SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * गीता दर्शन भाग-44 बोकोजू ने कहा कि जवाब दे दिया गया। और केवल दे ही नहीं आदमी ने कहा कि सूरज उगने लगा है। वह तो डूब गया, उसे छोड़ दिया गया, जवाब पहुंच भी गया है। ही दिया, जो मैं था। अब दूसरे का ही जन्म हो रहा है; रास्ता मिल उस आदमी ने कहा, जवाब मेरी समझ में नहीं आया। जवाब था | गया है। ही नहीं, पहुंच कैसे सकता है? सूरज डूब रहा है, इससे क्या | कृष्ण कहते हैं, ये सब मुझमें स्थित हैं, ये सारे भूत, लेकिन मैं लेना-देना है उसकी जिज्ञासा का? | उनमें स्थित नहीं हूं। बोकोजू ने कहा, बेहतर हो कि तू उस आदमी से जाकर पूछ कि यह इंगित है, और महत्वपूर्ण है। श्रद्धा तो सीधा समझ लेगी; सवाल का जवाब मिल गया है या नहीं? | विचार को थोड़ा-सा चक्कर काटना पड़ेगा। जो भी विराट्रतर है, वह आदमी बाहर गया उस आदमी को खोजने। बाहर ही, द्वार | | वह क्षुद्रतर में प्रविष्ट भी हो जाए, तो भी प्रविष्ट नहीं होता। एक के पास ही, वृक्ष के नीचे वह आदमी आंख बंद करके ध्यान में बैठा | | छोटा-सा वर्तुल मैं खींचं, एक छोटा सर्किल, और फिर एक बड़ा था। उसे हिलाया और पूछा कि जवाब मिल गया है? | सर्किल उसके चारों तरफ बनाऊं, तो यह कहना तो बिलकुल ठीक उस आदमी ने कहा, जवाब मिल गया है। सूरज डूबने के करीब है, बड़ा सर्किल यह कह सकता है कि छोटा सर्किल मुझमें स्थित है, मेरा जीवन भी डूबने के करीब है। और बोकोजू ने मुझे कह दिया है, फिर भी मैं उसमें स्थित नहीं हूं। क्योंकि छोटा सर्किल तो पूरा है कि अगर जीवनभर की व्यर्थता भी तेरे लिए परमात्मा को पाने का ही बड़े सर्किल में उपस्थित है, लेकिन बड़ा सर्किल छोटे सर्किल मार्ग नहीं बन सकी, तो अब और क्या मार्ग बनेगा? अगर जीवनभर के बाहर भी फैला हुआ है। का अनुभव भी तुझे परमात्मा के दरवाजे पर नहीं ले आया है, तो अब | | तो जीवन का एक अनिवार्य नियम है कि क्षुद्र तो विराट में स्थित और किस रास्ते से तू आ सकेगा? और मौत करीब है, सूरज डूबने | | होता है, लेकिन विराट क्षुद्र में नहीं। इसे ऐसा समझें, एक बूढ़ा के करीब है, सांझ होने लगी है। अब तू खो मत समय को। आदमी कह सकता है कि मैं बच्चे में मौजूद हूं, बच्चा मुझमें स्थित 'उस आदमी ने पूछा, आप यहां क्या कर रहे हैं? है, फिर भी मैं बच्चे के बाहर हूं। एक बूढ़े आदमी में बचपन भी तो उस आदमी ने कहा कि अब मैं डूबने की तैयारी कर रहा है। छिपा होता है, जवानी भी छिपी होती है। उन सबको उसने अपने में जीवनभर मैंने जीने की तैयारी की थी, वह व्यर्थ गई है। अब मैं | |समा लिया है। फिर भी वह कुछ ज्यादा होता है, समथिंग मोर।' अपने हाथ से डूबने की तैयारी कर रहा हूं। जिस तरह वहां बाहर उनसे कुछ फैला होता है। उसकी परिधि बड़ी है। सूरज डूब रहा है, इसी तरह भीतर मैं भी डूब जाऊं, यही उनका | जो भी छोटा है, वह बड़े में समाया होता है; लेकिन बड़ा उस संकेत है। छोटे में समाया नहीं होता। छोटे से भी बड़ा प्रकट होता है, फिर भी और सुबह जब सूरज उग रहा था दूसरे दिन, तब भी वह आदमी | | समाया नहीं होता। सागर कह सकता है कि सभी नदियां मुझमें उसी झाड़ के नीचे बैठा था। बोकोजू बाहर आया। वह तीसरा समाई हुई हैं, फिर भी मैं नदियों में नहीं समाया हुआ हूं। आदमी भी रातभर मौजूद रहा कि यह क्या हो रहा है! सब बात || अर्थ इतना ही है, तर्क और विचार की दृष्टि से, कि जो विराट बेबूझ हो गई थी। बोकोजू सुबह बाहर आया। उसने उस आदमी है वह क्षुद्र के पार है। क्षुद्र से प्रकट भी होता है, तो भी क्षुद्र के पार को-जो ध्यान में रातभर बैठा रहा था—हिलाया और पूछा कि है। यह जो पारगामिता है, ट्रांसेंडेंस है, यह जो सदा पार होना है, कुछ खबर दो। | बियांडनेस है, इसका सूत्र है यह। इसका मूल्य है, इसका अर्थ है, उस आदमी ने आंख खोली। और उस आदमी ने कहा कि सूरज | वह हमारे खयाल में आ सकेगा। उग रहा है। सुबह होने के करीब है। बोकोजू ने उसे आशीर्वाद दिया और वे सब भूत मुझमें स्थित नहीं हैं। पहले कहा, वे सब भूत और कहा कि अब तू जा सकता है। मुझमें स्थित हैं। और अब तत्क्षण एक पंक्ति भी नहीं पूरी हो पाई उस आदमी ने कहा कि मैं अगर यहां ज्यादा रुका तीसरे | | और कृष्ण कहते हैं, और वे सब भूत मुझमें स्थित नहीं हैं। आदमी ने तो मैं पागल हो जाऊंगा, इसका डर है। यह क्या हो | । किंतु मेरे योग को देख, मेरी माया को देख कि समस्त भूतों को रहा है? | धारण-पोषण करने वाला होकर भी मैं भूतों में स्थित नहीं है। क्योंकि यह एक और तरह की भाषा है, जो श्रद्धा समझ पाती है। उस जैसे आकाश से उत्पन्न हुआ सर्वत्र विचरने वाला वायु सदा ही 1901
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy