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*गीता दर्शन भाग-4
सोचें कि किसी ने इसे निर्मित किया होगा । और दूसरा रास्ता यह है कि वे सोचें कि यह बन गई होगी।
लेकिन अगर एक चित्र हाथ में लगे, तो संयोग की बात भी हो सकती है। लेकिन फिर उन्हें मूर्तियां मिलें, खजुराहो के मंदिर मिलें, कि कोणार्क की मूर्तियां मिलें। और वे जमीन के कोने-कोने पर घूमते रहें और उन्हें अनेक यंत्र मिलें, और अनेक व्यवस्थाएं मिलें, तब भी अगर वे यही कहे चले जाएं कि यह संयोग की बात है ! यह संयोग की बात है कि यह जो रेडियो का यंत्र पड़ा है, संयोग की बात है कि अनंत-अनंत काल में अनेक-अनेक चीजों के मिलने से निर्मित हो गया होगा।
लेकिन अगर एक रेडियो हो, तब भी यह संभव हो सकता है। जमीन पर बहुत रेडियो मिलें, रेल के इंजन मिलें, उजड़े हुए कारखाने मिलें, जगह-जगह व्यवस्था के लक्षण मिलें, जगह-जगह बनाने वाले की खबर मिले, तब भी अगर वे यात्री जिद्द किए जाएं, तो वह जिद्द उनकी नासमझी होगी ।
जमीन के इंच-इंच पर और प्रकृति के इंच-इंच पर और विश्व के इंच-इंच पर बनाने वाले की छाप है। यहां एक भी चीज निष्प्रयोजन नहीं मालूम पड़ती। और प्रत्येक चीज के भीतर एक गहन अनुपात है। अगर हम इनकार करे चले जाएं, तो हम अपने ही हाथ अपने को अंधा बनाते हैं।
देखें, चारों तरफ आंखें खोलकर देखें। बीज को बोते हैं जमीन में। बीज को तोड़कर देखें, तो वृक्ष का कोई नक्शा दिखाई नहीं पड़ता, कोई ब्लू-प्रिंट दिखाई नहीं पड़ता। लेकिन अब वैज्ञानिक मानते हैं कि बीज में ब्लू-प्रिंट है, नहीं तो यह वृक्ष निकलेगा कैसे ?
एक छोटे-से बीज में तोड़कर देखने पर कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता। लेकिन इस बीज को जमीन में बो देते हैं और वृक्ष अंकुरित होता है; हर कोई वृक्ष नहीं, एक विशिष्ट वृक्ष अंकुरित होता है। इस वृक्ष की शाखाएं हर वृक्ष जैसी नहीं होतीं। इसकी अपने ही ढंग की शाखाएं होंगी, अपने ही ढंग के पत्ते होंगे, अपने ही ढंग के फूल खिलेंगे। और आश्चर्य की बात यह है कि जब यह वृक्ष संपूर्ण होगा, तो जिस बीज को हमने बोया था, वही बीज करोड़ों होकर वापस निकल आएगा। हर कोई बीज नहीं, वही बीज करोड़ों होकर फिर प्रकट हो जाएगा !
एक बीज के भीतर भी ब्लू प्रिंट है। एक बीज के भीतर भी व्यवस्था है। एक बीज के भीतर भी भविष्य की पूरी रूप-रेखा है। एक मां के पेट में बच्चे ने लिया है। वह जो पहला अणु है।
बच्चे का, उसके भीतर पूरा का पूरा ब्लू प्रिंट है। उस व्यक्ति का पूरा का पूरा जीवन विकसित होगा; उस सब की कहानी छिपी है; उस सब के मूल निर्देश सूत्र छिपे हैं, सारे सुझाव छिपे हैं। और शरीर उन सारे सुझावों को मानकर चलेगा। उस व्यक्ति की आंख का रंग क्या होगा, यह उस छोटे-से अणु में छिपा है, जो खाली आंख से देखा नहीं जा सकता। उस व्यक्ति की कितनी बुद्धि होगी, कितनी मेधा होगी, कितना आई क्यू होगा, वह उस छोटे-से अणु में छिपा है। जिसको बुद्धि लाख उपाय करे, तो भी पता नहीं लगा पा सकती। वह व्यक्ति कितनी उम्र का हो सकेगा, कितनी उम्र का होकर मरेगा, उस व्यक्ति को कौन-सी खास बीमारियां हो सकती हैं, वह सब उस छोटे-से बीज में छिपा है।
अगर इतने छोटे-से बीज में यह वृक्ष का सारा ब्लू-प्रिंट छिपा होता है; अगर छोटे-से मनुष्य के अणु में, सेल में, उसके पूरे जीवन की कथा छिपी होती है, तो क्या यह सोचना गलत है कि इस पूरे जगत का भी कोई ब्लू-प्रिंट होना चाहिए? क्या यह सोचना गलत है कि इस सारे जगत की भी मूल व्यवस्था किसी अणु में छिपी हो? उस अणु का नाम ही परमात्मा है। यह जो इतना बड़ा विराट जगत है, इस सारे जगत के फैलाव की भी मूल व्यवस्था कहीं होनी चाहिए।
कृष्ण कहते हैं, मैं ही इसे सृजन करता और मैं ही फिर इसे अपने में लीन कर लेता हूं।
इसे समझें। एक बीज से वृक्ष निर्मित होता है और फिर वृक्ष पुनः बीजों में लीन हो जाता है। प्रथम और अंतिम क्षण सदा एक होते हैं। जहां से यात्रा शुरू होती है, वहीं यात्रा पूर्ण हो जाती है। बीज से शुरू होती है यात्रा, बीज पर समाप्त हो जाती है।
इस विराट अस्तित्व को अगर हम एक इकाई मान लें, तो | इस इकाई का भी मूल कहीं छिपा होना चाहिए। लेकिन हम बीज को तोड़ते हैं, तो वृक्ष नहीं मिलता। और अगर हम आदमी के अणु को तोड़ें, उसके सेल को, कोष्ठ को तोड़ें, तो भी उसमें आदमी नहीं | मिलता। तो एक बात साफ होती है कि बीज में वृक्ष छिपा है, लेकिन किसी अदृश्य ढंग से; किसी ऐसे ढंग से कि जब तक प्रकट न हो जाए, तब तक उसका पता ही नहीं चलता ।
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ईश्वर का भी पता तभी चलना शुरू होता है, जब किन्हीं अर्थों में वह हमारे लिए प्रकट होने लगता है। तब तक पता नहीं चलता। इसलिए सैद्धांतिक रूप से अगर कोई मान भी ले कि जगत में ईश्वर है, तब भी उसका कोई प्रयोजन नहीं, जब तक कि वह