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________________ * अतर्क्स रहस्य में प्रवेश है कि एक आदमी में अभी जीने की चाह है; फिर बाद में मरने की | पर हमें कठिनाई है। क्योंकि हमारे लिए प्रेम और घृणा विपरीत बातें चाह आ जाए, यह समझ में आ सकता है; लेकिन दोनों एक साथ! हैं, अलग-अलग। वही, जो भौतिकविद पहुंचे पदार्थ में, मनसविद पहुंच गए ऐसा नहीं है। इसलिए प्रेम क्षणभर में घृणा बन सकता है; और मनुष्य की वासना में, तो पाया कि दोनों वासनाएं एक साथ मौजूद | घृणा क्षणभर में प्रेम बन सकती है। जो आकर्षण है, वह विकर्षण हैं। और अब जो और गहरे जा रहे हैं लोग, वे अनुभव करते हैं कि बन सकता है। जो विकर्षण है, वह आकर्षण बन सकता है। वे उन्हें दो वासनाएं कहना गलत है। आदमी के भीतर एक ही वासना बदलने योग्य हैं, एक्सचेंजेबल हैं, और लिक्विड हैं, तरल हैं, है, जो जीने और मरने की दोनों है। तो जब तक अच्छा लगता है. एक-दसरे में बह जाते हैं। सच तो यह है कि वे दो नहीं हैं. एक तो आदमी उस वासना की व्याख्या करता है कि मैं जीना चाहता हूं। ही हैं। जब अच्छा नहीं लगता, तो उसी वासना की व्याख्या करता है कि कृष्ण यही कह रहे हैं कि मैं दोनों हूं। जहां-जहां तुझे वैपरीत्य मैं मरना चाहता हूं। दिखाई पड़े, वह दोनों मैं हूं। बूढ़े आदमी कहते हुए सुने जाते हैं कि भगवान, अब हमें उठा इस संबंध में हिंदू चिंतन बहुत अनूठा है। दुनिया के किसी धर्म ले! तो ऐसा मत समझना कि कुछ बदलाहट हो गई है उनमें, कि ने भी द्वंद्व को इतनी गहराई से आत्मसात नहीं किया। इसलिए मैं कोई क्रांति हो गई है उनमें। वही चाह विफल होकर, असफल | कहता हूं कि आइंस्टीन के लिए या फ्रायड के लिए हिंदू चिंतन होकर, हारकर, पराजित होकर, जरा-जीर्ण होकर अब मृत्यु की | जितनी सहजता से आत्मसात कर सकता है, उतना क्रिश्चियन भाषा बोल रही है। वही चाह है। | चितन आत्मसात नहीं कर सकता है। क्योंकि क्रिश्चियनिटी या __ अभी कोई आ जाए और कहे कि एक नया यंत्र बन गया है। इस इस्लाम द्वंद्व को मानकर चलते हैं। दरवाजे से घुसो, उधर से निकलो, जवान हो जाते हो! वह बूढ़ा यह भी खयाल में ले लें। कल मैंने आपसे कहा था, दो धाराएं आदमी कहेगा, भगवान! अभी थोड़ा ठहरना। मैं इस यंत्र से जरा हैं, एक यहूदी और एक हिंदू। शेष धाराएं उनकी शाखाएं हैं। यहूदी गुजरकर एक बार देख लूं। अगर ऐसा होता हो, तो अभी मरने की धारा जीवन को द्वंद्व में तोड़कर चलती है। भगवान है एक, शैतान ऐसी कुछ जल्दी नहीं है! है एक; दोनों दुश्मन हैं। अच्छाई है एक, बुराई है एक; दोनों में क्या हुआ? ये चाहें दो नहीं हैं। लेकिन भाषा में बड़ी कठिनाई दुश्मनी है। पाप है एक, पुण्य है एक; दोनों विपरीत हैं। नर्क है एक, है। दो ही कहना पड़ेंगी। ये एक ही हैं। मनसविद हमारे भीतर खोज स्वर्ग है एक; दोनों में विरोध है। सिर्फ हिंदू चिंतना द्वंद्व को कर-करके एक और तीसरे तथ्य पर पहुंचे हैं। आपको खयाल में आत्मसात करती है। इसलिए हमने कुछ अदभुत चीजें बनाईं। आ जाए कि वैपरीत्य वैपरीत्य नहीं है। मनसविद कहते हैं कि हम जैसे-जैसे मनुष्य की समझ बढ़ेगी, उन चीजों की गरिमा और महत्ता जिस व्यक्ति को प्रेम करते हैं, उसी को घृणा भी करते हैं। भी समझ में आएगी। यह जब पहली दफा उदघाटन हुआ, तो यह पहली दो बातों से | ___ हम अकेली कौम हैं इस जमीन पर, जिन्होंने परमात्मा के विपरीत भी ज्यादा मन को डंवाने वाली बात है। क्योंकि मां को अगर कोई एक बुराई का परमात्मा खड़ा नहीं किया। खड़ा ही नहीं किया। कहे कि तू अपने बेटे को प्रेम भी करती है और घृणा भी, साथ ही; | शैतान की, हमारी चिंतना में, कोई गुंजाइश नहीं है। मगर यह बड़ा तो कोई मां राजी नहीं होगी। लेकिन फ्रायड कहता है कि उसका न कठिन काम है। ईसाई और मसलमान एक लिहाज से सीधे और राजी होना केवल उसके भीतर के भय को बताता है। वह जानती है | सरल हैं, साफ हैं। जटिलता नहीं है। क्योंकि जो-जो बुराई है, वह गहरे में कि यह सच है। शैतान पर छोड़ देते हैं; और जो-जो भलाई है, वह परमात्मा पर अगर किसी प्रेमी से हम कहें कि तू जिस प्रेयसी के लिए मरा जा रख लेते हैं। इसलिए उनका परमात्मा एकदम भला है। अंग्रेजी में रहा है, उसी को कल मार भी सकता है। अभी उसके लिए अमृत जो शब्द गॉड है, वह गुड का ही रूपांतरण है। वह जो शुभ है, वही की तलाश कर रहा है, कल दवाई की दुकान से उसी के लिए जहर परमात्मा है। और जो अशुभ है, वही शैतान है। भी खरीद सकता है। और कल तो दर है: मनसविद कहते हैं. इसी । लेकिन हम क्या करेंगे? हमारे परमात्मा को दोनों होना पडेगा समय भी, इस क्षण में भी प्रेम और घृणा दोनों साथ ही मौजूद हैं। एक साथ, परमात्मा भी और शैतान भी। इसलिए हमने एक कल्पना | 193
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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