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* अतळ रहस्य में प्रवेश*
आकाश में स्थित है, वैसे ही संपूर्ण भूत मेरे में स्थित हैं, ऐसा जान। कृष्ण कुछ भी कहें, अर्जुन उन्हें बांध लेना चाहता है। उस बांधने
एक के बाद दूसरी पंक्ति पहले को खंडित करती चली जाती है। | में ही उसे अपना छुटकारा दिखाई पड़ता है। अगर कृष्ण फंस जाएं, एकदम अतर्का वक्तव्य है। जो कहते हैं एक क्षण, दूसरे क्षण | जो कह रहे हैं उसी में, तो अर्जुन कृष्ण से जीत जा सकता है। खंडित कर देते हैं। जो दूसरे क्षण कहते हैं, तीसरी पंक्ति में उसके । एक बहुत मजे की बात है कि अगर यह चर्चा बिलकुल तर्कयुक्त पार निकल जाते हैं। क्या कहना चाहते हैं? क्या इशारा है? क्योंकि | ढंग से चले, तो कृष्ण की हार निश्चित है। अगर यह ठीक नियम जो कहा है, वह अतळ है। शायद यही कहना चाहते हैं कि मैं | | से खेल चले तर्क के, तो कृष्ण की हार निश्चित है। अर्जुन अतळ हूं।
सुनिश्चित जीतेगा। इसे समझ लें। इस वक्तव्य का सार भाव यही है कि कृष्ण यह ___ कृष्ण ने सब तर्कों के जवाब दिए हैं। एक-एक तर्क को काटने कह रहे हैं कि तू समझने से समझ सके, ऐसा मैं नहीं हूं। तू जानने | की कोशिश की है। अर्जुन ऐसी जगह आ गया है कि अब और तर्क से जान सके, ऐसा मैं नहीं हूं। तू पहचानने से पहचान सके, वह मैं | उठाने का उसका मन नहीं है। तो कृष्ण तत्काल अपना बेबूझपन नहीं हूं। तू जानना छोड़, तू पहचानना छोड़, तू समझ छोड़, तू | | प्रकट करते हैं। वे कहते हैं कि अब मैं तुझे बता दूं वह, जैसा मैं हूं। गणित छोड़, तू तर्क छोड़, तो तू मुझे जान सकता है; क्योंकि मैं | | अब तक तू जो कह रहा था, तो मैं भी खेल रहा था। अब तक तू अतळ हूं।
जो पूछ रहा था, तो मैं भी जवाब दे रहा था। लेकिन वह शतरंज का अतयं का अर्थ है, मैं रहस्य हूं। रहस्य का अर्थ है, कोई भी | | खेल था। मैं देख रहा था, तू किसलिए पूछ रहा है, तो क्या जवाब सिद्धांत, कोई भी नियम मुझे नहीं घेर पाएगा। मैं पारे की तरह हूं। | देना जरूरी है, वह मैं दे रहा था। अब मैं तुझे वही बताता हूं, जो मैं मुट्ठी तू बांधेगा तर्क की और मैं बिखरकर बाहर छिटक जाऊंगा। | हूं। यह जो दिखाई पड़ रहा है, इसमें मैं न दिखाई पड़ने वाले की जब तक तू नहीं बांधेगा, तब तक शायद मुझे पाए भी कि मैं हूं; | तरह छिपा हूं। यह सारा जगत मुझमें ठहरा हुआ है, और इसमें मैं जैसे ही तू मुट्ठी बांधेगा, मैं छिटक जाऊंगा। बुद्धि जैसे ही जीवन | | नहीं हूं; और फिर भी मैं तुझसे कहता हूं कि यह जगत भी मुझमें के सत्य को पकड़ना चाहती है, सत्य छिटक जाता है पारे की तरह। ठहरा हुआ नहीं है; और फिर भी मैं तुझसे कहता हूं कि मैं इस जगत तो तू मुझे बांधने की कोशिश मत कर।
में समाया हुआ हूं। कृष्ण ने अब तक जो अनुभव किया है, वह यही है कि अर्जुन अर्जुन का सिर घूम जाता। जो भी विचार से चलेगा, उसका उन्हें बांधने की कोशिश कर रहा है। अर्जुन ने सब तरह से कोशिश घूमेगा। श्रद्धा नहीं घूमती है। श्रद्धा इतनी शक्तिशाली है कि कृष्ण की है। क्योंकि अगर अर्जुन कृष्ण को बांध ले तर्क में, विचार में, | भी उसे डांवाडोल नहीं कर सकते। इतनी बात कृष्ण ने अगर पहले तो इस युद्ध से छुटकारा हो सकता है।
कही होती, तो अर्जुन अब तक हजार सवाल उठा दिया होता। वह क्योंकि कृष्ण कहते हैं कि यह सब माया है; तो अर्जुन कहना चुप है। वह समझने की कोशिश कर रहा है। समझने से ज्यादा वह चाहता है कि अगर सब माया है, तो मुझे इसमें क्यों उलझाते हैं? | कृष्ण को पीने की कोशिश कर रहा है। कृष्ण क्या कह रहे हैं, यह कृष्ण कहते हैं कि ये कोई मरते नहीं मारने से; तो अर्जुन कहेगा कि | मूल्यवान नहीं रहा अब। कृष्ण क्या हैं, उनकी प्रेजेंस, उनकी जब ये मरते ही नहीं मारने से, तो मारने से भी क्या सार है? कृष्ण | मौजूदगी, उनका होना, वह अपने द्वार खोलकर उनको अपने भीतर अगर कहते हैं कि त अपने यश के लिए और प्रतिष्ठा के लिए लड: समा रहा है। कृष्ण क्या कह रहे हैं, यह अब सवाल नहीं है बहुत तो अर्जुन कहेगा, यश और प्रतिष्ठा तो सब अहंकार है, और आप महत्वपूर्ण। क्यों कह रहे हैं! क्या कह रहे हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं ही तो समझाते हैं कि अहंकार बाधा है! अगर कृष्ण कहते हैं कि है। कौन कह रहा है! धर्म के लिए तुझे लड़ना है, तो अर्जुन कहेगा कि मुझ से क्या धर्म| इसलिए अर्जुन चुपचाप पी रहा है। जिन बातों में एक-एक पद की स्थापना हो सकेगी? जब आप ही मौजूद हैं, तो धर्म की स्थापना पर संकट होना चाहिए, और संदेह होना चाहिए, उन्हें वह चुपचाप उतने से काफी है। अगर कृष्ण कहते हैं कि यह जीवन असार है, पीए जा रहा है। उसे कहीं कोई विरोध जैसे दिखाई भी नहीं पड़ तो अर्जुन चाहता है कि मुझे छुटकारा दो, ताकि मैं एकांत में जाकर रहा है। समाधि में लीन हो जाऊं।
ध्यान रखें, यह विरोध हो सकता है दो कारणों से दिखाई न पड़े।
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