्छा की सूचना | | मंजिल है, जिसकी तलाश है। हम यूं ही नहीं भटक रहे हैं। हम कहीं
देता है। यहां कोई भी चीज अकारण होती मालूम नहीं हो रही है। | जा रहे हैं। जाने-अनजाने; पहचानते हों, न पहचानते हों; हमारा यहां प्रत्येक चीज विकासमान होती मालूम पड़ती है। प्रत्येक कृत्य हमें विकसित करने की दिशा में संलग्न है। ___ डार्विन ने जब पहली बार विकास का, इवोल्यूशन का सिद्धांत __ और ध्यान रहे, हमारे जीवन में जब भी आनंद के क्षण होते हैं, जगत को दिया, तो पश्चिम में विशेषकर ईसाइयत ने भारी विरोध | तो वे वे ही क्षण होते हैं, जब हम कोई विकास का कदम लेते हैं। किया। क्योंकि ईसाइयत का खयाल था कि विकास का सिद्धांत | | जब भी हमारी चेतना किसी नए चरण को उठाती है, तभी आनंद से धर्म के खिलाफ है। लेकिन हिंदू चिंतन सदा से विकास के सिद्धांत | भर जाती है। और जब भी हमारी चेतना ठहर जाती है. अवरुद्ध हो को धर्म का अंग मानता रहा है।
जाती है, उसकी गति खो जाती है और कहीं चलने को मार्ग नहीं असल में विकास के कारण ही पता चलता है कि जगत में | | मिलता, तभी दुख, तभी पीड़ा, तभी परतंत्रता, तभी बंधन का परमात्मा है। विकास के कारण ही पता चलता है कि जगत किसी | | अनुभव होता है। मुक्ति का अनुभव होता है विकास के चरण में। गहन इच्छा से प्रभावित होकर गतिमान हो रहा है। जगत ठहरा हुआ | | जब बच्चा पहली दफा जमीन पर चलना शुरू करता है, तब नहीं है, स्टैटिक नहीं है, डायनैमिक है। यहां प्रत्येक चीज बढ़ रही आपने उसकी प्रफुल्लता देखी है? जब वह पहली दफा पैर रखता
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