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________________ गीता दर्शन भाग-4 मैंने गीता के कई सतत पाठी देखे हैं, उन्हें भी नहीं दिखाई पड़ता। | सकता, जो दोनों एक साथ हो। या तो बिंदु होगा, या रेखा होगी। उसका कारण यह नहीं है कि उनकी श्रद्धा इतनी है कि उन्हें इसमें रेखा का मतलब ही है, बहुत-से बिंदु सतत, बहुत-से बिंदु विरोध नहीं दिखाई पड़ता। वे इतनी बुद्धि भी नहीं लगाते कि विरोध | | श्रृंखला में। अगर यह बिंदु है, तो रेखा नहीं हो सकती। अगर यह दिखाई पड़े। पढ़ते चले जाते हैं। पढ़ते-पढ़ते आदत हो जाती है। | रेखा है, तो बिंदु नहीं हो सकता। बिंदु का मतलब ही है कि जो और और जो बीच में विरोध है स्पष्ट, वह भी दिखाई नहीं पड़ता। सुनते | विभाजित न किया जा सके। रेखा तो विभाजित की जा सकती है। रहते हैं, विरोध दिखाई नहीं पड़ता। लेकिन वैज्ञानिक बड़ी मुश्किल में पड़ गए। युक्लिड को मानें विरोध न दिखाई पड़ना दो तरह से संभव है। एक तो श्रद्धा इतनी | कि इस इलेक्ट्रान को मानें? क्या करें? और यह इलेक्ट्रान है कि प्रगाढ़ हो कि विरोध के बीच में वह जो आदमी खड़ा है, वही दिखाई | युक्लिड की फिक्र ही नहीं करता; ज्यामिति की फिक्र नहीं करता; पड़े विरोध के पार वह जो चेतना खड़ी है, वही दिखाई पड़े और | | गणित के नियम नहीं मानता; और दोनों तरह का व्यवहार करता या फिर बुद्धि इतनी कम हो कि पहले वक्तव्य में और दूसरे वक्तव्य | | है! बिहेव्स बोथ वेज साइमल्टेनियसली। कोई शब्द नहीं है हमारे में विरोध है, यह भी दिखाई न पड़े। . पास। कण-तरंग, इसको क्या नाम दें? कण-तरंग कहें! दोनों बुद्धि की कमी को श्रद्धा की गहराई मत समझ लेना। बहुत बार | विपरीत शब्द हैं। वैज्ञानिक बड़े पेशोपस में थे कि क्या करें। बुद्धि का उथलापन श्रद्धा की गहराई समझ ली जाती है। श्रद्धा की लेकिन तथ्य को तो मानना ही पड़ेगा, चाहे युक्लिड के ही गहराई बुद्धि के उथलेपन का नाम नहीं है! श्रद्धा की गहराई बुद्धि खिलाफ जाता हो। अंततः यही हुआ कि युक्लिड को छोड़ देना से मुक्ति है। पड़ा; तथ्य को ही मानना पड़ा। इसे पढ़ना। पहले तो विरोध खोजने की कोशिश करना। सब आइंस्टीन से किसी ने पूछा है कि यह तो नियम के विपरीत है! तरह से विरोध देखने की कोशिश करना। और जब बुद्धि थक जाए, तो आइंस्टीन ने कहा, हम क्या करें? कहना चाहिए, नियम ही तथ्य जैसा कि मैं कछ दो-तीन बातें कह. तो खयाल में आ जाए। । के विपरीत है। नियम बदला जा सकता है, तथ्य नहीं बदला जा इस सदी के मध्य में विज्ञान ने एक नया सिद्धांत खोजा। कहें| | सकता। नियम बदला जा सकता है; नियम हमारा बनाया हुआ है। खोजा, या कहना चाहिए, खोज में आ गया अचानक। जैसे ही | तथ्य नहीं बदला जा सकता है; तथ्य हमारा बनाया हुआ नहीं है।' परमाणु की खोज हुई, तो विज्ञान को पता चला कि परमाणु के जो | युक्लिड को हारना पड़ेगा, क्योंकि तथ्य यह है। घटक, इलेक्ट्रांस हैं, वे बड़े अदभुत हैं, रहस्यपूर्ण हैं। रहस्यपूर्ण | विपरीत एक साथ मौजूद है जीवन में। उसी तथ्य को भौतिकी इसलिए हैं कि हमारे पास कोई शब्द ही नहीं कि हम उनको बताएं | | इस इलेक्ट्रान के व्यवहार में पाई, कि जीवन एक साथ मौजूद है। कि वे क्या हैं। किन्हीं वैज्ञानिकों ने खबर दी कि वे कण हैं। और फ्रायड ने अपने अंतिम जीवन के क्षणों में अनुभव किया कि किन्हीं वैज्ञानिकों ने खबर दी कि वे कण नहीं हैं, तरंग हैं। और तब | | आदमी के भीतर जीवन की लालसा तो है ही, मृत्यु की भी लालसा किन्हीं वैज्ञानिकों ने खबर दी कि वे दोनों एक साथ हैं, कण भी और | है। जिंदगीभर वह कहता था, आदमी के जीवन में एक ही खास तरंग भी। चीज है, लिबिडो। लिबिडो उसके लिए शब्द था, जीवेषणा। कण का मतलब होता है कि जो कभी तरंग नहीं हो सकता। तरंग आदमी जीना चाहता है। लेकिन आखिरी उम्र में, आदमी का का मतलब होता है कि जो कभी कण नहीं हो सकती। अगर मैं कहूं अध्ययन जीवनभर करने के बाद उसे लगा कि यह बात अधूरी है। कि मैंने आपकी दीवाल पर एक बिंदु बनाया; यह बिंदु भी है और आदमी सिर्फ जीना ही नहीं चाहता, आदमी साथ ही मरना भी लकीर भी; प्वाइंट भी है और लाइन भी। तो आप कहेंगे, क्या कह चाहता है। यह चाह भी आदमी के भीतर छिपी है। रहे हैं आप! दो में से एक ही बात हो सकती है, अन्यथा युक्लिड अब बड़ी मुश्किल हुई। क्या ये दोनों चाहें एक साथ आदमी के बेचारे का क्या होगा? ज्यामेट्री का क्या होगा? आप क्या कहते हैं! भीतर छिपी हैं? क्या यह आदमी दोनों चाह है? फ्रायड खुद परेशान अगर मैं कहूं कि यह बिंदु भी है और रेखा भी, दोनों एक साथ। तो हुआ, क्योंकि वह तर्कयुक्त गणित में भरोसा करता था। उसे आप कहेंगे, कृपा करें! यह दोनों एक साथ हो नहीं सकता। और | | कठिनाई मालूम पड़ी कि आदमी में दो में से एक ही हो सकती है, अगर मैं खींचना भी चाहूं ऐसी कोई चीज तख्ते पर, तो खींच नहीं | या तो जीने की चाह हो या मरने की चाह हो। यह समझ में आता
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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