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________________ *गीता दर्शन भाग-44 की है, जो बहुत गहरी है। वह यह है कि परमात्मा निर्माता भी है। | भीड़ में बिलकुल डूबे हुए हैं। फिर भी अगर आपको थोड़ी-सी भी और विध्वंसक भी। ईसाइयत कहेगी, परमात्मा बनाता है, शैतान ध्यान की क्षमता हो, आंख बंद कर लें, अपने भीतर ध्यान में हो मिटाता है। हम कहते हैं, परमात्मा दोनों ही काम करता है; वही | जाएं, तो आप कह सकते हैं कि मैं भीड़ में मौजूद हूं और फिर भी बनाता है, वही मिटाता है। भीड़ में नहीं हूं। __ हमने अर्द्धनारीश्वर की प्रतिमा बनाई है। हमने शिव की प्रतिमा | आप जंगल में चले जाएं और ध्यान की बिलकुल क्षमता न हो; बनाई है, जिसमें वे आधे पुरुष हैं और आधे स्त्री। दुनिया में कोई एक वृक्ष के नीचे बैठ जाएं; कोई वहां नहीं है, निराट सुनसान है; ऐसी कल्पना नहीं कर सकता। एक ही व्यक्ति दोनों कैसे हो सकता आंख बंद करें, भीड़ मौजूद है! तब आपको वहां कहना पड़ेगा, है? या तो स्त्री हो या पुरुष हो। लेकिन दोनों हैं; दोनों एक साथ। | भीड़ यहां बिलकुल नहीं है, फिर भी मैं भीड़ में मौजूद हूं। इसलिए कृष्ण यह भी कहते हैं कि यह सारा संसार मुझमें समाया इस भीड़ में बैठकर भी आप भीड़ के बाहर हो सकते हैं। तब हुआ है और फिर भी मैं इसमें नहीं हूं। अगर कृष्ण से कोई पूछे कि | आपको एक जटिल सत्य का अनुभव होगा, भीड़ में हूं, भीड़ में ये जो पाप हो रहे हैं, इनके संबंध में आपका क्या खयाल है? तो समाया हूं, बैठा हूं, चारों तरफ भीड़ है, फिर भी मैं भीड़ में नहीं हूं। कृष्ण कहेंगे, सारे पापियों में भी मैं समाया हुआ हूं और फिर भी मैं तब आपको खयाल में आएगा कि यह द्वंद्वातीत अतिक्रमण क्या है! उनमें नहीं हूं। और सारे पाप मेरे ही भीतर हो रहे हैं और फिर भी मैं | यह नान-डुअल ट्रांसेंडेंस क्या है! यह कृष्ण किस गहन पहेली की उनमें नहीं हूं। बात कर रहे हैं! यह जो द्वंद्वातीत, ट्रांसेंडेंटल, दोनों को स्वीकार करके भी उनके वे यह कह रहे हैं, मैं ही लड़ता हं, मैं ही लड़ाता हूं; मैं ही भागता पार होने की बात है, यही भारतीय धर्म का गुह्यतम सूत्र है। इसलिए | हूं, मैं ही भगाता हूं; और फिर भी मैं इस सब में नहीं हूं। हमारा परमात्मा, हमारी जो परमात्मा की धारणा है, वह दुनिया के | लेकिन यह ध्यान की या श्रद्धा की, समाधि की जो परम अवस्था दूसरे लोगों को बहुत अजीब मालूम पड़ती है। उनकी कल्पना में है, तभी खयाल में आती है। तभी खयाल में आती है। नहीं आती है कि यह कैसी बात है! हमारे मुल्क में भी ऐसे लोग हैं, | एक सूफी फकीर मरने के करीब था। चिकित्सक उसे दवा दे रहे जिनकी समझ में नहीं आती। | हैं। वह दवा पी रहा है। लेकिन चिकित्सक को उसकी आंखों को जैसे कृष्ण का ही व्यक्तित्व है, यह जैनों की समझ में नहीं आ देखकर शक हुआ कि वह दवा नहीं पी रहा है। चिकित्सक ने कहा सकता। क्योंकि वे कहेंगे, यह आदमी कैसा है? यह बांसुरी भी बजा कि आप दवा पी तो जरूर रहे हैं, लेकिन आपकी आंखों से ऐसा सकता है, यह युद्ध के मैदान पर भी खड़ा हो सकता है! यह अहिंसा | | लग रहा है कि आपको कोई प्रयोजन नहीं है। की परम बात भी कह सकता है और हिंसा के बड़े युद्ध में अर्जुन को उस फकीर ने कहा, तुम्हारे लिए दवा पी रहा हूं; मैं दवा नहीं पी जाने की सलाह देता है! सलाह ही नहीं देता, फुसलाता है। और इतने | | रहा हूं। दवा तो पी ही रहा है, लेकिन उसने कहा, तुम्हारे लिए दवा ढंग से फुसलाता है कि किसी सेल्समैन ने कभी किसी दूसरे को नहीं | पी रहा हूं। मैं दवा नहीं पी रहा हूं। फुसलाया होगा। उसको धक्का देता है कि जा और जूझ जा; | अगर कोई मोहम्मद के हाथ में तलवार को देखकर मोहम्मद से बिलकुल बेफिक्र रह! और एक अजीब सूत्र देता है; उससे कहता | पूछता कि आप यह तलवार क्यों लिए हुए हैं? तो शायद वे भी यही है, बेफिक्री से मार; क्योंकि आत्मा कभी मरती ही नहीं! कहते, तुम्हारे लिए लिए हुए हूं। मेरे हाथ में तलवार नहीं है। यह जो द्वंद्वातीत अतिक्रमण की क्षमता है, यह गहनतम खोज है। | इसलिए मोहम्मद ने अपनी तलवार पर लिख रखा था, शांति मेरा इस सूत्र में कृष्ण यही कह रहे हैं कि तू मेरे रूप को दो विरोधों में संदेश है। मत बांट। दोनों में मैं मौजूद हूं-रूप में भी, अरूप में भी; मूर्त में पागलपन है! तलवार पर, शांति मेरा संदेश है! उलटी हो गई भी, अमूर्त में भी; पदार्थ में भी, परमात्मा में भी–मैं ही हूं। और | बात। कृष्ण जैसी हो गई। तलवार पर लिखना कि शांति मेरा संदेश फिर भी मैं तुझसे कहता हूं कि इन सबमें होकर भी मैं बाहर रह जाता | है! और कोई जगह नहीं मिलती लिखने को! इस्लाम शब्द का अर्थ हूं। इन सबके बीच में खड़े होकर भी मैं इनमें डूब नहीं जाता हूं। होता है, शांति। इसे आप अनुभव कर सकते हैं। यहां आप भीड़ में बैठे हुए हैं, | - लेकिन मोहम्मद ठीक कह रहे हैं। तलवार उनकी तलवार के 194
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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