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गीता दर्शन भाग-4
जाते हैं। मेरी आंख देखती है, और मेरे कान, जो मेरी आंख देखती है, उसे सुनने को उत्सुक हो जाते हैं। मेरे पैर और मेरी आंख में, और मेरे कान में, और मेरे हाथ में, और मेरे मन में एक अंतर्व्यवस्था है, एक इनर सिस्टम है। ये सिर्फ जोड़ नहीं हैं। ये सिर्फ जोड़ नहीं हैं कि हाथ मेरे पैर से जुड़ा है, पैर मेरे शरीर से जुड़े हैं। ये सिर्फ जोड़ नहीं हैं। इन सबके भीतर बहती हुई कोई एकता है। उस एकता का नाम आर्गेनिक यूनिटी है।
ईश्वर की धारणा इस बात की घोषणा है कि यह जगत भी वस्तुओं का समूह नहीं, एक अंतर ऐक्य है। एक इनर यूनिटी इस सारे जगत के भीतर दौड़ रही है। अगर वृक्ष उग रहा है और आकाश में तारे चल रहे हैं, वर्षा हो रही है और नदियां सागर की तरफ भाग रही हैं, सूरज सुबह उग रहा है और चांद रात को आकाश में यात्रा करता है—यह सब का सब अलग-अलग घटनाओं का जोड़ नहीं है । इन सारी घटनाओं के बीच जैसे मेरे शरीर में मेरी एकता व्याप्त है, इन सबके बीच कोई अंतर्व्यवस्था व्याप्त है। उस अंतर्व्यवस्था का नाम ईश्वर है।
ईश्वर व्यक्ति नहीं है, ईश्वर अंतर्व्यवस्था है । समस्त व्यक्तियों के बीच जो अंतर्व्यवस्था है, उसका नाम ईश्वर है, समस्त वस्तुओं के बीच जो जोड़ने वाली कड़ी है।
अब यह मजे की बात है कि अगर मेरे हाथ को काट दें, तो मेरा हाथ कटकर गिर जाएगा, मेरा शरीर अलग हो जाएगा, लेकिन दोनों के बीच की जोड़ने वाली कड़ी दिखाई नहीं पड़ेगी। पकड़ में भी नहीं आएगी। अब तक तो नहीं आ सकी है। और जितना गहरे जो जानते हैं, वे कहते हैं, कभी पकड़ में नहीं आ सकेगी। वह अंतर्व्यवस्था अदृश्य है।
यह तो निश्चित है कि मेरे हाथ और मेरे बीच कोई अंतर- कड़ी है, तभी मेरे मन में विचार कंपता है और मेरा हाथ सक्रिय हो जाता है। विचार और मेरे हाथ में भी कोई जोड़ है। लेकिन हाथ को काटते हैं, तो हाथ में और मेरे शरीर में जो जोड़ है, वह तो दिखाई पड़ता है— नसें दिखाई पड़ती हैं, मसल्स दिखाई पड़ते हैं, स्नायु, हड्डियां दिखाई पड़ती हैं - लेकिन मेरे हाथ और मेरे विचार में जो जोड़ है, वह कहीं भी दिखाई नहीं पड़ता ! वह जोड़ है जरूर। क्योंकि इधर मैं सोचता हूं, उधर मेरा हाथ सक्रिय हो जाता है।
जब कभी वह जोड़ खो जाता है, तो हम कहते हैं, आदमी को लकवा लग गया, पक्षाघात गया। अब वह सोचता है कि मेरा हाथ उठे और हाथ नहीं उठता। तो वह आदमी कहता है, मैं
| पैरालाइज्ड हो गया।
लेकिन इस जगत में जो लोग व्यवस्था को नहीं देखते, वे एक पैरालाइज्ड जगत देख रहे हैं; एक पक्षाघात, एक लकवे से लगा हुआ जगत है उनका । इसलिए नास्तिक जिस जगत को देखता है, वह पैरालाइज्ड है । उसमें अंतर्व्यवस्था उसे दिखाई नहीं पड़ रही है।
और ध्यान रहे, जिसका जगत पैरालाइज्ड है, वह खुद भी उसके साथ पैरालाइज्ड हो जाएगा। जिसका जगत एक मुर्दा जोड़ है, वह आदमी भी अपने भीतर एक मुर्दा जोड़ हो जाएगा। उसकी आत्मा बिखर जाएगी। जिसे इस जगत में आत्मा नहीं दिखाई पड़ती, उसे | अपने भीतर भी आत्मा दिखाई नहीं पड़ेगी, क्योंकि तब वह भी एक वस्तुओं का जोड़ है। जैसा कि चार्वाक ने कहा है कि आदमी केवल वस्तुओं का जोड़ है, उसके भीतर आत्मा जैसी कोई भी वस्तु नहीं है।
अगर हम आदमी को काटें, तो यह बात सच है। अगर आदमी को तोड़ें, तो यह बात सच है। हमें कहीं भी वह अंतर्व्यवस्था दिखाई नहीं पड़ेगी। वह अंतर्व्यवस्था अदृश्य है और इसलिए परमात्मा अदृश्य है।
पहली बात, परमात्मा से प्रयोजन है, इस सारे जगत के भीतर एक जीवंत जोड़ है। यहां एक पत्ता भी नहीं हिलता, जब तक कि पूरे जगत का उसे साथ न हो। यहां अगर मैं एक शब्द बोलता हूं, तो यह शब्द मैं ही नहीं बोलता, बोल नहीं सकता हूं; अलग, | अकेला, अलग-थलग जगत से मैं नहीं हूं। एक शब्द भी यहां बोला जाएगा, बोला जा सकता है तभी, जब पूरे जगत का उसे सहयोग हो, जब पूरी अंतर्व्यवस्था साथ
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आपकी आंख खुलेगी भी नहीं, अगर सूरज ढल जाए, समाप्त हो जाए। आपकी सांस चलेगी भी नहीं, अगर सूरज मर जाए। दस करोड़ मील दूर जो सूरज है, उसके साथ आपकी सांस जुड़ी है। जिस दिन सूरज समाप्त हो जाएगा, उस दिन हम समाप्त हो जाएंगे और हमें पता भी नहीं चलेगा कि सूरज समाप्त गया। क्योंकि पता चलने के लिए भी हम बचेंगे नहीं। हमें कभी पता नहीं चलेगा कि सूरज समाप्त हो गया। क्योंकि सूरज समाप्त हुआ, उसके साथ तत्क्षण हम समाप्त हो जाएंगे।
सारा जगत एक अंतर-संयोग है, अंतर-संबंध है। कहें कि जगत एक परिवार है।
ईश्वर की मान्यता का अर्थ है, जगत को एक परिवार के रूप में | देखना । ईश्वर को इनकार करने का अर्थ है, प्रत्येक व्यक्ति एटामिक हो गया, आणविक हो गया। अब जगत एक परिवार नहीं
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